भारत के साथ 59,000 करोड़ रुपये के राफेल विमान सौदे में कथित ‘भ्रष्टाचार और लाभ पहुंचाने' के मामले में फ्रांस के एक न्यायाधीश को ‘बहुत संवेदशील' न्यायिक जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई है. फ्रांस की समाचार वेबसाइट ‘मीडिया पार्ट' ने अपनी रिपोर्ट में यह दावा किया है जिसके बाद रविवार को कांग्रेस और भाजपा के बीच वाकयुद्ध छिड़ गया. फ्रांसीसी वेबसाइट ‘मीडिया पार्ट' के अनुसार, दो सरकारों के बीच हुए इस सौदे को लेकर जांच गत 14 जून को औपचारिक रूप से आरंभ हुई. इस सौदे पर फ्रांस और भारत के बीच 2016 में हस्ताक्षर हुए थे.
कांग्रेस ने राफेल विमानों की खरीद में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए सौदे में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने की मांग की और कहा कि सच का पता लगाने के लिए जांच का केवल यही रास्ता है. कांग्रेस ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जांच का आदेश देना चाहिए. इस मामले पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर परोक्ष रूप से निशाना साधा तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने भगवान बुद्ध के संदेश का उल्लेख करते हुए कहा, ‘तीन चीजों को नहीं छिपाया जा सकता: सूर्य, चंद्रमा और सत्य.'
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ‘फ्रांस में जो ताजा खुलासे हुए हैं, उनसे साबित होता है कि राफेल सौदे में भ्रष्टाचार हुआ. कांग्रेस और राहुल गांधी की बात सही साबित हुई. अब यह घोटाला सबके सामने आ चुका है.'
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उधर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी को प्रतिस्पर्धी रक्षा कंपनियां ‘मोहरा' बना रही हैं और साथ ही दावा किया कि देश को ‘‘कमजोर'' करने के प्रयास के तहत वह और कांग्रेस पार्टी राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हैं. भाजपा मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने फ्रांस में एक न्यायाधीश को राफेल मामले की जांच सौंपे जाने को यह कहते हुए तवज्जो नहीं दी कि एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की शिकायत पर ऐसा किया गया है. उन्होंने कहा कि इसे भ्रष्टाचार के मामले में रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
‘मीडिया पार्ट' ने कहा, ‘‘भारत को 36 राफेल विमान बेचने के लिए 2016 में हुए 7.8 अरब यूरो के सौदे को लेकर फ्रांस में संदिग्ध भ्रष्टाचार की न्यायिक जांच आरंभ हुई है.''
इसने कहा कि फ्रांस के राष्ट्रीय वित्तीय अभियोजक कार्यालय (पीएनएफ) की ओर से जांच की पहल की गई है सौदे में कथित अनियमितताओं को लेकर अप्रैल में ‘मीडिया पार्ट' की एक रिपोर्ट सामने आने और फ्रांसीसी एनजीओ ‘शेरपा' की ओर से शिकायत दर्ज कराए जाने के बाद पीएनएफ द्वारा जांच का आदेश दिया गया है.
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इस फ्रांसीसी वेबसाइट ने कहा, ‘‘दो सरकारों के बीच हुए इस सौदे को लेकर 14 जून को बहुत ही संवेदनशील न्यायिक जांच औपचारिक रूप से आरंभ हुई.'' ‘मीडिया पार्ट' से संबंधित पत्रकार यान फिलिपीन ने कहा कि 2019 में दायर की गई पहली शिकायत को पूर्व पीएनएफ प्रमुख की ओर से ‘दबा दिया गया था.' अप्रैल महीने में इस वेबसाइट ने फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी की जांच का हवाला देते हुए दावा किया था कि राफेल विमान बनाने वाली कंपनी दसॉं एविशन ने एक भारतीय बिचौलिए को 10 लाख यूरो दिए थे. दसॉं एविएशन ने इस आरोप को खारिज कर दिया था और कहा था कि अनुबंध को तय करने में कोई उल्लंघन नहीं हुआ है. भाजपा की अगुवाई वाली राजग सरकार ने फ्रांसीसी कंपनी दसॉ एविएशन से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए 23 सितंबर, 2016 को 59,000 करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे.
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कांग्रेस का आरोप है कि इस सौदे में बड़े पैमाने पर अनियमितता हुई है और 526 करोड़ रुपये के एक विमान की कीमत 1,670 करोड़ रुपये अदा की गई. उसने 2019 के लोकसभा चुनाव में इसे बड़ा मुद्दा बनाया था. भाजपा और सरकार की तरफ से आरोपों को कई मौकों पर खारिज किया गया और यह कहा गया कि उच्चतम न्यायालय इस मामले में क्लीन चिट दे चुका है.
सुरजेवाला ने कहा कि मामला देश की सुरक्षा और साख का है, इसलिए एक निष्पक्ष और स्वतंत्र जेपीसी जांच ही एकमात्र रास्ता है, न कि उच्चतम न्यायालय द्वारा जांच. उन्होंने कहा, ‘‘जब फ्रांस की सरकार ने स्वीकार कर लिया है कि सौदे में भ्रष्टाचार हुआ है तो क्या देश में जेपीसी जांच नहीं होनी चाहिए जहां भ्रष्टाचार हुआ है?''
सुरजेवाला ने कहा कि यह कांग्रेस बनाम भाजपा का मुद्दा नहीं है, बल्कि देश की सुरक्षा का और सबसे बड़े रक्षा सौदे में ‘भ्रष्टाचार' का विषय है.
पात्रा ने इस मामले को लेकर कांग्रेस पर झूठ और अफवाहें फैलाने का आरोप लगाया. उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘राहुल गांधी जिस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रतिस्पर्धी कंपनियां उन्हें मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं. वह इस मसले पर शुरू से ही झूठ बोल रहे हैं. संभवत: वह एक एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं या गांधी परिवार का कोई सदस्य प्रतिस्पर्धी कंपनी के लिए काम कर रहा है.''
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