उत्तर प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह ने कहा कि इसे तत्काल खत्म कर देना चाहिए. सेवानिवृत न्यायाधीश ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा है कि यह अध्यादेश पूरी तरह से खाप पंचायत के फरमान की तरह है, जो “लव जिहाद” के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए बनाया गया है. इस अध्यादेश ने यह साफ कर दिया है कि अभी भी महिलाओं की स्थिति पर सरकार गंभीर नहीं है. इस धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश का उद्देश्य महिलाओं की आजादी को अपने अधीन करना है.
पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि इस अध्यादेश के कई प्रावधान विवादित हैं. जो सीधे तरह से संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. यही नहीं जीवन के अधिकार और संविधान के तहत स्वतंत्रता की गारंटी के मूल आधार पर भी प्रहार करता है. उन्होंने कहा, मेरे लिए यह विश्वास करना काफी मुश्किल रहा कि इस अध्यादेश को एक ऐसे देश में लाया गया, जहां सरकारें संविधान के दायरे में रहकर कानून बनाती है. एनडीटीवी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश के कई प्रावधान गंभीर रूप से धर्म के अनुच्छेद 25 के अनुसार गारंटी देने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं और जीवन के अधिकार और स्वतंत्रता के मूल अधिकारों का हनन करते हैं.
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पूर्व न्यायाधीश ने कहा, किसी भी आपराधिक मामलें में (जहां) धर्मांतरण को अवैध माना जाता है. सबूत का बोझ आमतौर पर अभियोजन पक्ष पर होता है. इस अध्यादेश में हर धार्मिक रूपांतरण को अवैध माना गया है. अध्यादेश के अनुसार सबूत का बोझ अवैध रूपांतरण के आरोपी व्यक्ति पर होता है. उन्होंने कहा कि यह साबित करने के लिए कि उसका धर्म रूपांतरण वैध है पर्याप्त सबूत देना होगा. अगर वह ऐसा नहीं कर पाया तो अध्यादेश के प्रावधान के तहत अपराध कहलाएगा. यह अपराध गैर-जमानती होगा और पुलिस उसे गिरफ्तार कर सकती है.
अध्यादेश के अनुसार एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन के लिए संबंधित पक्षों को विहित प्राधिकारी के समक्ष उद्घोषणा करनी होगी कि यह धर्म परिवर्तन पूरी तरह स्वेच्छा से है. संबंधित लोगों को यह बताना होगा कि उन पर कहीं भी, किसी भी तरह का कोई प्रलोभन या दबाव नहीं है. हालांकि, अध्यादेश के प्रावधान में शादी के गिफ्ट को बहुत व्यापक तरीके से परिभाषित किया गया है, जैसे कलाई घड़ी, चूड़ी या अंगूठी, शादी में दी जाने वाली राशि कोई उपहार. अध्यादेश में धर्म परिवर्तन के सभी पहलुओं पर प्रावधान तय हैं. इसके अनुसार धर्म परिवर्तन के लिए इच्छुक होने पर संबंधित पक्षों को तय प्रारूप पर जिला मजिस्ट्रेट को दो माह पहले सूचना देनी होगी. इसका उल्लंघन करने पर छह माह से तीन वर्ष तक की सजा हो सकती है. इस अपराध में न्यूनतम जुर्माना 10,000 रुपये तय किया गया है.
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उन्होंने कहा, "दिलचस्प बात यह है कि पुनर्विचार करना गैरकानूनी नहीं है. दबाव डालकर या झूठ बोलकर अथवा किसी अन्य कपट पूर्ण ढंग से अगर धर्म परिवर्तन कराया गया तो यह एक संज्ञेय अपराध माना जाएगा. यह गैर जमानती होगा और प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में मुकदमा चलेगा. दोष सिद्ध हुआ तो दोषी को कम से कम 01 वर्ष और अधिकतम पांच वर्ष की सजा भुगतनी होगी. साथ ही कम से कम 15,000 रुपए का जुर्माना भी भरना होगा. अगर धर्मांतरण का मामला अवयस्क महिला, अनूसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला के संबंध में हुआ तो दोषी को तीन वर्ष से 10 वर्ष तक कारावास की सजा और न्यूनतम 25,000 जुर्माना अदा करना पड़ेगा.
पूर्व न्यायाधीश ने कहा, "यह स्पष्ट है कि अध्यादेश को तुरंत समाप्त कर देना चाहिए और निश्चित रूप से किसी क़ानून को लागू करने की अनुमति नहीं देना चाहिए. इस अध्यादेश को लागू करने का मतलब है संविधान के मूल अधिकारों के साथ छेड़छाड़.”