छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी का दावा, 'सरकार की कार्रवाई से तय समय से पहले खत्म हो सकता है नक्सलवाद'

छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी डीएम अवस्थी ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए नक्सलवाद के खिलाफ सरकार की कार्रवाई की तारीफ की और इसे ऐतिहासिक बताया. उन्होंने दावा किया कि अगर सरकार ऐसी कार्रवाई जारी रखती है तो तय समय से पहले नक्सलवाद को खत्म किया जा सकता है.

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रायपुर:

छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों को बड़ी सफलता हाथ लगी है. बुधवार को सुरक्षाबलों की बड़ी कार्रवाई में एक करोड़ के इनामी नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू समेत 27 नक्सलियों को ढेर किया गया. छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी डीएम अवस्थी ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए नक्सलवाद के खिलाफ सरकार की कार्रवाई की तारीफ की और इसे ऐतिहासिक बताया. उन्होंने दावा किया कि अगर सरकार ऐसी कार्रवाई जारी रखती है तो तय समय से पहले नक्सलवाद को खत्म किया जा सकता है.

सवाल : इस पूरे नक्सल ऑपरेशन को आप किस तरह देखते हैं?

जवाब : बुधवार 21 मई को नक्सलवाद के खिलाफ हुए ऑपरेशन को इतिहास का सर्वाधिक सफल ऑपरेशन मानना चाहिए. पिछले 30 साल से बस्तर क्षेत्र, नक्सलवाद की समस्या झेल रहा था.इस भूमि को लाल आतंक से मुक्त करने के लिए, सैकड़ों जवानों और अधिकारियों ने अपनी जान गंवा दी. धीरे-धीरे नक्सलवाद के खिलाफ कार्रवाई होती रही. पिछले एक साल और खास तौर पर बुधवार को हुई कार्रवाई को मील का पत्थर या कीर्तिमान कहना चाहिए. बसवराजू की मौत हुई और कई सारे नक्सली उसके साथ मारे गए. आज तक के इतिहास में कभी भी महासचिव स्तर का नक्सली एनकाउंटर में नहीं मारा गया है.

सवाल : बसवराजू यह एक बड़े सुरक्षा घेरे में रहता था, ऐसे में जवानों को कितना संघर्ष करना पड़ा होगा?

जवाब : जो फोर्स गई उनकी इनपुट अच्छी थी. यह कहना पड़ेगा कि इंटेलिजेंस इंफॉर्मेशन और प्लानिंग बहुत अच्छी थी. नक्सलियों का इतना बड़ा शीर्ष नेता बड़े सुरक्षा घेरे में रहता था. वो कम से कम 30 से 50 पर्सनल बॉडीगार्ड की सुरक्षा में रहता था, जो कि बड़े ट्रेंड कमांडो रहते हैं. उन सब का सामना करके जिस तरह से सफलता मिली है, मैं समझता हूं कि भारत के इतिहास में नक्सलवाद के खिलाफ, यह सबसे सफल ऑपरेशन है. जिन्होंने भी प्लानिंग की और इसे अंजाम तक पहुंचाया, जिन जवानों ने दुर्गम इलाके में जाकर इस ऑपरेशन को किया, उनकी जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है.

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सवाल : छत्तीसगढ़ में नक्सली खात्मे को लेकर डीआरजी की एक टीम बनाई गई, पहले भी छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ और अन्य बटालियन नक्सलियों से लड़ाई लड़ रही थी, ऐसे में डीआरजी की टीम बनने से कितना फायदा मिला?

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जवाब : 2016 में मैं नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन का डिजी बना, 2014 में जब से देश में पीएम मोदी की सरकार आई तो एक नीति बनी की नक्सलवाद को खत्म करना है. उस समय छत्तीसगढ़ में डॉ रमन सिंह मुख्यमंत्री थे. डीआरजी को लगभग 2015 में बनाया गया. 2016 में हम लोगों ने डीआरजी के जवानों को और रिक्रूट करते हुए भारत की जो प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट है उससे स्पेशल ट्रेनिंग दिलाई, जिसमें उन्हें जंगल वार की ट्रेनिंग मिली. जिसके बाद 2016 के आखिर तक पूरी फोर्स ट्रेंड हो चुकी थी. 2016 खत्म होते-होते ऐसी स्थिति में छत्तीसगढ़ की खुद की फोर्स आ गई थी कि सीआरपीएफ और कोबरा उनके साथ मिलकर ऑपरेशन कर सके. उसके बाद ऑपरेशन चालू हुआ और तरह-तरह की प्लानिंग हुई. 2017-18 में भी बहुत सफलता मिली. सड़कें बनी और विकास कार्य हुए. जैसे-जैसे सड़कें बनी, माओवादी इलाकों में हम घुसते रहे. अब डीआरजी एक बहुत प्रोफेशनल फोर्स बन चुकी है और उसने एक बड़ा ऑपरेशन करके दिखाया है.

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सवाल : मार्च 2026 तक नक्सलवाद को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है, क्या यह संभव है?

जवाब : मैं समझता हूं कि कुछ महीनों में जो कार्रवाई नक्सलियों के खिलाफ हुई, ऑपरेशन में जो नक्सली मारे गए हैं, मार्च 2026 क्या, दिसंबर 2025 तक ही नक्सलवाद समाप्त हो जाना चाहिए, यह मेरा अनुमान है. गृहमंत्री ने मार्च 2026 की डेडलाइन रखी है, उसके फलस्वरूप अभियान चल रहा है. जिस तरह की सफलता मिली है, अगर इस तरह से चलेंगे तो तय समय से पहले ही नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा.

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सवाल : लगातार नक्सलियों की तरफ से भी शांति वार्ता की अपील होती है, क्या लगता है कि इतने बड़े कैडर के नक्सली के मारे जाने के बाद आप नक्सली शांति वार्ता की बात करेंगे ?

जवाब : मैं समझता हूं कि नक्सली आज बहुत बुरी तरह से बैकफुट पर हैं, क्योंकि पिछले कुछ समय से वह लोग खुद ही शांति वार्ता के प्रस्ताव ला रहे हैं. जब भी शांति वार्ता के प्रस्ताव आते हैं तो वह लोग बैकफुट पर होते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी ताकत को दोबारा जोड़ना पड़ता है. केंद्र और राज्य सरकार ने समर्पण की नीति रखी है, ऐसे में वे चाहें तो आत्मसमर्पण कर सकते हैं. अगर वो शांति नहीं करेंगे और भारत के संविधान के साथ नहीं चलेंगे, ऐसे में ऑपरेशन जारी रहेंगे और जब बड़े-बड़े लीडर मारे जाएंगे तो छोटे लोगों को वैसे ही सरेंडर करना पड़ेगा.

सवाल : इतने बड़े ऑपरेशन के बाद छत्तीसगढ़ के जो सीमावर्ती क्षेत्र हैं, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश वहां पर भी क्या नक्सलवादी बैकफुट पर जाते हुए दिखाई देंगे?

जवाब : तेलंगाना में काफी नक्सलवाद था. जब वह आंध्र प्रदेश का हिस्सा था, पुलिस ने काफी सालों तक वहां पर ऑपरेशन किए और वहां पर काफी हद तक नक्सलवाद समाप्त हो गया था. छत्तीसगढ़ के इस एरिया में आकर, जंगल का फायदा लेकर, नक्सलियों ने अपने ऑपरेशन जारी रखने की कोशिश की. ऐसे में यहां पर नक्सलवाद खत्म होने के बाद मुझे नहीं लगता कि उनके पास कोई गुंजाइश बची है.
 

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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