बांग्लादेश में बड़ी साजिश ! क्या सच में ताकतवर मुल्क बनाते-गिराते हैं सरकार? जानिए वो 4 किस्से

Bangladesh Violence : बांग्लादेश की वर्तमान हालत को देखकर यकीन नहीं होता कि यही वो देश है, जिसकी तरक्की से अभी कुछ दिनों पहले तक पाकिस्तान जल रहा था. अब वही बांग्लादेश हिंसा की आग में जल रहा है...इसका गुनहगार कौन? पढ़ें ये रिपोर्ट...

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Bangladesh Crisis : ताकत एक ऐसी चीज है कि जब आती हो तो सिर पर चढ़ जाती है. यह इंसानों के साथ-साथ देशों पर भी लागू होता है. आखिर सभी देशों को इंसान ही चलाते हैं. कई बार इस तरह के दावे दुनिया के विभिन्न मीडिया के रिपोर्ट्स में हर किसी ने पढ़ी या देखी होगी, लेकिन उस पर यकीन कर पाना किसी के लिए भी बहुत मुश्किल है. हाल-फिलहाल बांग्लादेश में जो हुआ, उसके पीछे चीन, पाकिस्तान से लेकर अमेरिका तक के नाम आ रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे कोई देश दूसरे देश में विद्रोह को इतना मुखर कर सकता है कि सरकार ही गिर जाए? अगर सच में वो ऐसा करते हैं तो क्यों करते हैं? उन्हें किसी देश को अस्थिर कर क्या फायदा मिलता है? 

कैसे कराते हैं विद्रोह?

सभी देश अपने यहां दूसरे देशों पर जासूसी करने के लिए एक फौज रखते हैं. इसका मकसद दूसरे देशों पर नजर रखने के साथ-साथ उनकी गुप्त बातों के बारे में जानकारी और खतरा होने पर गैर-कानूनी तरीके से जवाबी हमला करना होता है. आम तौर पर सभी देश सीधे युद्ध करने से बचते हैं और वे अपने जासूसों की मदद से दूसरे देशों पर अपनी पकड़ बनाए रखते हैं. विकिलीक्स ने दावा किया था कि आपातकाल (1975-77) के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के घर पर अमेरिकी जासूस मौजूद था. इस जासूस को अमेरिकी दूतावास ने भेजा था. वह जासूस अमेरिका का ही रहने वाला था, या भारतीय था, इसकी जानकारी विकिलीक्स ने नहीं दी थी.

इसी तरह वासीली मित्रोखिन की किताब मित्रोखिन आर्काइव 2 के अनुसार इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान भारत सरकार के पुलिस, विदेश, रक्षा, विदेश सहित खुफिया विभाग में रूस की जासूसी संस्था केजीबी के जासूस मौजूद थे. इसमें नेताओं को करोड़ों रुपये देने की बात भी कही गई थी. इन खुलासों पर खूब हंगामा हुआ था. इन उदाहरणों से साफ है कि भारत ही नहीं बल्कि हर देश में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन आदि शक्तिशाली देशों के जासूस काम करते हैं. यह नेताओं तक को अपना एजेंट बना लेते हैं और उसके बदले उन्हें बड़े पैमाने पर फंडिंग करते हैं. राजनीतिक दलों में जब कटुता और सत्ता लोलुपता हद से ज्यादा बढ़ जाती है तो वे विदेशी ताकतों की उंगली पकड़ लेते हैं और उनके माध्यम से अपनी सरकार या विपक्ष को टारगेट करते हैं. इसके अलावा एनजीओ और छोटे-मोटे संगठनों को भी फंडिंग के माध्यम से ये देश जोड़े रखते हैं और जरूरत पड़ने पर इनका इस्तेमाल प्रदर्शनों, धरनों और आंदोलनों के जरिए उस देश की सरकार को घेरने में करते हैं.

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ताकतवर मुल्क क्यों करते हैं ऐसा?

ताकतवर मुल्क अपने फायदे के हिसाब से अन्य देशों की नीतियां चाहते हैं. जैसे बजट ऐसा बने कि इन ताकतवर देशों के सामान बिकें. इनके दुश्मनों से सभी देश दूरी बनाकर रखें और इनके कहने पर सार्वजनिक मंचों पर दुश्मन देश की खिलाफत करें.जिससे इनका दुनिया में दबदबा कायम रहे. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और रूस (USSR) दोनों बराबरी के ताकतवर देश बन गए. दोनों अपने-अपने खेमों में आने के लिए दुनिया के अन्य देशों पर दबाव डालने लगे. इसी के चलते दुनिया भर में कई युद्ध हुए और कई सरकारें गिरीं. अस्सी के दशक के अंत तक USSR आर्थिक तौर पर कमजोर पड़ने लगा और आखिरकर उसमें शामिल देश अलग हो गए. रूस सैन्य ताकत तो बना रहा लेकिन आर्थिक तौर पर कमजोर हो गया. इसी समय चीन ने उभार लेना शुरू किया और आज स्थिति यह है कि चीन और रूस दोनों अमेरिका को टक्कर दे रहे हैं. अमेरिका के साथ नाटो है तो रूस और चीन एक मंच पर. अब फिर से चीन और रूस अमेरिका को घेरने में लगे हैं तो अमेरिका और नाटो रूस और चीन को. इसी खींचतान में बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार गिर गई.      

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इमरान खान ने साफ बता दिया था  

3 अप्रैल 2022 को इमरान खान ने पाकिस्तान का प्रधानमंत्री रहते हुए आरोप लगाया था कि वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक डोनाल्ड लू अविश्वास प्रस्ताव के जरिये उनकी सरकार को गिराने की ''विदेशी साजिश'' में शामिल थे. नेशनल असेंबली के उपाध्यक्ष द्वारा विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को खारिज किए जाने के बाद पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेताओं की बैठक को संबोधित करते हुए खान ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक के दौरान भी यह पाया गया था कि अविश्वास प्रस्ताव के जरिये देश की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप का प्रयास किया गया. उन्होंने आरोप लगाया कि अमेरिकी विदेश विभाग में दक्षिण एशियाई मामलों को देखने वाले शीर्ष अमेरिकी राजनयिक डोनाल्ड उनकी सरकार गिराने की ''विदेशी साजिश'' में शामिल थे. पाकिस्तान के विपक्षी दलों के नेताओं ने खान के आरोप को बेबुनियाद करार दिया जबकि अमेरिका ने आरोपों को खारिज किया.

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9 अप्रैल 2022 को पाकिस्तान के विदेश मंत्री के तौर पर अपना अंतिम दिन होने की संभावना को स्वीकार करते हुए कुरैशी ने पाकिस्तानी संसद में कहा, ''पाकिस्तान आज एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है और अब लोगों को ये फैसला करना है कि वह एक आजाद देश में रहना चाहते हैं या (पश्चिम का) गुलाम बनना चाहते हैं.'' उन्होंने कहा, ''पाकिस्तान का विदेश मंत्री होने के नाते, मैं इस बात को रिकॉर्ड पर लाना चाहता हूं कि विचार-विमर्श के बाद पाकिस्तान के बेहतर भविष्य के लिए रूस यात्रा का निर्णय लिया गया था और ऐसा यूक्रेन में उपजे हालात से कई महीने पहले किया गया था.''कुरैशी ने कहा, ''हमारे (सरकार) हटने से पहले, मैं आपके संज्ञान में लाना चाहता हूं कि अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष को फोन कर हमें फरवरी में प्रधानमंत्री इमरान खान की रूस यात्रा को लेकर आगे नहीं बढ़ने को कहा था.'' उन्होंने कहा, ''दुनिया में कहां ऐसा होता है कि एक संप्रभु राष्ट्र अन्य देशों से निर्देश प्राप्त करे और कौन सा स्वतंत्र देश ऐसे निर्देशों को स्वीकार करेगा.''

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शेख हसीना का वो बयान

मई 2024 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहते हुए शेख हसीना ने दावा किया था कि एक देश ने उन्हें प्रस्ताव दिया था कि अगर वह बांग्लादेश के इलाके में एयरबेस बनाने की इजाजत देती हैं, तो उन्हें बिना किसी परेशानी के दोबारा चुनाव जीतने दिया जाएगा. हालांकि, उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन ये कहा था कि उन्हें ये ऑफर एक "व्हाइट मैन" से आया था. शेख हसीना ने यह भी दावा किया कि बांग्लादेश और म्यांमार के कुछ हिस्सों को काटकर ईस्ट तिमोर जैसा एक ईसाई देश बनाने की साजिश चल रही है. उन्होंने उस वक्त कहा था कि उनकी सरकार हमेशा संकट में रहेगी, लेकिन इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है. जब उनसे "व्हाइट मैन" के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि मैंने उनसे साफ कह दिया है कि मैं राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हूं. हमने अपना मुक्ति संग्राम जीता है. मैं देश का कोई हिस्सा किराए पर देकर या किसी दूसरे देश को सौंपकर सत्ता में नहीं आना चाहती. उन्होंने कहा था कि वो ईस्ट तिमोर की तरह बांग्लादेश और म्यांमार के कुछ हिस्सों को बंगाल की खाड़ी में बेस के साथ लेकर एक ईसाई देश बनाएंगे. यह भी खास बात है कि भारत, रूस, चीन तथा एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कई देशों ने प्रधानमंत्री के रूप में चौथी बार चुनाव जीतने पर शेख हसीना (Sheikh Hasina) को बधाई दी थी.

संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और ब्रिटेन ने चुनावों में ‘‘स्वतंत्र या निष्पक्ष नहीं'' होने पर अपनी आपत्ति व्यक्त की. मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) द्वारा बहिष्कार किए गए चुनावों में निवर्तमान प्रधानमंत्री हसीना की अवामी लीग (एएल) ने  300 सदस्यीय संसद में 223 सीटें जीतीं थी. बांग्लादेश सरकार ने चुनावों का पर्यवेक्षण करने के लिए भारत और अन्य देशों के साथ-साथ बहुपक्षीय संगठनों से बड़ी संख्या में विदेशी पर्यवेक्षकों को आमंत्रित किया था. इसके बादजूद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा था, ‘‘अमेरिका अन्य पर्यवेक्षकों के साथ यह बात साझा करना चाहता है कि ये चुनाव स्वतंत्र या निष्पक्ष नहीं थे और हमें अफसोस है कि सभी दलों ने चुनाव में हिस्सा नहीं लिया.''संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टर्क ने बांग्लादेश की नवनिर्वाचित सरकार से लोकतंत्र और मानवाधिकारों के प्रति देश की प्रतिबद्धता को मजबूत करने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया. इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि रविवार को मतदान प्रक्रिया के दौरान विपक्षी उम्मीदवारों और समर्थकों की ओर से की गई हिंसा के कारण माहौल खराब हो गया. टर्क ने कहा, ‘‘मतदान से पहले के महीनों में हजारों विपक्षी दलों के समर्थकों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया है या धमकाया गया. ऐसी युक्तियां वास्तव में निष्पक्ष प्रक्रिया के लिए अनुकूल नहीं हैं.'' ब्रिटेन ने कहा कि बांग्लादेश में 12वें संसदीय चुनावों के दौरान निष्पक्षता के मानकों को पूरा नहीं किया गया. 

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अमेरिका भी हुआ शिकार?

अमेरिका में 2016 में जब राष्ट्रपति चुनाव हुआ तो डोनाल्ड ट्रंप उम्मीदवार बने. उनके मुकाबले में हिलेरी क्लिंटन उम्मीदवार थी. इस चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप पर आरोप लगाया गया कि उनकी मदद रूस कर रहा है. व्हाइट हाउस ने भी इस पर बयान दिए. व्हाइट हाउस की ओर से रूस के वरिष्ठतम अधिकारियों पर हैकिंग में सीधे तौर पर संलिप्त होने का आरोप लगाए जाने के बाद तात्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चेतावनी दी कि अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव के दौरान साइबर हमले शुरू करने वाले रूस के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करेगा.  ट्रंप के चुनाव जीतने के बादओबामा ने कहा कि उन्होंने रूसी हैकिंग हमलों की जांच के आदेश दिए हैं और अंतिम रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने कहा संभवत: इन हैकिंग हमलों ने पिछले माह संपन्न हुए चुनाव के कड़े मुकाबले को प्रभावित किया हो. इस मुकाबले में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन को हरा दिया था.

Photo Credit: AFP

ओबामा ने नेशनल पब्लिक रेडियो पर एक साक्षात्कार में कहा था, ‘मुझे लगता है कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जब कोई विदेशी सरकार हमारे चुनावों की निष्पक्षता प्रभावित करने की कोशिश करती है तो हमें कार्रवाई करने की जरूरत होती है और हम ऐसा करेंगे. एनपीआर की ओर से जारी साक्षात्कार के कुछ अंशों में ओबामा ने कहा, ‘समय और स्थान हम चुनेंगे. इनमें से कुछ तो पूरी तरह स्पष्ट और प्रचारित हो सकते हैं और कुछ के बारे में पता नहीं हो सकता.'वहीं डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव में रूस से मदद मिलने संबंधी सीआईए के कथित आकलन को ‘बकवास' करार दिया था. ट्रंप ने फॉक्स न्यूज से कहा था कि यह दावा हिलेरी के खिलाफ उनकी भारी जीत के संदर्भ में डेमोक्रेटों का एक बहाना है. उन्होंने कहा, ‘यह बस एक दूसरा बहाना है. मैं इस पर यकीन नहीं करता. हर हफ्ते एक नया बहाना आ जाता है. जैसा कि आप जानते हैं कि निर्वाचक मंडल में हमारी भारी जीत हुई थी.'

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