नई दिल्ली: देश के सात लाख रेजिडेंट डॉक्टरों के संगठन फोर्डा (Federation of Resident Doctors Association) ने सरकार के सामने 10 मांगें रखी हैं. संगठन के अधिकारियों का कहना है कि आज तक उन अहम मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया है, जो मेडिकल व्यवस्था और रेजिडेंट के लिए जरूरी हैं. फोर्डा ने इन तमाम मांगों को लेकर देश के सभी मेडिकल संगठनों को एक साथ आने का अह्वान किया है.
फोर्डा ने केंद्र सरकार के सामने रखी ये मांगें
फोर्डा ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया के सामने अपनी मांगें रखी हैं. इनमें इंडियन मेडिकल सर्विसेज के गठन, डॉक्टरों के लिए सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट के तहत हमले के शिकार हो रहे रेजिडेंट को सुरक्षा प्रदान करना, बॉन्ड फ्री मेडिकल एजुकेशन, रिस्क हजार्ड एलाउंस, संविदात्मक की जगह स्थायी पोस्ट को ज़्यादा तरजीह, एड हॉक की मियाद 45 दिनों से बढ़ाकर 3 से 6 महीने करने की गुजारिश, नीट पीजी को समय से करवाने की मांग, सेंट्रल रेजीडेंसी स्कीम के पुनरावलोकन की जरूरत, एमसीसी, एनबीई और एनसीसी तीनों की एक बॉडी बनाई जाए, ताकि परीक्षा में देरी न हो जैसी मांगें शामिल हैं.
"सरकार को हमारे इन मुद्दों पर दिखानी चाहिए गंभीरता"
इन मांगों को लेकर फोर्डा के अध्यक्ष डॉक्टर अविरल माथुर ने बताया कि आईएमए, डीएमए, फेमा, दिल्ली एम्स आरडीए, जेडीए आदि संगठनों को आमंत्रित कर रहे हैं, ताकि मिलकर सरकार पर दबाव बनाया जा सके. वहीं, फोर्डा के महासचिव डॉक्टर सर्वेश पांडे ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया और डीजीएचएस को अपनी ये तमाम मांगें सौंपी हैं, लेकिन अब तक उनका रुख साफ नहीं हुआ है. आज तक इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया है, जो मेडिकल व्यवस्था और रेजिडेंट के लिए जरूरी हैं. ड्यूटी के दौरान डॉक्टरों से मारपीट, मरीज का इलाज करते हुए उनका संक्रमित होने से लेकर उनकी मौत तक हो जाती है. सरकार को हमारे इन मुद्दों पर गंभीरता दिखानी चाहिए.
बता दें कि इन तमाम मुद्दों और मांगों को लेकर फोर्डा ने देश के तमाम मेडिकल संगठनों से एक जुट होने का आह्वान भी किया है.