Fatwa On Love Jihad : 'लव जिहाद' को लेकर छिड़ी बहस के बीच सुन्नी मुसलमानों की सबसे बड़ी दरगाह आला हजरत ने एक फतवा दिया है कि इस्लाम में लव जिहाद जैसी कोई चीज नहीं होती....लड़की को धोखा देने का इस्लाम से ताल्लुक नहीं है. मुस्लिम शादी में नियम है कि लड़के वाले लड़की का हाथ मांगे उसके घर जाएंगे और निकाह में भी पहले लड़की से पूछा जाएगा कि उसे ये निकाह कबूल है या नहीं. और एक बार नहीं तीन बार पूछा जाएगा. ऐसे में धोखा देकर शादी करने का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है.
बरेली की दरगाह ए आला हजरत बरेलवी मसलक के सुन्नी मुसलमानों का सबसे बड़ा मरकज है. इसके अकीदतमंद सारी दुनिया में हैं. दरगाह से ताल्लुक रखने वाले दारूल इफ्ता ने 'लव जिहाद' विवाद पर एक फतवा दिया है जिसके मुताबिक, "लव जिहाद नाम की कोई चीज इस्लाम में नहीं है. 'लव जिहाद' लफ्ज धोखे से शादी के लिए इस्तेमाल हो रहा है. जबकि जिहाद पैगंबर की सिखाई मजहबी प्रक्रिया है. लड़की को धोखा देने को जिहाद कहना इस्लाम का अपमान है."
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फतवा मांगने वाले, इंतेजार अहमद कादरी ने कहा, "इस्लामी शरियत की किताबों में 'लव जिहाद' नाम की कोई इस्तेलाह लो पहले थी और ना आज है. और जिस तरीके से आज दुनिया के सामने पेश किया जा रहा है लव जिहाद को, तो इस्लाम इसका खंडन करता है. इस्लाम इसके हक में नहीं है. जबरदस्ती किसी लड़की को इस्लाम कबूल करने पर मजबूर करना इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता."
अरब में इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहिब ने शादी के तरीके में बहुत सुधार किया जिसमें लड़कियों को अहमियत और सुरक्षा दी गई. इसके नतीजे में मुस्लिम शादी में लड़की वाले बेटी का रिश्ता लेकर लड़के के घर नहीं जाते. लड़के वाले लड़की का हाथ मांगने उसके घर आते है. निकाह में पहले लड़की से उसकी मर्जी पूछी जाती है, लड़के से बाद में. लड़की से तीन बार उसकी मर्जी पूछी जाती है. ताकि कोई भ्रम ना रहे. लड़की की मर्जी लेने के वक्त वहां दो गवाह होना भी जरूरी है. निकाहनामे पर लड़की और दो गवाह के दस्तखत होते हैं. शादी में लड़का लड़की को मेहर देता है.
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इंतेजार अहमद ने बताया, "किसी लड़की से जबरन धोखा, फरेब, छल, मक्कारी और अय्यारी के साथ में निकाह कर लेना, शादी करना, इसकी भी इजाजत इस्लाम नहीं देता है. इसलिए जब किसी मुस्लिम लड़की की इजाजत के बगैर निकाह नहीं हो सकता है तो किसी गैर मुस्लिम लड़की से कैसे हो सकता है? "
मुस्लिम उलेमा कहते हैं कि जिहाद दो तरह के हैं, एक तो जिहाद-अल-असगर यानि छोटा जिहाद जिसमें हमलावर से संघर्ष कर मजलूम की रक्षा करना है. और दूसरा जिहाद-अल-अकबर यानि महान जिहाद जिसमें अपने अंदर की बुराई से संर्घष कर एक नेक इंसान बनना है. इसमें जबरदस्ती लड़की का धर्म परिवर्तन नहीं है.
मुस्लिम धर्म गुरू खालिद रशीद कहते हैं. "बल्कि मजहब में बहुत सख्ती से कहा गया है कि इसमें किसी भी तरह की कोई जोर जबरदस्ती नहीं है. लिहाजा कुछ लोग उनका ताल्लुक किसी भी मजहब से हो अगर ऐसा करते हैं तो जाहिर सी बात है कि ये सोसाइटी की खराबी है, मजहब को या किसी समुदाय को इसके लिए टारगेट करना मुनासिब नहीं है."