- महाराष्ट्र में 2025 की शुरुआत में 767 किसानों ने आत्महत्या की यानि की रोज करीह नौ किसानों ने आत्महत्या की.
- किसानों की आत्महत्या के ये आंकड़े राज्य में कृषि संकट की गंभीरता को दर्शाते हैं.
- कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों की आलोचना की है.
- किसान महंगे बीज, खाद और डीजल और मौसम की मांर और सरकारी नीतियों से परेशान हैं.
महाराष्ट्र के राहत और पुनर्वास मंत्री मकरंद जाधव पाटिल ने विधान परिषद में एक आंकड़ा पेश किया है. इसके मुताबिक राज्य में 2025 में जनवरी से मार्च के बीच 767 किसानों ने आत्महत्या की है. इसका मतलब यह हुआ कि राज्य में हर दिन करीब नौ किसानों ने आत्महत्या की है. यह आंकड़ा चौकाने वाला है. यह राज्य के कृषि संकट की तरफ इशारा करता है.यह तो अभी केवल महाराष्ट्र का आंकड़ा, देश के दूसरे राज्यों के आंकड़े भी ऐसे ही भयावह हैं. यह आकंड़ा सामने आने के बाद खेती-किसानी और किसानों पर कर्ज को लेकर चर्चा शुरू हो गई है.
किसानों की आत्महत्या पर राजनीति
ये आंकड़े सामने आने के बाद लोकसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र और राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि किसान हर दिन कर्ज़ की गहराई में डूब रहा है. बीज महंगे हैं, खाद महंगी है, डीजल महंगा है. लेकिन एमएसपी की कोई गारंटी नहीं. जब वो कर्ज माफी की मांग करते हैं, तो उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है. मोदी जी ने कहा था, किसान की आमदनी दोगुनी करेंगे लेकिन आज हाल ये है कि अन्नदाता की जिंदगी ही आधी हो रही है.
उन्होंने कहा है कि ये सिस्टम किसानों को मार रहा है और मोदी जी अपने ही पीआर का तमाशा देख रहे हैं.
गांधी के इस बयान पर बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स पर लिखा कि मृतकों की गिनती की राजनीति घिनौनी होती है, लेकिन राहुल गांधी जैसे लोगों को आइना दिखाना जरूरी है. उनका दावा है कि कांग्रेस-एनसीपी (शरद पवार) के राज में महाराष्ट्र में 55,928 किसानों ने आत्महत्या की थी.
कौन ज्यादा आत्महत्या करते हैं खेतीहर मजदूर या किसान
देश में होने वाले अपराधों को नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो दर्ज करता है. एनसीआरबी के मुताबिक 2022 में देश में खेती-किसानी से जुड़े 11 हजार 290 किसानों ने आत्महत्या की थी. वहीं 2021 में इस तरह के 10 हजार 881 लोगों ने आत्महत्या की थी. यानी कि खेती-किसानी से जुड़े लोगों की आत्महत्या इन दो सालों में 3.75 फीसदी की दर से बढ़ी थी. साल 2022 में जितने लोगों ने आत्महत्या की थी, उसमें से पांच हजार 202 लोग किसान और छह हजार 83 खेतीहर मजदूर थे. वहीं 2021 में आत्महत्या करने वालों में पांच हजार 318 किसान और पांच हजार पांच सौ 63 खेतीहर मजदूर शामिल थे.खेती किसानों से जुड़े लोगों की अत्महत्या के इन आंकड़ों में खास बात यह है कि किसानों से अधिक आत्महत्या खेतीहर मजदूर करते हैं.
साल 2021-2022 में किसानों से अधिक खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की थी.
क्यों आत्महत्या कर रहे हैं किसान
किसान कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. उन्होंने यह कर्ज अलग-अलग मद में लिया है. उनका कर्ज तो बढ़ता जा रहा है, लेकिन उनकी फसल की उचित कीमत नहीं मिल पा रही है. किसानों ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ करीब दो साल तक आंदोलन चलाया. इसमें भी सैकड़ों लोगों की मौत गई. आंदोलन के आगे झुकते हुए सरकार को तीनों कानून वापस लेने पड़े. ये किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी अधिकार बनाने की मांग कर रहे थे.सरकार ने कानून वापस तो ले लिए लेकिन एमएसपी को आज तक कानूनी गारंटी नहीं बनाया है. इससे किसानों पर दवाब है. आज भी ऐसे वीडियो ऐसे आते हैं जिसमें किसानों को उनकी फसल का उतित मूल्य न मिलने पर उसे नुकसान करते या सड़क पर फेंकते हुए नजर आते हैं. किसान अपनी फसल तैयार करने के लिए कर्ज लेकर खेत में पैसे लगाते हैं.लेकिन जब उतित कीमत नहीं मिलती है तो टूट जाते हैं.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार किसानों के लिए पीएम-किसान सम्मान निधि और फसल बीमा योजना जैसी योजनाएं तो चला रही है, लेकिन ये किसानों के लिए ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. इसलिए किसान एमएसपी की कानूनी गारंटी बनाने के अलावा कर्जमाफी और बीज-खाद की कीमतों पर नियंत्रण की भी मांग कर रहे हैं. इससे किसानों को जमीनी स्तर पर राहत नहीं मिल पाती है. देश में पिछली बार किसानों के कर्जे उस समय माफ किए गए थे, जब केंद्र में डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार थी.
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