- भारतीय सेना की दक्षिणी कमान ने त्रिशूल युद्धाभ्यास में तीनों सेनाओं की संयुक्त तैयारियों का प्रदर्शन किया
- इस दौरान इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, साइबर, ड्रोन, एंटी ड्रोन और इंटेलिजेंस जैसे विविध क्षेत्रों पर फोकस किया गया
- कच्छ में सेना, नौसेना, वायुसेना, तटरक्षक बल और BSF ने प्रशासन के साथ मिलकर इंटीग्रेटेड क्षमताओं को परखा
भारतीय सेना की दक्षिणी कमान ने ‘त्रिशूल' युद्धाभ्यास के तहत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के मंत्र के साथ तीनों सेनाओं की तैयारियों का शानदार प्रदर्शन किया. इस अभ्यास का मकसद आर्मी, नेवी और एयरफोर्स तीनों की एक साथ मिलकर काम करने की क्षमता को परखना और भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करना है.
त्रिशूल एक्सरसाइज के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, साइबर, ड्रोन, एंटी ड्रोन टेक्नोलोजी के अलावा इंटेलिजेंस, सर्विलांस, एयर डिफेंस कंट्रोल और रिपोर्टिंग जैसे विविध क्षेत्रों में सेनाओं की संयुक्त ताकत का अभ्यास किया गया. यह दिखाता है कि हमारी सेनाएं जमीन, समुद्र और आसमान तीनों जगह एक साथ काम करने में किस तरह सक्षम हैं.
थार रेगिस्तान में मरुज्वाला और अखंड प्रहार नामक अभ्यास के जरिए दक्षिणी कमान ने कठिन हालात में संयुक्त ऑपरेशन करने, तेजी से मूवमेंट और सटीक फायरिंग की रणनीति को आजमाया. यह अभ्यास असली युद्ध जैसी स्थिति में किया गया.
कच्छ में सेना, नौसेना, वायुसेना, तटरक्षक बल और बीएसएफ के संयुक्त अभ्यास के दौरान इंटीग्रेटेड ऑपरेशनल क्षमताओं को परखा गया, जिसमें स्थानीय प्रशासन से भी करीबी तालमेल बनाकर रखा गया. यह दिखाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की स्थिति में सेना और सिविल प्रशासन किस तरह मिलकर काम कर सकते हैं.
त्रिशूल अभ्यास का आखिरी चरण सौराष्ट्र तट पर आयोजित होगा, जहां थल और जल पर सेनाओं अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करेंगी. इस दौरान दक्षिणी कमान के स्पेशल फोर्स समुद्र तट पर उतरने का अभ्यास करेगी. इसका उद्देश्य पूरा तालमेल बनाकर हर तरफ से सुरक्षा तैयारियों को परखना है.
त्रिशूल अभ्यास भारतीय सशस्त्र बलों की संयुक्तता, आत्मनिर्भरता और नवाचार के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है, जो भारतीय सेना की ‘दशक परिवर्तन' पहल का हिस्सा है. इसके तहत सेना को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करने के मकसद से 5 प्रमुख क्षेत्रों पर जोर दिया जा रहा है.
इनमें संयुक्तता व एकीकरण, बलों का पुनर्गठन, आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल, सिस्टम में सुधार और सैनिकों का कौशल विकास प्रमुख है. त्रिशूल युद्धाभ्यास इन्हें एक साथ जोड़ते हुए दिखाता है कि भारतीय सेना किस तरह लगातार खुद को बदल रही है और भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए हरदम तैयार है.














