- दया नायक ने पिछले इक्कीस वर्षों में अपनी रिवॉल्वर से एक भी गोली नहीं चलाई , अंतिम बार 2004 में उपयोग किया था.
- दया नायक ने अपने गुरु के साथ मिलकर लगभग 80 गैंगस्टर और आतंकियों को एनकाउंटर में ढेर किया था और किंवदंती बने.
- 2006 में दया नायक पर आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगे, जिसमें स्कूल खोलने के लिए बड़े निवेश पर सवाल उठे थे,
'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' और पिछले दो दशक से ज्यादा समय से एक भी गोली फायर नहीं हुई. जी हां, हम बात कर रहे हैं दया नायक की जिन्होंने पिछले 21 सालों में अपनी रिवॉल्वर से एक भी गोली नहीं चलाई है. आखिरी बार दया ने साल 2004 में मलाड में एक गैंगस्टर को मारने के लिए इसे प्रयोग किया था. बांद्रा स्थित मुंबई क्राइम ब्रांच ऑफिस में अपनी डेस्क पर गर्व से रखी जाने वाली इस रिवॉल्वर ने ही उन्हें 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट ऑफिसर' के तौर पर मशहूर कर दिया था. दया उस दौर के पुलिस अधिकारी थे जो कभी अंडरवर्ल्ड के खिलाफ कार्रवाई के लिए जाने जाते थे. दया नायक ने अपने गुरु के साथ मिलकर लगभग 80 कथित गैंगस्टर और आतंकियों को ढेर किया था. इन वर्षों में नायक एक शहरी किंवदंती बन गए हैं. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने उन्हें अलग-अलग तरह से पेश किया है और उनके जीवन पर कई फिल्में भी बनी हैं. वह प्रदीप शर्मा, विजय सालस्कर, प्रफुल्ल भोसले, रवींद्र आंग्रे आदि जैसे प्रसिद्ध नामों वाले लोगों की कतार में आखिरी शख्स हैं. मैं 1999 से एक युवा रिपोर्टर के तौर पर नायक को जानता हूं और उनके जीवन के उतार-चढ़ाव देख चुका हूं. मेरी पुस्तक 'अयोध्या के बाद बॉम्बे' का एक उप-अध्याय उनके जीवन पर प्रकाश डालता है. प्रस्तुत है एक अंश:
... और दया अपने आंसू नहीं रोक पाए
लंबे, हट्टे-कट्टे और मूंछों वाले दया नायक 1990 के दशक के अंत में एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर उभरे और उनका व्यक्तित्व उनके नाम, जिसका हिंदी में अर्थ 'दया' होता है, के बिल्कुल विपरीत हो गया. कई गैंगस्टरों को मारने के बाद, जिनका नाम खौफ का पर्याय बन गया था, अब बदहाल स्थिति में थे. मेरे कैमरे ने उन्हें रोते हुए रिकॉर्ड किया, लेकिन मेरा मन उस दृश्य को स्वीकार नहीं कर सका. एक साहसी पुलिस अधिकारी, अपने सभी वरिष्ठों का चहेता और हमेशा तत्पर रहने वाला अधिकारी, दया नायक एनकाउंटर स्थलों पर अपनी कलाश्निकोव तानते हुए मेरे कैमरे के सामने पोज देने से कभी नहीं हिचकिचाते थे. आदमी रोते हैं, पुलिसवाले रोते हैं. और जो कोई भी यह मानता है कि उन्हें उनमें इंसानियत देखने से नहीं चूकना चाहिए.
दया नायक पर आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में आरोप लगाया गया था. सालों से कमाई इज्जत, जो अपराधियों में उनके खौफ के चलते मिला था, अब मिटती हुई सी नजर आ रही थी. दया तटीय कर्नाटक के एक गांव से थे और कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के लिए अपने रिश्तेदारों के साथ मुंबई (उस समय मुंबई बॉम्बे था) ले गए. यहां वह पढ़ाई के साथ छोटी-मोटी नौकरियां करके अपना गुजारा भी कर रहे थे.
1995 बने पुलिस फोर्स का हिस्सा
महाराष्ट्र लोक सेवा परीक्षा परीक्षा पास करने के बाद साल 1995 में उन्हें बॉम्बे पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के तौर पर भर्ती किया गया. जुहू पुलिस स्टेशन में तैनात रहते हुए, नायक की मुलाकात इंस्पेक्टर प्रदीप शर्मा से हुई, जो अपराध का पता लगाने में नायक की क्षमता से बहुत प्रभावित हुए. जल्द ही शर्मा ने उन्हें अपनी टीम में शामिल कर लिया और दोनों ने मिलकर कई एनकाउंटर्स को अंजाम दिया. नायक की ख्याति आग की तरह फैल गई और दोनों कई सीनियर अधिकारियों के चहेते बन गए. वे सब-इंस्पेक्टर रैंक के इकलौते अधिकारी थे जिन्हें वरिष्ठ अधिकारियों की तरह एक अलग केबिन मिला हुआ था, जिससे उनके कुछ साथी ईर्ष्या करते थे.
फिर हुआ कुछ ऐसा...
साल 2006 की शुरुआत में नायक की मुश्किलें तब और बढ़ गईं जब एक मराठी अखबार में खबर आई कि दया नायक अपने पैतृक गांव येनेहोले में हाई-टेक स्कूल खोलने जा रहे हैं. दया ने इस स्कूल को मां राधा नायक के नाम पर बनाया था. उस दौर में इस स्कूल के उद्घाटन समारोह में अमिताभ बच्चन, सुनील शेट्टी और आफताब शिवदासानी जैसी हस्तियां शामिल हुईं. बताया जाता है कि दया ने इस प्रोजेक्ट पर करोड़ों रुपये खर्च किए थे. इस खबर ने कई लोगों को हैरान कर दिया क्योंकि एक सब-इंस्पेक्टर इतना बड़ा निवेश कैसे कर सकता है, यह जानकर सब हैरान थे.
यह अनुमान लगाया गया कि दया ने एक पुलिस अधिकारी के रूप में अपने पद का दुरुपयोग किया और स्कूल शुरू करने के लिए व्यापारियों से पैसे ऐंठे. एंटी-करप्शन ब्यूरो ने उनके खिलाफ आय के ज्ञात स्रोत से ज्यादा संपत्ति अर्जित करने का मामला दर्ज कर लिया. नायक छिप गए और अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया. जमानत याचिका खारिज होने और उनकी जेल की सजा नजदीक आने पर, दया ने आखिर में सरेंडर करने से पहले एक अज्ञात स्थान पर मुझे एक इंटरव्यू दिया.
दया के खिलाफ हुई साजिश!
दुखी और पीड़ित दया ने आरोप लगाया कि उसके पूर्व सहयोगियों ने जलन के कारण उनके खिलाफ साजिश रची थी. उन्होंने कहा था, 'मैं पुलिस फोर्स के अंदर की कलह का शिकार हूं.' इस मामले में दया की पत्नी और दो और दोस्तों पर भी मामला दर्ज किया गया था. दया को दो महीने की कैद हुई और जब एंटी-करप्शन ब्यूरो 60 दिनों की तय समयसीमा के अंदर उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने में असफल रहा, तो उन्हें जमानत मिल गई. बाद की जांच में नायक के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं जुटाया जा सका और आखिर में वह बरी हो गए.
मुंबई की सड़कों पर, गैंगस्टर एक-दूसरे के खून के प्यासे थे, लेकिन साथ ही, उन लोगों के बीच एक समानांतर गैंगवार भी छिड़ा हुआ था, जो उन्हें खत्म करने के लिए शुरू हुआ था. चूंकि मैं और मेरे कुछ साथी क्राइम रिपोर्टर अक्सर इन पुलिसकर्मियों से बात करते थे, इसलिए तस्वीर हमें दूसरों की तुलना में ज्यादा साफ नजर आती थी. प्रदीप शर्मा और दया नायक ने मिलकर 80 से ज्यादा गैंगस्टरों को ढेर किया था और उन्हें हीरो की तरह पेश किया गया था. गैंगस्टर उनके नामों से ही खौफ खाते थे.
कई फिल्मों की प्रेरणा
इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में इस जोड़ी ने कई बॉलीवुड फिल्मों को प्रेरित किया, लेकिन कई बॉलीवुड स्क्रिप्ट्स की तरह, नए किरदारों के आने से उनकी दोस्ती पर भी असर पड़ा. जैसे-जैसे शर्मा की टीम में और अधिकारी शामिल होते गए, उनके और नायक के बीच मतभेद और गलतफहमियां बढ़ती गईं. इस बात को लेकर अफवाहें फैलने लगीं कि असल में वो अधिकारी कौन थे जिन पर फिल्में बन रही थीं. यह माना गया कि नायक की प्रसिद्धि उनके सीनियर पर भारी पड़ रही थी और इसलिए उन्हें कमतर कर दिया जाना चाहिए. आय से अधिक संपत्ति के मामले में राहत मिलने के बाद, दया नायक को पुलिस बल में बहाल कर दिया गया.