डॉग पॉलिसी फेल? नोएडा की सोसाइटी में फिर हुआ झगड़ा, चले ईंट-डंडे वीडियो वायरल

आजकल शहरों की गगनचुंबी इमारतों में ‘पब्लिक स्पेस’ एक बहुमूल्य वस्तु बन चुकी है. खासकर जब वह पार्क हो. एक ओर जहां पालतू पशु प्रेमी चाहते हैं कि उनके डॉग्स को खुलकर दौड़ने-घूमने की जगह मिले, वहीं दूसरी ओर बच्चों और बुजुर्गों वाले परिवार इन जानवरों को खतरे की नजर से देखते हैं.

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नई दिल्ली:

ग्रेटर नोएडा वेस्ट की अजनारा होम्स सोसाइटी में कुत्तों को लेकर हुआ विवाद एक बार फिर सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रहा है. एक सामान्य-सी शाम का दृश्य, जब कोई अपने पालतू कुत्ते को टहला रहा था — देखते ही देखते मैदान-ए-जंग बन गया. बात इतनी बढ़ी कि एक व्यक्ति ने ईंट उठा ली, दूसरा डंडा लेकर मैदान में कूद पड़ा. गाली-गलौज, धमकी और झगड़ा सब कुछ कैमरे में कैद हो गया, और फिर इंटरनेट पर वायरल हो गया.

इस वायरल वीडियो में एक व्यक्ति कुत्ते को बिना बेल्ट के पार्क में घुमा रहा था. तभी दूसरा निवासी उससे उलझ पड़ा, आरोप लगाते हुए कि कुत्ता unleashed है, यानी बेल्ट के बिना खुलेआम घूम रहा है. सुरक्षा और बच्चों की चिंता जताते हुए उस व्यक्ति ने विरोध किया, लेकिन बात यहीं नहीं थमी. देखते ही देखते दोनों पक्षों के बीच तकरार बढ़ गई. वीडियो में एक व्यक्ति को हाथ में डंडा लहराते और धमकाते देखा जा सकता है, जबकि दूसरा पक्ष ईंट उठाकर जवाब देने की मुद्रा में नजर आता है.

यह कोई पहली घटना नहीं है जब ग्रेटर नोएडा या दिल्ली-एनसीआर की हाउसिंग सोसायटी में पालतू कुत्तों को लेकर विवाद हुआ हो. बीते कुछ महीनों में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जहां पालतू जानवरों के कारण झगड़े, मारपीट, FIR तक की नौबत आ चुकी है. कभी कुत्ते के काटने को लेकर, तो कभी खुले में शौच को लेकर, तो कभी लिफ्ट में पालतू जानवर को ले जाने को लेकर लोगों के बीच विवाद ने हिंसक रूप ले लिया है.

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डॉग पॉलिसी बनी लेकिन पालन नहीं

ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी द्वारा हाल ही में लागू की गई "डॉग पॉलिसी" में साफ तौर पर उल्लेख है कि कोई भी कुत्ता घर से बाहर सिर्फ पट्टे (leash) से बंधा होकर ही निकाला जा सकता है. इसके अलावा सार्वजनिक स्थानों पर शौच करने की स्थिति में उसकी सफाई की जिम्मेदारी कुत्ते के मालिक की है. यदि नियमों का पालन नहीं होता है, तो जुर्माने और कानूनी कार्रवाई का भी प्रावधान है.

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लेकिन अजनारा होम्स की घटना ने एक बार फिर दिखा दिया है कि पॉलिसी फाइलों में रह गई है और जमीनी हकीकत कुछ और ही है. लोगों में जागरूकता की कमी, नियमों को लेकर ढिलाई और प्रशासन की निष्क्रियता ने हालात को और बिगाड़ दिया है.

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पार्क, पालतू और पब्लिक

आजकल शहरों की गगनचुंबी इमारतों में ‘पब्लिक स्पेस' एक बहुमूल्य वस्तु बन चुकी है. खासकर जब वह पार्क हो. एक ओर जहां पालतू पशु प्रेमी चाहते हैं कि उनके डॉग्स को खुलकर दौड़ने-घूमने की जगह मिले, वहीं दूसरी ओर बच्चों और बुजुर्गों वाले परिवार इन जानवरों को खतरे की नजर से देखते हैं.

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पिछले साल नोएडा सेक्टर-74 में एक महिला पर उसके ही सोसाइटी के डॉग द्वारा बच्चे को काटने का आरोप लगा था. इसके बाद इलाके में तनाव का माहौल बन गया था और कई जगहों पर डॉग बैन की मांग तक उठी थी. वहीं गुड़गांव की एक सोसाइटी में दो फ्लैट ओनर्स के बीच लिफ्ट में कुत्ता ले जाने को लेकर हाथापाई की घटना भी काफी चर्चित रही थी.

क्या सिर्फ नियम ही काफी है? 

समस्या सिर्फ कानून या नियमों की नहीं है यह समाज की बदलती बनावट और आपसी समझ की भी है. एक वर्ग पालतू जानवरों को परिवार का हिस्सा मानता है, जबकि दूसरा वर्ग उन्हें खतरे का प्रतीक समझता है. जब तक इन दोनों के बीच संवाद, समझ और सामंजस्य नहीं बनता, तब तक पार्क ईंटों और डंडों की लड़ाई के मैदान बनते रहेंगे.

प्रशासन की तरफ से नहीं होते हैं एक्शन

घटना के बाद जब स्थानीय निवासियों ने प्राधिकरण से शिकायत की, तो उन्हें आश्वासन मिला कि "मामले की जांच की जा रही है और दोषियों पर कार्रवाई होगी". लेकिन यह आश्वासन अब कई बार दोहराया जा चुका है — नतीजा फिर भी वही है: हर बार एक नया वीडियो, एक नई बहस और एक नई शर्मिंदगी.

क्या है रास्ता?

  • सख्त निगरानी: सोसाइटी में CCTV के अलावा रेजिडेंट वेलफेयर असोसिएशन को नियमों के पालन पर नजर रखनी होगी.
  •  जागरूकता अभियान: पालतू पशु पालकों को उनके अधिकार और जिम्मेदारियों की जानकारी होनी चाहिए.
  • डेडिकेटेड डॉग एरिया: पार्क के भीतर एक निश्चित क्षेत्र कुत्तों के लिए निर्धारित किया जा सकता है ताकि सभी निवासियों की सहूलियत बनी रहे.
  • संवाद और समझौता: डायलॉग और सहमति से ज़्यादातर टकराव टाले जा सकते हैं.

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