सदन में संवाद, सहमति और समाधान ही लोकतांत्रिक परंपरा को जीवित रखते हैं- ओम बिरला

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सदन में संवाद, सहमति और समाधान ही लोकतांत्रिक परंपरा को जीवित रखते हैं. नगरपालिकाओं में भी ऐसी आदर्श कार्यशैली को अपनाना होगा. उन्होंने कहा कि हमें हर शहरी मुद्दे को जनआंदोलन में बदलना होगा.

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  • शहरी स्थानीय निकायों को नागरिक मुद्दों के समाधान के लिए नियमित प्रश्नकाल की आवश्यकता है
  • लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने नगरीय निकायों की भूमिका को लोकतंत्र को मजबूत करने को महत्वपूर्ण बताया
  • उन्होंने 2047 तक विकसित भारत के निर्माण में नगरपालिका की भागीदारी की आवश्यकता पर जोर दिया
  • नगरीय निकायों में संवाद और समाधान के माध्यम से लोकतांत्रिक परंपरा को जीवित रखने की बात कही गई
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नई दिल्ली:

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने गुरुवार को कहा कि शहरी स्थानीय निकायों को नागरिकों से संबंधित मुद्दों को उठाने के लिए नियमित प्रश्नकाल और शून्यकाल के साथ संसद की तर्ज पर काम करना चाहिए. उन्होंने कहा, कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शहरी निकाय के सभापतियों का यह सम्मेलन लोकतंत्र को मजबूत करने का मंच है. लोकतंत्र को जड़ों तक पहुंचाने में नगरीय निकायों की भूमिका सबसे अहम है.

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि विकसित भारत के निर्माण में शहरी निकायों को नई जिम्मेदारी निभानी होगी. 2047 तक के सपनों को पूरा करने में नगरपालिकाओं की भागीदारी जरूरी है. उन्होंने कहा कि नगरीय निकाय लोकतंत्र की असली ताकत हैं. इनकी जिम्मेदारी है कि हर नागरिक तक लोकतंत्र के आदर्श पहुंचें.

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सदन में संवाद, सहमति और समाधान ही लोकतांत्रिक परंपरा को जीवित रखते हैं. नगरपालिकाओं में भी ऐसी आदर्श कार्यशैली को अपनाना होगा. उन्होंने कहा कि हमें हर शहरी मुद्दे को जनआंदोलन में बदलना होगा.
जैसे स्वच्छता आंदोलन बना, वैसे ही हर विषय में जनता की भागीदारी जरूरी है. अब नगरपालिकाओं में भी प्रश्नकाल और शून्यकाल की व्यवस्था होनी चाहिए. हर समस्या पर खुलकर चर्चा और जवाबदेही सुनिश्चित हो.

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि जनता की उम्मीदें सीधे सदन की कार्यवाही से जुड़नी चाहिए. नगरपालिका के निर्णय जनता की अपेक्षाओं पर खरे उतरें. लोकतंत्र की पद्धतियों को सरल और आकर्षक बनाना होगा ताकि गांव से शहर तक लोग लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़े रहें.

उन्होंने कहा कि जैसे संसद में व्यवधान कम हुआ है, वैसे ही नगरपालिकाओं में भी सदन सुचारू रूप से चले. हंगामा लोकतंत्र की आदर्श परंपरा नहीं है. हर राजनीतिक दल को सदन में रचनात्मक चर्चा में सहयोग करना चाहिए. सभी मिलकर नगर की समस्याओं पर सकारात्मक बहस करें. सदन से समाधान तक की यात्रा जनता के हित में होनी चाहिए. हमें हर मुद्दे पर ठोस कार्रवाई और समीक्षा करनी होगी.

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