ऊपर रेल और नीचे चलती है गाड़ियां, दिल्ली का ये 150 साल पुराना पुल क्यों है खास

लोहे का पुल न केवल दिल्ली की ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा है, बल्कि यह आज भी दिल्ली की लाइफलाइन की भूमिका निभा रहा है. यह इंजीनियरिंग का एक ऐसा नमूना है, जो समय की कसौटी पर एकदम खरा उतरा है और आने वाली पीढ़ियों को पुरानी तकनीकी और ऐतिहासिक विरासत की याद दिलाता रहेगा.

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  • दिल्ली में यमुना नदी पर बना लोहे का पुल लगभग 150 पुराना
  • इस पुल पर ऊपर से ट्रेन गुजरती है और नीचे गाड़ियां दौड़ती है
  • इस पुल की कुल लंबाई 2640 फीट है और इसे अंग्रेजों ने बनवाया था
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नई दिल्ली:

देश की राजधानी दिल्ली का इतिहास अपने आप में ढेरों किस्से कहानियां समेटे हुए हैं. यही वजह है कि दिल्ली की किसी भी चीज का जिक्र हो तो लोगों की दिलचस्पी अपने आप बढ़ती चली जाती है. दिल्ली महज देश की राजधानी नहीं है बल्कि अपने भीतर कई ऐतिहासिक और तकनीकी चमत्कार समेटे हुए हैं. इन्हीं में से एक है, यमुना नदी पर बना एक ऐसा लोहे का पुल, जिसे देखकर आज भी लोग हैरान रह जाते हैं. दिल्ली का सालों पुराना यह पुल न केवल अपनी मजबूती के लिए मशहूर है, बल्कि इसके निर्माण की कहानी भी उतनी ही रोचक है.

150 साल पुराना पुल, क्यों 249 के नाम से फेमस

यह पुल, जिसे पुल संख्या 249 के नाम से जाना जाता है, जो कि करीब 150 साल पुराना हो चुका है और इसे अंग्रेजों ने 1863 में बनवाना शुरू किया था. इस पुल को बनाने का काम साल 1866 में पूरा हुआ. दिल्ली के इस ऐतिहासिक पुल को बनाने में तकरीबन 3500 टन लोहे का इस्तेमाल किया गया है. यही वजह है कि ये पुल आज भी पूरी मजबूती से खड़ा है. इस पुल की सबसे खास बात ये है कि ये डबल-डेकर है. इस पुल के ऊपर से ट्रेनें गुजरती हैं और नीचे से सड़क यातायात चलता है. ऊपरी हिस्से में दो लेन वाली रेलवे लाइन है, जो पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन को शाहदरा से जोड़ती है, जबकि निचले वाले हिस्से में वाहन चलते हैं.

क्यों है खास भारत दिल्ली का पुराना पुल

यह दृश्य दिल्ली में ही देखने को मिलता है, जहां एक ही पुल पर रेल और सड़क दोनों का संचालन होता है. दिल्ली का ये पुल भारत के सबसे लंबे और पुराने पुलों में से एक है. इसकी कुल लंबाई 2640 फीट (804.67 मीटर) है, जिसमें 202.5 फीट (61.72 मीटर) के 12 स्पैन शामिल हैं. इसका निर्माण ईस्ट इंडिया रेलवे ने 1,616,335 रुपये की लागत से करवाया था. जब-जब यमुना में बाढ़ आई, तब भी ये पुल चट्टान की तरह खड़ा रहा. बाढ़ के समय इसे केवल यातायात के लिए बंद किया गया, लेकिन इसकी संरचना पर कभी कोई असर नहीं पड़ा. यही वजह है कि भारतीय रेलवे के विशेषज्ञों ने इसे "भारत की अमूल्य धरोहर" करार दिया है.

क्यों किया गया इस पुल को निर्माण

इस पुल का निर्माण अंग्रेजों ने कोलकाता और दिल्ली को जोड़ने के उद्देश्य से किया था. भारत में पहली ट्रेन चलने के बाद रेलवे का विस्तार तेजी से किया जा रहा था और दिल्ली को कोलकाता से जोड़ने के लिए यमुना पर पुल बनाना जरूरी हो गया था. हालांकि शुरुआत में इस पुल पर केवल एक रेलवे लाइन थी, लेकिन 1913 में दूसरी लाइन भी जोड़ दी गई, जिसकी लागत 14,24,900 पाउंड थी. पुल के दोनों छोर पर सुरक्षा के लिए एक कमरा भी बनाया गया था, जिसमें एक सुरक्षाकर्मी तैनात रहता था. वह खिड़की से पुल पर आने-जाने वाले वाहनों पर नजर रखता था. आज भी वह कमरा और खिड़कियां पुल के अंदर देखी जा सकती हैं.

यमुना नदी पर बना लोहे का पुल, जिसे रेलवे की तकनीकी भाषा में पुल संख्या 249 कहा जाता है, इंजीनियरिंग विरासत का एक बेजोड़ नमूना है. ये पुल न केवल दिल्ली को शाहदरा से जोड़ता है, बल्कि देश के पूर्व और उत्तर को भी रेल मार्ग से जोड़ने में अहम भूमिका निभाता है.

इस पुल का निर्माण 1863 में शुरू हुआ और 1866 में पूरा हुआ, इसे ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी ने बनवाया था.
इस पुल को 1867 में आम जनता के लिए खोला गया, यह पुल भारत में रेलवे विस्तार की एक महत्वपूर्ण कड़ी बना. इस डबल-डेकर ट्रस ब्रिज है, शाहदरा और पुरानी दिल्ली को जोड़ता है और दिल्ली-गाजियाबाद रेलखंड पर स्थित है. शुरुआत में यह पुल एकल रेलवे लाइन के लिए बनाया गया था, लेकिन 1913 में इसे दोहरी लाइन में बदल दिया गया.  1930 में इसके नीचे सड़क मार्ग को चौड़ा किया गया ताकि सड़क यातायात भी सुगमता से चल सके. यह पुल भाप इंजन से लेकर इलेक्ट्रिक इंजन तक के युग का गवाह रहा है.

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