1958 से आज तक डूब रहा दिल्ली का 'मिंटो', जानें मॉनसून पर मजाक बन गए ब्रिज की कहानी

Delhi Rain : मिंटो ब्रिज की कहानी बताती है कि भारत में किस कदर लापरवाही बरती जाती है. एक समस्या आजादी के बाद के समय से चली आ रही है लेकिन उसका समाधान नहीं किया जा सका. कितनी ही सरकारें आईं और गईं, मगर हालात अब भी वही है.

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Delhi Rain : देश में बहुत कुछ बदला है मगर मिंटो ब्रिज अंडरपास पर बारिश में होने वाला जलभराव 1958 से अब तक जारी है.

Minto Bridge Story:  दिल्ली एकबार फिर बारिश में डूब गई. हर बार की तरह दिल्ली के बारिश में डूबने की तस्वीर देश और दुनिया में दिखाई जा रही है. इसमें अधिकतर तस्वीरें मिंटो ब्रिज (Minto Bridge) की हैं. यह बरसात में दिल्ली के डूबने की क्लासिक तस्वीर है. क्लासिक इसलिए क्योंकि आजादी के बाद से यहीं की तस्वीरें दिल्ली के बारिश में डूबने की मुनादी करती हैं. कनॉट प्लेस को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन और पुरानी दिल्ली के अजमेरी गेट की ओर से जोड़ने वाले विवेकानंद रोड को जोड़ने वाली इस मिंटो ब्रिज की कहानी बड़ी बदनसीब है. इसके बनने की सही तारीख को लेकर जानकारों के बीच मतभेद है. पत्रकार और इतिहासकार आरवी स्मिथ निर्माण की तारीख 1933 बताते हैं. वहीं दिल्ली विकास प्राधिकरण के एक वास्तुकार और योजनाकार एके जैन निर्माण का समय 1926 बताते हैं.  इसका निर्माण नई दिल्ली रेलवे स्टेशन तक एक नई रेलवे लाइन ले जाने के लिए किया गया था. इस पुल का नाम 1905 से 1910 तक भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल रहे लॉर्ड मिंटो 2 के नाम पर रखा गया था. बाद में इसका नाम बदलकर शिवाजी ब्रिज कर दिया गया. विवेकानंद रोड को भी पहले मिंटो रोड के नाम से जाना जाता था.

कब से है जलभराव की समस्या?

भारत की आजादी के बाद से ही मिंटो ब्रिज के नीचे बने अंडरपास को जलभराव की समस्या के लिए जाना जाता है. इस स्थान पर जलभराव की समस्या 1958 से है. यह इतना पेचीदा मुद्दा बन गया कि लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी)  ने कई सालों तक पूरे मानसून के दौरान इस क्षेत्र को 24 घंटे सीसीटीवी निगरानी में रखा. जुलाई 1958 में हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट में दिल्ली के तत्कालीन नगर निगम आयुक्त पीआर नायक ने कहा था कि उन्होंने मिंटो ब्रिज के नीचे जलभराव को रोकने के लिए पंप सेट लगाए हैं. यह उपाय रेड्डी समिति द्वारा सुझाए गए बाढ़ विरोधी उपायों के हिस्से के रूप में किया गया था. हालांकि, 66 साल बाद भी अब तक कोई भी एजेंसी इस समस्या का समाधान नहीं कर पाई. 

1958 में बना था बड़ा मुद्दा

एमसीडी की कार्य समिति के अध्यक्ष रहे जगदीश ममगैन ने एक बार बताया था कि यह पुल एक विरासत संरचना है. कोई भी केवल इंजीनियरिंग समाधानों के साथ प्रयोग कर सकता है. यहां पहला पंप 1958 में स्थापित किया गया था, जब पुल के नीचे बाढ़ नगरपालिका सदन में एक बड़ा मुद्दा बन गया था. 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान पुल में दो और ट्रैक जोड़ने और इसकी ऊंचाई बढ़ाने के लिए नीचे से सड़क को समतल करने की योजना थी, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ सकी.

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जलभराव रोकने के क्या हुए प्रयास?

जुलाई 2018 में जब दो डीटीसी बसें बाढ़ वाले अंडरपास में डूब गईं और 10 लोगों को बचाया गया, तो दिल्ली उच्च न्यायालय ने सभी संबंधित एजेंसियों को प्रयासों में समन्वय करने और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया था. हालांकि, समस्या का कोई ठोस समाधान अभी तक नहीं खोजा जा सका है. 1983 से 2017 तक नगर निगम पार्षद सुभाष आर्य ने बताया था कि उन्होंने 1947 से अंडरपास में बाढ़ देखी है. तब वह सिर्फ पांच साल के थे. इसमें गहरी ढलान है और स्वामी विवेकानंद मार्ग के साथ-साथ सीपी सहित सभी संपर्क सड़कों का पानी इसमें बहता है. इसका कोई आउटलेट नहीं है. आर्य ने कहा कि अंडरपास तब भी एक सामान्य बाढ़ बिंदु था. मानसून के दौरान इसमें बाढ़ आ जाती थी और बसें फंस जाती थीं. 1967 में जल प्रवाह को प्रबंधित करने के लिए ढलान को चौड़ा किया गया, लेकिन इससे कोई खास मदद नहीं मिली. 1980 के दशक में डीडीयू मार्ग के दोनों किनारों पर बरसाती पानी की नालियां बिछाई गईं. 

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मौत के बाद दावे और आज की हकीकत

2020 में तो एक व्यक्ति की यहां बरसाती पानी में डूबकर मौत हो गई. उसका वाहन इस अंडरपास में इकट्ठा हुए बरसाती पानी में फंस गया था. हालांकि 2022 में पहली बार जलभराव की कोई सूचना नहीं थी. 2023 में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने मिंटो ब्रिज अंडरपास को राजधानी में जलभराव वाले हॉट स्पॉट की सूची से हटा दिया और दावा किया कि उनके द्वारा लगाए गए पंप सड़क जभराव होने से रोक देंगे. हालांकि, आज फिर बारिश ने मिंटो ब्रिज पर बने अंडरपास पर किए गए काम की पोल खोल दी. फिर अंडरपास भर गया और इसे यातायात के लिए बंद करना पड़ा.

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