दिल्ली का रण: AAP का चौका या BJP को मौका... चुनावी पंडितों से जानिए किसमें है कितना दम

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Elections) को लेकर एनडीटीवी ने चार राजनीतिक विश्‍लेषकों से चर्चा की. आइये जानते हैं कि चुनावी विश्‍लेषक इस चुनाव को कैसे देखते हैं.

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नई दिल्‍ली :

दिल्‍ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Elections) को लेकर प्रचार खत्‍म हो गया है. अब सबसे बड़ा सवाल है कि क्‍या बीते तीन चुनावों में सरकार बना रही आम आदमी पार्टी क्या चौका लगा पाएगी? या दिल्ली में इस बार बदलाव की हवा है? साथ ही यह सवाल भी पूछे जा रहे हैं कि आम बजट के दौरान टैक्‍स में रियायत से क्‍या भाजपा को फायदा होगा और क्‍या पार्टी दिल्‍ली में 26 साल पुराने वनवास को खत्‍म करने में कामयाब होगी. आखिर दिल्‍ली के रण में किसने कितना दम है, यह जानने के लिए हर कोई बेचैन है. 

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिल्‍ली की सातों सीटों पर जीत दर्ज की और उसे 46 फीसदी वोट मिले. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला. हालांकि आम आदमी पार्टी को 33 फीसदी और कांग्रेस को 15 फीसदी वोट मिले. हालांकि इसके कुछ ही महीनों बाद हुए 201 के दिल्‍ली विधानसभा चुनाव में खेल पूरी तरह से पलट गया. AAP ने विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीती और उसे 54 फीसदी वोट मिले. लोकसभा चुनाव की तुलना में AAP के मतों में 21 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. वहीं भाजपा का वोट 14 फीसदी और कांग्रेस का वोट 5 फीसदी घट गया. 

फिर स्विंग होगा या हवा उलटी बहेगी?

स्विंग वोटों का यही खेल 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 के विधानसभा चुनावों में भी देखने को मिला. 2024 में लोकसभा चुनावों में फिर भाजपा ने सातों सीटें जीत लीं. अब 2025 के विधानसभा चुनाव सामने हैं और ये सवाल है कि इस बार क्या फिर स्विंग होगा या हवा उलटी बहेगी?

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अगर बीजेपी ने आप के 5 फीसदी वोट काट लिए तो आप की सीटें 62 से घट कर 46 रह जाएंगी, जबकि बीजेपी की 8 से बढ़ कर 24 हो जाएंगी, लेकिन अगर कांग्रेस ने भी अपना प्रदर्शन सुधार लिया और उसने भी 5 फीसदी वोट काट लिए तो आप 31 सीटों पर सिमट जाएगी और बीजेपी को 39 सीटें मिलेंगी, भले कांग्रेस को एक भी सीट न मिले. अगर कांग्रेस और बीजेपी दोनों आप के 7.5 फीसदी वोट काट लें तो आप 17 सीटों पर सिमट जाएगी और बीजेपी को 53 सीटें मिल जाएंगी. 

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क्‍या कहते हैं चुनावी पंडित?

आम आदमी पार्टी तीन बार की ऐंटी इनकंबेंसी का सामना करना है और पहली बार भ्रष्टाचार के आरोप उस पर इतना खुल कर लगे हैं. पहली बार उसे शानो-शौकत भरे बंगले को लेकर जवाब देना पड़ रहा है. बेशक वह भी हमलावर है और उसका एक बड़ा जनाधार है, लेकिन ये सवाल है कि क्या इस बार हवा बदलेगी? इसे लेकर एनडीटीवी ने चार चुनावी पंडितों से चर्चा की. 

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संजय कुमार का आकलन 

लोकनीति सीएसडीएस के को डायरेक्‍टर संजय कुमार ने कहा कि 2025 का चुनाव बहुत अलग दिखाई पड़ता है. 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी की पकड़ मजबूत थी. उन्‍होंने 62 सीटें जीती थी और  इस बार वैसा होता दिखाई नहीं पड़ता है. साथ ही उन्‍होंने कहा कि यह बाइपोलर चुनाव है. भले ही कांग्रेस मैदान में है लेकिन इस चुनाव में भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच में कड़ा मुकाबला है. साथ ही उन्‍होंने कहा कि इस मुकाबले में आम आदमी पार्टी दो कदम आगे दिखाई पड़ती है. 

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उन्‍होंने कहा कि इस बजट को मैं गेम चेंजर नहीं मानता हूं. अपनी बात को स्‍पष्‍ट करते हुए उन्‍होंने कहा कि इस बात की बड़ी चर्चा है कि यह बजट मध्‍यम वर्ग के लिए है, लेकिन इस बात की भी बड़ी चर्चा होती है कि बजट कितने फीसदी लोगों को फायदा पहुंचाएगा. यदि उसे एक बार किनारे भी रख दें तो एक परसेप्‍शन बना है कि मिडिल क्‍लास को बहुत फायदा पहुंचाया जा रहा है. इसलिए यह चीज भाजपा के पक्ष में जाती दिखाई पड़ती है, लेकिन इसे गेम चेंजर इसलिए नहीं मानता हूं कि दिल्‍ली का मध्‍यम वर्ग वोट पहले ही भाजपा के पक्ष में ही जाता दिख रहा था. इसमें बहुत बड़ा चेंज हो जाएगा, ऐसा मेरा मानना नहीं है.  

यशवंत देशमुख का आकलन 

सी वोटर के फाउंडर-डायरेक्‍टर यशवंत देशमुख ने कहा कि यह बिलकुल सही है कि दिल्ली में कांटे की टक्‍कर है. उसका कारण है कि दिल्‍ली में 10 साल की एंटी इनकमबेंसी है, उसे दूर करना कठिन होता है. साथ ही कहा कि एक बहुत बड़ा अंतर ये है कि जिस एंटी करप्‍शन क्रूसेडर के हाई मोरल ग्राउंड पर आम आदमी पार्टी की सवारी चल रही थी वो कहीं ध्‍वस्‍त हो गई है. उसका नुकसान हुआ है, लेकिन उसका एक फायदा ये है कि अब वो अपने काम पर चुनाव लड़ रहे हैं. उन्‍होंने कहा कि छवि खराब होने का नुकसान उन्‍हें मीडिल क्‍लास के रूप में हुआ है, लेकिन गवर्नेंस के रूप में उन्‍होंने गरीब-दलित और अल्‍पसंख्‍यक के रूप में एक लॉयल वोट बैंक बनाया है, जो अब भी अडिग है. इसे उन्‍होंने फ्री बिजली-पानी और ऐसी ही योजनाओं के जरिये बनाया है. 

उन्‍होंने कहा कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल आज से पांच साल पहले हमारे ट्रैकर में 60-62 की पॉपुलैरिटी रेटिंग में थे, वो आज घटकर के 46-47 की रेटिंग पर आ गए हैं. देखने से जरूर यह लगता है कि 15 प्रतिशत का अंतर आ गया है, लेकिन यह देखना जरूरी है कि केजरीवाल के बाद अगले नेता का नाम मनोज तिवारी का है, जो ट्रैकर में 15 प्रतिशत से ज्‍यादा नहीं आ पाए हैं. 

साथ ही उन्‍होंने कहा कि इस बार भाजपा जबरदस्‍त चुनाव लड़ रही है और उन्‍होंने जो बजट की गुगली दी है, उसके बाद अब दिल्‍ली का चुनाव टर्नाउट का चुनाव हो जाएगा. एक तरफ निम्‍न आय वर्ग और दलित-अल्‍पसंख्‍यक  का एक वोट बैंक है, उसका कितना वोट आम आदमी पार्टी पोलिंग बूथ तक ले जा पाती है, यह बड़ा सवाल है. दूसरी ओर मध्‍यम वर्ग, अपर कास्‍ट-ओबीसी का एक वर्ग है, उनका कितना बड़ा बीजेपी या संघ अपने साथ ले जा सकते हैं. हालिया चुनावों में चाहे वो महाराष्‍ट्र हो या हरियाणा, भाजपा ने संगठन के नाम पर दो चुनाव पलटे हैं. इसलिए आम आदमी पार्टी ओर केजरीवाल को सतर्क रहने की जरूरत है. 

प्रदीप गुप्‍ता का आकलन

एक्सिस माय इंडिया के चेयरमैन और एमडी प्रदीप गुप्‍ता ने कहा कि दिल्‍ली का यह चुनाव ऐसा है कि जिसमें दिल्‍ली की जितनी भी जनसांख्यिकी जैसे जातियां, महिला-पुरुष और आयु वर्ग भी अलग-अलग तरीके से व्‍यवहार करते नजर आ रहे हैं. 

उन्‍होंने कहा कि इन चुनावों में इस बार एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नजर आ रहे हैं तो दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल दिख रहे हैं. दोनों ही दिग्‍गज पर्सनैलिटी हैं. आमतौर पर एक चुनाव में एक दिग्‍गज पर्सनैलिटी होती है और दूसरे को ढूंढा जा रहा होता है, लेकिन इस बार यह बड़ा फर्क है.  

उन्‍होंने कहा कि इस बार बुधवार को इसीलिए मतदान रखा गया है कि ज्‍यादा से ज्‍यादा मतदान हो. इसमें यह देखना खास होगा कि किस तबके ने किस सीट पर बड़ी संख्‍या में मतदान किया है. 

अक्षत गोयल का आकलन 

ध्रुव रिसर्च के डायरेक्‍टर अक्षत गोयल ने कहा कि इस बार नजदीकी चुनाव देखने को मिल रहा है, जो 2015 और 2020 में हमें देखने को नहीं मिले थे. वो दोनों ही चुनाव एकतरफा थे. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी और भाजपा के बीच कड़ी टक्‍कर देखने को मिल रही है. कुछ-कुछ सीटों पर हम कांग्रेस का भी उभार देख रहे हैं. 

उन्‍होंने कहा कि यह देखना होगा कि पुरुष कैसे वोट कर रहे हैं और महिला कैसे वोट कर रही हैं. हमने पूर्व में देखा है कि एक पार्टी के लिए पुरुष की तुलना में महिलाएं कितना अधिक वोट कर सकती हैं. यह चुनाव उस पर ही निर्भर करेगा. यदि पुरुष वोटर महिलाओं को कंवेंस कर लेते हैं कि आप अलग से वोट न करें, हमारे साथ वोट करें तो यह चुनाव एकतरफा हो जाएगा. यदि पुरुष एक पार्टी की ओर जाते हैं और महिलाएं दूसरी पार्टी की ओर जाती हैं तो यह चुनाव कांटे का हो जाएगा. 

स्प्लिट सीट पर क्‍या बोले एक्‍सपर्ट? 

लोकसभा चुनाव में दिल्‍ली में भाजपा जीत दर्ज करती है और उसे जबरदस्‍त वोट मिलता है, लेकिन छह महीने बाद ही यह विधानसभा चुनाव में अचानक से कम हो जाता है. इसे लेकर सी वोटर के फाउंडर-डायरेक्‍टर यशवंत देशमुख ने कहा कि यह स्प्लिट वोट के कारण आया था. उन्‍होंने कहा कि भारत में स्प्लिट वोटों की संख्‍या बढ़ती ही जा रही है और भारत में दिल्‍ली से बड़ा इसका कोई उदाहरण नहीं है. उन्‍होंने कहा कि स्प्लिट वोट का अर्थ है कि ऐसे लोग चुनाव कौनसा है, किस स्‍तर का है, इस आधार पर लोग तय करते हैं कि हमें किस पार्टी और किस नेता को वोट देना है. आज एक तिहाई दिल्‍ली ऐसी है जो कि नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल दोनों की फैन है. जो दोनों को ही अपना नेता मानती है.