दिल्ली विधानसभा का चुनाव का मतदान पांच फरवरी को कराया जाएगा. यह दिल्ली में विधानसभा का आठवां चुनाव है. इस बार का मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस के बीच माना जा रहा है.आइए देखते हैं कि किस चुनाव में दिल्ली के मतदाताओं को रूझान कैसा रहा और किस पार्टी ने सरकार बनाई.
दिल्ली कब बनी बीजेपी की सरकार
दिल्ली में विधानसभा का पहला चुनाव 1993 में हुआ था. इस चुनाव में कुल 61.57 फीसदी मतदान हुआ था. इस चुनाव के बाद दिल्ली में पहली सरकार बीजेपी ने बनाई थी. इस चुनाव में बीजेपी ने 42.82 फीसदी वोटों के साथ 49 सीटें जीती थीं. मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को 34.48 फीसदी वोट और 14 सीटें मिली थी. बाकी की सीटें अन्य दलों और निर्दलियों ने जीती थीं. इनमें सबसे अधिक चार सीट जनता दल को मिली थी.
दिल्ली में कांग्रेस की पहली सरकार
दिल्ली में 1998 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में 48.99 फीसदी मतदान हुआ था. इस चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. कहा जाता है कि प्याज की बढ़ती कीमतों की वजह से बीजेपी को अपनी सरकार गंवानी पड़ी थी. साल 1998 के चुनाव में कांग्रेस ने 47.76 फीसदी वोट के साथ 52 सीटों पर जीत दर्ज की थी.बीजेपी के हिस्से में 34.02 फीसदी वोट और 15 सीटें आई थीं.
इसके बाद 2003 में हुए दिल्ली के तीसरे विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं है. कहा जाता है कि दिल्ली की जनता मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की सरकार में हुए नजर आने वाले विकास के कार्यों पर मोहर लगाते हुए एक बार फिर कांग्रेस को दिल्ली की गद्दी सौंप दी थी. साल 2003 के चुनाव में 53.42 फीसदी मतदान हुआ था. इसमें कांग्रेस को 48.13 फीसदी वोट और 47 सीटें मिली थीं. बीजेपी इस चुनाव में भी मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर उभरी थी. उसे 45.22 फीसदी वोट और 20 सीटें मिली थीं.
कांग्रेस पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप
कांग्रेस ने दिल्ली विधानसभा के अबतक हुए चुनाव में अंतिम जीत 2008 के चुनाव में हासिल की थी. 57.58 फीसदी मतदान हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस को 40.31 फीसदी वोट और 43 सीटें मिली थीं. वहीं बीजेपी के खाते में 36.34 फीसदी वोट और 23 सीटें आई थीं. दिल्ली ने 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी की थी. इसके लिए शीला दीक्षित की सरकार ने दिल्ली को जमकर सजाया-संवारा था. लेकिन बाद में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में भ्रष्टाचार के आरोप लगे. हालात यहां तक आ गई कि उस आयोजन के प्रमुख और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेश कलमाड़ी को गिरफ्तार करना पड़ा था. इस दौरान केंद्र की मनमोहन सरकार और शीला दीक्षित सरकार दोनों को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा.
आम आदमी पार्टी का उदय
दिल्ली में 21वीं सदी के दूसरे दशक के शुरू में ही भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया. उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. उस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए. इसी आंदोलन से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ. साल 2012 में बनी इस पार्टी ने अपना पहला चुनाव 2013 में दिल्ली में लड़ा. आप को मिले जनसमर्थन ने राजनीति के पंडितों को चौंका दिया. पहला चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का फायदा मिला. उसे पहले ही चुनाव में आप को 29.49 फीसदी वोट और 28 सीटें मिली. वहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का खमियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा. उसे केवल 24.55 फीसदी वोट और केवल आठ सीटें मिलीं. वहीं इस चुनाव में सबसे अधिक सीटें बीजेपी को मिलीं. लेकिन आप ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली.लेकिन यह सरकार बहुत नहीं चल पाई थी. इस चुनाव में कुल 65.63 फीसदी मतदान हुआ था.
क्या कोई तोड़ पाएगा आम आदमी पार्टी का रिकॉर्ड
साल 2013 के चुनाव के बाद अगले दो चुनाव जीतने के लिए आम आदमी पार्टी को बहुत जोर नहीं लगाना पड़ा. साल 2015 के विधानसभा चुनाव में 67.12 फीसदी मतदान हुआ था. इस चुनाव में आप ने 54.34 फीसदी वोट के साथ 67 सीटें हासिल हुई थीं. बीजेपी को केवल 32.19 फीसदी वोट और तीन सीटें हासिल हुई थीं. इसके बाद 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में भी आप को बहुत नुकसान नहीं हुआ था. इस चुनाव में कुल 62.55 फीसदी मतदान हुआ था. इसमें आप को 53.57 फीसदी वोट और 62 सीटें मिली थीं. वहीं बीजेपी अपने सीटों की संख्या पिछले बार की तुलना में बढ़ाने में कामयाब रही थी. उसे आठ सीटें और 38.51 फीसदी वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के हाथ 2015 और 2020 के चुनाव में खाली ही रहे. उसे कोई सीट भी नहीं मिली और उसका वोट शेयर भी गिरकर एक अंक में आ गया.
अब 2025 के चुनाव में कौन सी पार्टी कैसा प्रदर्शन करती है, यह जानने के लिए हमें आठ फरवरी तक का इंतजार करना होगा, जब चुनाव के नतीजे आएंगे.
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