हरियाणा में किसकी नैया पार लगाएंगे दलित, कितना कमाल कर पाएगा बसपा-इनेलो और जजपा-एएसपी गठबंधन

अक्तूबर में होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए जननायक जनता पार्टी और आजाद समाज पार्टी ने हाथ मिलाया है. इसकी घोषणा मंगलवार को की गई. वहीं इससे पहले इंडियन नेशनल लोकदल और बसपा भी हाथ बना चुके हैं.आइए जानते हैं कि इन गठबंधनों की संभावनाएं क्या है.

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नई दिल्ली:

हरियाणा में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे चौटाला परिवार की दोनों पार्टियां दलितों के सहारे हो गई हैं.अक्तूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए चौटाला परिवार के इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी)को गठबंधन का सहारा लेना पड़ा है. इनलो ने इस चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से हाथ मिलाया है.वहीं जेजेपी ने चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) से हाथ मिलाया है.वहीं कांग्रेस और बीजेपी ने अकेले ही मैदान में उतरने का फैसला किया है. जेजेपी अभी लोकसभा चुनाव से पहले तक बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चला रही थी. इन दोनों गठबंधनों से इस बार का हरियाण विधानसभा का चुनाव काफी रोचक होने जा रहा है. 

किसका किससे है गठबंधन

इस बार के हरियाण के चुनाव में दलित वोट बैंक काफी महत्वपूर्ण हो गया है. खासकर ऐसे समय जब कांग्रेस संविधान और आरक्षण को बीजेपी से खतरा बता रही है.ये दोनों ही मुद्दे दलितों के काफी करीब माने जाते हैं.हरियाणा में दलित वोट 20 फीसदी से अधिक माना जाता है. इसी वोट बैंक पर इनेलो और जजपा की नजर है. इसी वजह से इन दोनों दलो ने दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बसपा और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) से हाथ मिलाया है.इस समझौते के तहत जजपा प्रदेश की 90 में से 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. उसने 20 सीटें आजाद समाज पार्टी के लिए छोड़ी हैं. वहीं इनेलो और बसपा के समझौते में इनलो 90 में से 53 और 37 सीटों पर बसपा चुनाव लड़ेगी. 

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हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए बसपा और इनेलो का गठबंधन जुलाई के पहले ही हफ्ते में हो गया था. लेकिन डेढ़ महीने से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी दोनों अब तक अपने उम्मीदवारों की एक भी सूची जारी नहीं कर सके हैं. दोनों को कांग्रेस और बीजेपी की सूचियों की इंतजार है. उन्हें इन दलों के बागियों से आस है. इसका दूसरा पहलू यह है कि इस गठबंधन को अभी तक उम्मीदवार नहीं मिल पाए हैं.दोनों दल उम्मीदवारों के लिए तरस रहे हैं. हालांकि इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला और बसपा नेता आकाश आनंद विभिन्न इलाकों में जाकर अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश कर रहे हैं. दोनों दल इससे पहले भी कई बार समझौता कर चुके हैं, लेकिन कभी कोई कमाल नहीं कर पाए हैं. 

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इनलो और बसपा का चुनाव में प्रदर्शन

अगर इनेलो और बसपा के पिछले विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन की बात करें तो इनेलो ने प्रदेश की 90 में से 81 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन वह केवल एक सीट ही जीत पाई थी. उसकी 81 में से 78 सीटों पर जमानत जब्त हो गई थी. उस चुनाव में इनलो को 2.44 फीसदी वोट मिले थे. वहीं बसपा ने 87 सीटों पर चुनाव लड़ा था.लेकिन कोई सीट नहीं जीत पाई थी. इन 87 में से 82 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. बसपा ने उस चुनाव में 4.14 फीसदी वोट हासिल किए थे.

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कार्यकर्ता सम्मेलन में अभय सिंह चौटाला और आकाश आनंद.

वहीं अगर दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी की बात करें तो उसने 87 सीटों पर चुनाव लड़े थे. उसने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी और 14 सीटों पर जमानत जब्त करा बैठी थी. अगर वोट की बात करें तो जजपा को 14.84 फीसदी वोट मिले थे. इस चुनाव के बाद जजपा ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. यह समझौता लोकसभा चुनाव से पहले ही टूट गया था. जजपा लोकसभा चुनाव में अकेली ही लड़ी थी. लेकिन किसान आंदोलन को लेकर जजपा के रुख से नाराज जनता ने उसकी बुरी गत बना दी. जजपा प्रदेश की 10 में से पांच सीटों पर 10 हजार से भी कम वोट हासिल कर पाई. उसकी सबसे बुरी गत फरीदाबाद में हुई थी. वहां जजपा उम्मीदवार नलिन हुड्डा पांच हजार 361 वोट ही हासिल कर पाए थे.जजपा को सबसे अधिक हिसार में मिले थे. वहां दुष्यंत की मां नैना चौटाला उम्मीदवार थीं. उन्हें 22 हजार से अधिक वोट मिले थे. जजपा लोकसभा चुनाव में किसी भी विधानसभा सीट पर जीत नहीं दर्ज कर पाई थी.उसे एक फीसदी से भी कम वोट मिले थे,दरअसल जजपा के मतदाता चुनाव के बाद दुष्यंत चौटाला के बीजेपी से हाथ मिलान से नाराज थे. वहीं हरियाणा के लोग इस बात से भी नाराज बताए जाते हैं कि जजपा किसानों के मुद्दे पर, अग्निवीर योजना और महिला पहलवनों के मुद्दे पर चुप रही. जजपा ने जिस आजाद समाज पार्टी से हाथ मिलाया है, उसने 2019 का चुनाव ही नहीं लड़ा था. 

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दुष्यंत चौटाला क्यों कह रहे हैं बीजेपी के साथ न जाने की बात

जजपा लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन के बाद से ही हालात को संभालने की कोशिश कर रहे हैं. वो लगातार इस बात का संकेत दे रहे हैं कि अब वो बीजेपी के साथ कभी नहीं जाएंगे. अब ये चुनाव परिणाम ही बता पाएंगे कि जनता ने उनकी अपील पर ध्यान दिया है. लेकिन एक बात तो तय है कि इन दोनों गठबंधनों का हरियाणा में कोई जनाधार नहीं बचा है. उनका अपना वोट बैंक ही उनके साथ नहीं है.ऐसे में जिसका कोई जनाधार ही नहीं बचा है, जनता उसे वोट क्यों देगी. दूसरी बात यह है कि इन दलों के जो मूल वोट बैंक थे,वे भी इनका साथ छोड़ चुके हैं. बाकी बचे दलित मतदाता इस गठबंधन को क्यों वोट देंगे, जिनके जीतने की संभावना ही न के बराबर है.

लोकसभा चुनाव जीतने के बाद चंद्रशेखर आजाद युवाओं में लोकप्रिय हुए हैं.

इसमें एक अच्छी बात यह है कि बसपा नेता आकाश आनंद और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद के प्रभाव में दलित युवा हैं. दलित युवाओं का रुझान आकाश आनंद और चंद्रशेखर की ओर हुआ है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या ये दलित युवा इन दोनों दलों को इतना वोट दिला पाएंगे कि वो हरियाणा की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका में आ सकें.

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