दिल्ली : नई एंटीबॉडी थेरेपी दिए जाने के 12 घंटों के भीतर ही डिस्चार्ज हुए कोविड-19 के दो मरीज

Monoclonal Antibody Therapy : सर गंगाराम अस्पताल ने दो कोविड मरीजों को ये थेरेपी दी, जिन्हें जल्द आराम मिल गया और इन्हें 12 घंटों के अंदर ही अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. ये थेरेपी उन दो मरीजों को दी गई, जिनके लक्षण पहले सात दिनों के अंदर गंभीर हुए थे. 

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गंगाराम अस्पताल में दो मरीजों को दी गई नई मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

नई दिल्ली:

दिल्ली के बड़े अस्पताल सर गंगाराम अस्पताल ने दो कोविड मरीजों के इलाज में नई एंटीबॉडी थेरेपी (new monoclonal antibody therapy) की सफलतापूर्वक मदद ली है. इन मरीजों को जल्द आराम मिल गया और इन्हें 12 घंटों के अंदर ही अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. ये थेरेपी उन दो मरीजों को दी गई, जिनके लक्षण पहले सात दिनों के अंदर गंभीर हुए थे. 

अस्पताल की ओर से एक प्रेस रिलीज जारी कर बताया गया कि पहला मरीज 36 साल का एक स्वास्थ्यकर्मी था, जिसे बहुत तेज बुखार, खांसी, माइल्जिया, तेज कमजोरी और ल्यूकोपीनिया था. मरीज को बीमार होने के छठे दिन REGCov2 (CASIRIVIMAB और IMDEVIMAB का मिश्रण) दिया गया. इसके कुछ घंटों में ही मरीज के पैरामीटर्स में 12 घंटों के अंदर सुधार आ गया और उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.

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दूसरे केस में मरीज आरके राज़दान की उम्र 80 साल की थी. वो डायबिटिक, हाइपरटेंशिव हैं और उनको तेज बुखार और खांसी थी. रिलीज में बताया गया है कि मरीज का ऑक्सीजन सैचुरेशन कमरे की हवा से 95 फीसदी ज्यादा था. मोनेक्लोनल एंटीबॉडी और एक सीटी स्कैन से उनमें बीमारी के माइल्ड लक्षण मिले.

उन्हें बीमारी के पांचवे दिन REGCov2 दी गई. उनके पैरामीटर्स में भी 12 घंटों के अंदर सुधार आया और उन्हें भी डिस्चार्ज कर दिया गया. 

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सर गंगाराम अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ मेडिसिन की सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर पूजा खोसला ने बताया कि 'अगर मोनोक्लोनल एंटीबॉडी सही समय पर दी जाए तो आने वाले वक्त में यह गेम चेंजर साबित हो सकता है. इसमें ज्यादा खतरे वाले समूह में हॉस्पिटल में भर्ती करने की नौबत से बचा जा सकता है, वहीं बीमारी को गंभीर होने से भी रोका जा सकता है. इसके इस्तेमाल से स्टेरॉयड और इम्यूनोमॉड्यूलेश ट्रीटमेंट का इस्तेमाल रोका जा सकता है, जिससे कि म्यूकरमाइकोसिस जैसी घातक बीमारी और बैक्टीरियल या CMV जैसे वायरल इंफेक्शन का खतरा कम होगा.'

उन्होंने कहा कि 'अगर हाई-रिस्क कैटेगरी की जल्द से जल्द पहचान करने को लेकर जागरूकता फैलाई जाए और वक्त पर उन्हें मोनोक्लोनल एंडीबॉडी थेरेपी दी जाए, तो इससे हेल्थकेयर सेक्टर पर लागत का बोझ कम होगा.'

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