एक तरफ जहां देश में बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए उनपर वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल (clinical trial) शुरू हो चुके हैं तो दूसरी ओर इसे लेकर अभी भी लोगों के मन में संदेह उठ रहा है. इस संदेह के बीच अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) पटना के डॉक्टर अपने बच्चों पर भारत बायोटेक के कोवैक्सीन (Bharat Biotech's Covaxin ) के चल रहे क्लिनिकल परीक्षण में भाग लेने के लिए आगे आ रहे हैं. एम्स पटना के अधीक्षक डॉ सीएम सिंह ने बताया कि सोमवार से शुरू हुए 6-12 आयु वर्ग के ट्रायल में सात बच्चों को पहली खुराक दी गई. बिहार में एक डॉक्टर दंपति के दोनों बच्चों के ऊपर वैक्सीन ट्रायल हो रहा हैं.
दिल्ली को बड़ी राहत, 18 से 44 की उम्र के लिए मिली 2 लाख से ज्यादा वैक्सीन की डोज
डॉक्टर दंपत्ति वीना सिंह और संतोष के बड़े बेटे 13 वर्षीय सत्यम, जिन्हें पहली खुराक दी गई थी, उनके साथ उनके छोटे भाई सात वर्षीय सम्यक को भी पहली खुराक दी गयी है. वीना सिंह ने एनडीटीवी को बताया, "यह बच्चों की सहमति से था ताकि टीके के बारे में सभी गलत धारणाएं खत्म हो सकें." एम्स पटना में कोविड परियोजना से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि कोवैक्सीन के पहले दौर के नैदानिक परीक्षण के हिस्से के रूप में अब तक 12-18 साल के बीस बच्चों का टीकाकरण किया जा चुका है.
कोवैक्सीन भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सहयोग से हैदराबाद स्थित कंपनी द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित एक टीका है. यह केंद्र द्वारा अपने राष्ट्रव्यापी कोविड टीकाकरण अभियान में तैनात किए गए पहले दो में से एक था. भारत ने 2 जून को बच्चों पर कोवैक्सिन का क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया था.
अधिकांश देशों ने अभी तक बच्चों के उपयोग के लिए किसी टीके को मंजूरी नहीं दी है. पिछले महीने, अमेरिका और कनाडा ने बच्चों के कुछ आयु समूहों में उपयोग के लिए फाइजर-बायोएनटेक के टीके को अधिकृत किया.
कोवैक्सीन को लेकर सोशल मीडिया पर फैली भ्रांतियों को स्वास्थ्य मंत्रालय ने किया दूर
कई राज्यों ने प्रत्याशित तीसरी लहर के लिए तैयारी शुरू कर दी है, बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढांचा बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है. कई ने विशेष बाल चिकित्सा गहन देखभाल इकाइयों की भी घोषणा की है.