- जहरीली दवा बनाने वाली केयसंस फार्मा लिमिटेड के खिलाफ दो बच्चों की मौत के बाद भी कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई है
- फरवरी 2023 में कंपनी की एक दवा अमानक पाई गई थी, बावजूद इसके कंपनी को सरकारी टेंडर मिलते रहे हैं
- सरकार ने बच्चों की मौत के बाद जांच कमेटी बनाई और दवा वितरण पर रोक लगाई गई है पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई
दो बच्चों की मौत और 11 बच्चों के बीमार होने के बावजूद राजस्थान में जहरीली दवा बनाने वाली केयसंस फार्मा लिमिटेड के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिरकार क्यों इस मामले में कंपनी संचालकों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया.
एनडीटीवी की पड़ताल में आया ये मामला सामने
एनडीटीवी की पड़ताल में सामने आया है कि कंपनी के मालिक वीरेंद्र कुमार गुप्ता जयपुर के बनीपार्क के रहने वाले हैं, जबकि संचालन का पूरा जिम्मा जनरल मैनेजर देवल कुमार गुप्ता के पास था. दस्तावेजी जानकारी के मुताबिक फैक्ट्री की पूरी देखरेख भी उन्हीं के हाथ में थी. लेकिन सवाल यह है कि जब इस दवा के सेवन से भरतपुर में दो बच्चों की मौत हो चुकी है और 11 बच्चे बीमार हुए हैं, तब भी कंपनी के खिलाफ अभी तक कोई एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की गई. सवाल ये भी है कि फरवरी 2023 में इस कंपनी की एक दवा के अमानक पाए जाने पर कंपनी का एक साल के लिए डिबार किया गया था. इसके बावजूद दूसरी दवाओं की क्वालिटी चेकिंग में लापरवाही बरती गई और कंपनी को लगातार सरकारी टेंडर मिलते रहे.
सवाल हैं बड़े
मामले में सरकारी तंत्र की कछुआ चाल से सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस कंपनी को बचाने की कोशिश की जा रही है?
एनडीटीवी की टीम जब फैक्ट्री पहुंची तो पाया कि प्रशासन ने इसे सील नहीं किया. कंपनी ने खुद ताले लगाए और ज्यादातर सामान हटा दिया, ऐसा क्यों?
अभी तक कंपनी के मालिक और संचालक पर क्यों कोई कार्रवाई नहीं हुई?
2021 में दिल्ली में बच्चों के बीमार होने के बावजूद राजस्थान में ये दवा कैसे पास की गई?
फरवरी 2023 में कंपनी की एक दवा के अमानक पाए जाने पर डिबार किया गया, लेकिन फिर भी क्यों सरकारी टेंडर जारी रहे?
2021 में दिल्ली में बच्चों के बीमार होने के बावजूद राजस्थान में दवा कैसे हुई पास?
चौंकाने वाली बात यह भी है कि इसी डेक्स्ट्रोमेथरफिन खांसी की सिरप से 2021 में दिल्ली में 16 बच्चे बीमार हुए थे. इसके बावजूद राजस्थान में इसे पास कर दिया गया. अब भरतपुर और जयपुर-बांसवाड़ा सहित कई जिलों में बच्चों की मौत और बीमारी के बाद सरकार ने जांच कमेटी बनाई है और दवा वितरण पर रोक लगा दी. लेकिन सवाल वही है कि सबूत और हादसे सामने होने के बावजूद एफआईआर क्यों नही दर्ज की गई. आखिरकार बच्चों की जान की कीमत पर किसे बचाया जा रहा है.
राजस्थान में दो बच्चों की मौत और 11 बच्चों के बीमार होने के बावजूद अभी तक कोई कंपनी के ख़िलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं हुआ है. स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि सैंपल रिपोर्ट आने के बाद ही कार्रवाई होगी.