कितने साल तक कारगर रहेगी कोरोना वैक्सीन, अलग-अलग टीकों का क्या होगा असर - जानें सभी सवालों के जवाब

भारत में 16 जनवरी से COVID-19 वैक्सीन का टीकाकरण (Covid 19 Vaccination) शुरू हो रहा है लेकिन आम लोगों में कुछ सवाल हैं कि क्या टीकाकरण के बाद जिंदगी भर कोरोना (Coronavirus) से मुक्ति मिल जाएगी.

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देश में 16 जनवरी से वैक्सीनेशन प्रक्रिया शुरू हो रही है. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई देशों के बाद भारत में 16 जनवरी से COVID-19 वैक्सीन का टीकाकरण शुरू होगा लेकिन आम लोगों में कुछ सवाल हैं कि क्या टीकाकरण के बाद जिंदगी भर कोरोनावायरस (Coronavirus) से मुक्ति मिल जाएगी. क्या कुछ वर्षों बाद कोविड वैक्सीन फिर लगवाने की जरूरत पड़ेगी. तमाम देशों में अलग-अलग लोगों को अलग-अलग वैक्सीन लगने से पूरी दुनिया से कोरोना को खत्म करने की कवायद पर क्या असर पड़ेगा, ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब हमने विशेषज्ञों के जरिए आपके सामने रखे हैं. भारत में ऑक्सफोर्ड की 'कोविशील्ड' और स्वदेशी कंपनी भारत बायोटेक की 'कोवैक्सीन' का टीका लगेगा. ब्रिटेन में फाइजर, मॉडर्ना और कोविशील्ड वैक्सीन लग रही है. अमेरिका में फाइजर और मॉडर्ना का टीका लगाया जा रहा है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के पेशेंट सेफ्टी समूह से जुड़े और रुबिन हॉस्पिटल में क्लीनिकल माइक्रोबॉयोलॉजी एंड संक्रामक रोग के कंसल्टेंट और हेड डॉक्टर देबकिशोर गुप्ता और यूनिसेफ के पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉक्टर गजेंद्र सिंह ने कोरोना वैक्सीन से जुड़े इन अहम सवालों के जवाब दिए.

सवाल- देश में अलग-अलग आबादी को अलग-अलग वैक्सीन लगाई जाती है तो क्या इससे कोरोना से निपटने में प्रभावशीलता कम होगी या बढ़ेगी?

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जवाब- सुरक्षा मानकों का ध्यान रखते हुए भारत या दुनिया के अन्य हिस्सों में लोगों को अलग-अलग कोविड-19 वैक्सीन लगाने का कोई नुकसान नहीं है. सारी उपलब्ध वैक्सीन का प्रभाव 60 फीसदी से अधिक पाया गया है. यह कोरोना के संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए पर्याप्त है. वैक्सीन को लेकर किसमें कितनी इम्यूनिटी रहती है, यह लोगों की प्रोटेक्टिव एंटीबॉडी के स्तर पर निर्भर करता है. यही कारण है कि हमेशा किसी वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल के दौरान बड़ी संख्या में अलग-अलग आयु वर्ग के वॉलंटियर को शामिल करने की सलाह दी जाती है. इससे यह पता चलता है कि कौन सी वैक्सीन किस आयु वर्ग के लोगों पर कैसा असर डालेगी. लिहाजा ऐसी वैक्सीन के भारत में टीकाकरण महत्वपूर्ण है, जिनका क्लीनिकल ट्रायल भारत में हुआ हो. ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन का भारत में सीमित स्तर पर ही सही लेकिन ट्रायल हुआ है. कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल भारत में चल रहा है. फाइजर-बायोनटेक और मॉडर्ना की वैक्सीन का भारत में ट्रायल नहीं हुआ है. रूस की स्पूतनिक वी वैक्सीन भारत में वॉलंटियर्स को दी गई है और ट्रायल चल रहे हैं.

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सवाल- दुनिया में भी अलग-अलग देशों में लोगों को अलग-अलग वैक्सीन लगाई जा रही हैं. उससे विश्व में कोरोनावायरस पर काबू पाने में क्या प्रभाव पड़ेगा?

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जवाब- पूरी दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में कोरोना टीकाकरण शुरू होना सुखद संकेत है. भारत की विशाल आबादी और विविधता के साथ नेपाल समेत अन्य देशों के लिए टीके की आपूर्ति सुनिश्चित कराने के लिए भारत को अलग-अलग किस्मों की वैक्सीन को मंजूरी देना महत्वपूर्ण है, तभी कम वक्त में 135 करोड़ लोगों का टीकाकरण संभव हो सकेगा. सुरक्षा और प्रभाव का आकलन करते हुए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया फाइजर, स्पूतनिक वी और मॉडर्ना की वैक्सीन को भी मंजूरी दे सकते हैं. कई सारे ऐसे टीके हैं, जिन्होंने क्लीनिकल ट्रायल के दौरान अपनी प्रभावशीलता साबित की है.

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सवाल- इससे पहले कब किसी महामारी के खिलाफ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग टीकों का इस्तेमाल हुआ है?

जवाब- इससे पहले पोलियो ऐसा वायरस था, जिसकी रोकथाम के लिए दुनिया में एक से ज्यादा वैक्सीन का इस्तेमाल किया गया. इसमें एक ओरल पोलियो वैक्सीन और दूसरी इनएक्टिवेटेड पोलियोवायरस वैक्सीन (IPV) शामिल थी. ओरल वैक्सीन भी अलग-अलग किस्मों की इस्तेमाल हुई. आईपीवी तीनों तरह के पोलियो वायरस से सुरक्षा देती है. 

सवाल- अभी जिन लोगों को टीका लग रहा है, वो सभी लोगों पर ट्रायल पूरा किए बिना आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी के जरिए हो रहा है. जब एक-दो वर्षों में लंबे ट्रायल के बाद वैक्सीन में सुधार होगा तो क्या उन्हें दोबारा टीका लगवाने की जरूरत होगी?

जवाब- भारत समेत दुनियाभर के देशों ने आपातकालीन मंजूरी के जरिए ही टीकाकरण को हरी झंडी दी है. वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि क्लीनिकल ट्रायल का पर्याप्त डेटा न होने के कारण वैक्सीन निर्माता अभी यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि वैक्सीन कितने लंबे समय तक सुरक्षा देगी और क्या वैक्सीन डोज सिर्फ टीका लेने वाले में बीमारी को रोकेगी या संक्रमण रोकने में भी कारगर होगी. आगे चलकर वैज्ञानिक दो खुराक के बीच समय के अंतर को कम करने, डोज को अधिक करने, कई वैक्सीन को आपस में मिलाकर ज्यादा असरदार वैक्सीन बनाने की संभावनाओं पर विचार करेंगे. हालांकि अमेरिकी एजेंसी FDA के अनुसार, इसके लिए क्लीनिकल ट्रायल के ठोस साक्ष्यों की जरूरत होगी.

सवाल- कोई भी कोरोना वैक्सीन पोलियो की तरह जीवन भर वायरस से इम्यूनिटी का दावा नहीं करती है, ऐसे में क्या हर 2-3 साल में हर किसी को फिर से टीका लगवाने की जरूरत होगी?

जवाब- वैक्सीन कितने लंबे समय तक वायरस से सुरक्षा देगी और क्या वैक्सीन मौजूदा सभी तरह के स्ट्रेन या भविष्य में कोरोना के अन्य म्यूटेंट स्ट्रेन पर कारगर होगी या नहीं, यह क्लीनिकल ट्रायल के लंबे वक्त के डेटा पर निर्भर करेगा.

सवाल- जो लोग कोरोना से उबर चुके हैं क्या उन्हें वैक्सीनेशन की जरूरत नहीं है और क्यों. क्या यह लोग प्राथमिकता में वैक्सीन पाएंगे?

जवाब- जो लोग कोरोना से उबर भी चुके हैं, उन्हें भी यह टीका लेना चाहिए क्योंकि यह उनमें मजबूत इम्यूनिटी पैदा करेगी. अभी कोरोना से स्वस्थ होने के बाद व्यक्ति के शरीर में अपने आप प्राकृतिक तरीके से एंटीबॉडी तो बनती है लेकिन यह एंटीबॉडी कितने दिनों तक कायम रहेगी, यह पता नहीं है. कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि यह 2-3 माह से 8 माह तक हो सकती है. हर व्यक्ति में एंटीबॉडी का स्तर भी अलग-अलग होता है.

सवाल- क्या भारत में कोरोना से उबर चुके लोग भी प्राथमिकता सूची में हैं?

जवाब- भारत में एक करोड़ से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमण से उबर चुके हैं लेकिन इन्हें टीका लेने की किसी प्राथमिकता सूची में नहीं रखा गया है.

सवाल- जिन्हें कोरोना अभी है, क्या उन्हें टीका लगेगा?

जवाब- संक्रमित व्यक्ति वायरस के लक्षण दिखने के 14 दिनों तक इसके टीकाकरण से बचना चाहिए, क्योंकि इससे टीकाकरण केंद्र पर अन्य लोगों के संक्रमण की चपेट में आने का खतरा रहता है.

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