कर्नाटक में 43 हजार आशा वर्कर्स हड़ताल पर, एकमुश्‍त सैलरी और PPE किट की कर रहीं मांग..

कर्नाटक के तकरीबन सभी जगह पर कुछ आशा वर्कर्स ने प्रदर्शन किया और नारेबाजी की. उनकी मांग है कि हर माह उन्‍हें एकमुश्‍त ₹12000 की सैलरी दी जाए. फिलहाल इन आशावर्कर्स को 4000 रुपये केंद्र सरकार की तरफ से और2000 रुपये राज्यसरकार की तरफ से दिए जाते हैं. इसके साथ ही वे जो काम करती है उसके हिसाब से अलग से पैसे दिए जाते हैं.'

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कर्नाटक की 43 हजार आशा वर्कर्स हड़ताल पर चली गई हैं
बेंगलुरू:

कर्नाटक (Karnataka) में आशा वर्कर्स (ASHA Workers in Karnataka) की हड़ताल के कारण कोरोना वायरस के संक्रमण (Coronavirus Pandemic) को रोकने के सरकार के प्रयासों में रुकावट आई है. जानकारी के अनुसार, तकरीबन 43 हजार आशा वर्कर्स ने काम करना बंद कर दिया है. उनकी मांग है कि उन्हें हर महीने एकमुश्त सैलरी दिया जाए. साथ ही PPE किट जैसी बुनियादी सुविधाएं भी प्रदान की जाएगी ताकि वे कोरोना संक्रमण ने अपना और परिवार का बचाव कर सकें.

कर्नाटक आशा वर्कर्स संघ की अध्‍यक्ष रमा ने बताया, कर्नाटक के तकरीबन सभी जगह पर कुछ आशा वर्कर्स ने प्रदर्शन किया और नारेबाजी की. उनकी मांग है कि हर माह उन्‍हें एकमुश्‍त ₹12000 की सैलरी दी जाए. फिलहाल इन आशावर्कर्स को 4000 रुपये केंद्र सरकार की तरफ से और2000 रुपये राज्यसरकार की तरफ से दिए जाते हैं. इसके साथ ही वे जो काम करती है उसके हिसाब से अलग से पैसे दिए जाते हैं.' उन्‍होंने कहा, जब तक हमारी मांग पूरी नही होगी हम काम नहीं करेंगे. मॉस्क से लेकर PPE किट तक की कमी है

कर्नाटक आशा वर्कर्स संघ की उपाध्‍यक्ष फरहाना के अनुसार, तकरीबन 45 हजार आशा वर्कर हड़ताल पर हैं उनकी मांग है कि मासिक वेतन तय करने के साथ-साथ पीपीई किट, मॉस्क और सैनिटाइजर जरूरत के मुताबिक उन्हें दिया जाए जो नहीं मिल रहा है. आशा वर्कर संक्रमित इलाकों में मरीजों का ब्यौरा लेती हैं किसे कितनी दवा दी गई है और किस मरीज़ की क्‍या हालात है यह जानकारियां भी नर्सों के साथ आशावर्कर एकत्रित करती हैं. आशावर्कर्स की मांग पर कर्नाटक के स्‍वास्‍थ्‍य आयुक्‍त प्रकाश पाण्डेय ने कहा कि 12 हजार रुपये एकमुश्‍त दिए जाने संबंधी मांग पर हमारी अपनी सीमितता है.ये केन्द्र की योजना है इसमें हमारी सीमा सीमित है. राज्‍य में डॉक्टर और नर्सों की कमी पहले से ही है ऐसे में आशा वर्कर्स की हड़ताल सरकार के लिए परेशानी का सबब है क्योंकि संक्रमित इलाकों का सर्वेक्षण करने के साथ-साथ यहां में दवा देने और मरीजों की जानकारी रखने जैसे जोखिम भरे और जरूरी काम ज्यादातर आशा वर्कर्स के जिम्मे ही है.

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