कोरोना ने गांवों में 'पांव पसारे' लेकिन अभी भी टीके को लेकर ग्रामीण उदासीन, दे रहे 'अजीब' तर्क..

कोरोना की दूसरी लहर में अब गांव के लोगों की भी बड़े पैमाने पर मौत हो रही है लेकिन इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग बहुत कम वैक्सीन लगवा रहे हैं.

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गांवों के लोग विभिन्‍न तरह के डर के कारण वैक्‍सीन लगवाने से बच रहे हैं (प्रतीकात्‍मक फोटो)
नई दिल्ली:

कोरोना संक्रमण ने अब गांवों में भी 'पैर पसार' लिए हैं. कोरोना की दूसरी लहर में अब गांव के लोगों की भी बड़े पैमाने पर मौत हो रही है लेकिन इसके बावजूद ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग बहुत कम वैक्सीन लगवा रहे हैं.ग्रेटर नोएडा के बिसरख गांव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में आसपास के गांव और लोगों के सहूलियत के लिए वैक्सीनेशन सेंटर बनाया गया है, लेकिन आसपास के ग्रामीण यहां वैक्सीन लगवाने बहुत कम ही आते हैं. करीब 20 किमी दूर गाजियाबाद से आकाश और उनकी पत्नी सौम्या सक्सेना वैक्सीन लगवाने के लिए बिसरख गांव के सेंटर पहुंचे हैं. इससे पहले उन्होंने बिसरख गांव का नाम भी नहीं सुना था लेकिन कोविन वेबसाइट पर बिसरख PHC का स्लॉट उनको आसानी से मिल गया. गाजियाबाद निवासी आकाश कहते हैं, 'हम करीब 18 किमी दूर से यहां वैक्सीन लगवाने के लिए आए हैं. दूसरी जगह वैक्सीन के स्लॉट मिल ही नहीं रहा था. इससे पहले कभी बिसरख नाम नहीं सुना था. दूसरी ओर, बिसरख, जलालपुर, सैनी, पतवाड़ी, खैरपुर, गुज्जर जैसे दर्जनों गांवों में कोरोना से बीमारी और मौत के बावजूद ग्रामीण वैक्सीन लगवाने नहीं आ रहे हैं. खुद बिसरख प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के इंचार्ज इसे स्‍वीकार कर रहे हैं. इस बाबत उन्‍होंने एक पत्र लिखकर गौतमबुद्ध नगर के प्रशासन को जानकारी भी भेजी गई है.

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बिसरख स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र के प्रभारी डॉ. सचिंद्र मिश्रा क‍हते हैं, 'ये बात सही है कि नोएडा, गाजियाबाद और सोसायटी के ही ज्यादातर लोग स्लॉट लेकर वैक्सीन लगवा रहे हैं. गांव वाले मुश्किल से एक या दो परसेंट ही होंगे. मैंने पत्र लिखकर प्रशासन को अवगत कराया है.' ग्रेटर नोएडा के गांव में कोरोना संक्रमण होने के बावजूद क्यों लोग वैक्सीन नहीं लगवा रहे हैं, इसकी जानकारी लेने के लिए NDTV संवाददाता खैरपुर गुज्जर गांव पहुंचे. इस गांव में कोरोना जैसे लक्षण से दर्जनभर से ज्यादा मौतें हुई हैं. कई लोग कोरोना संक्रमित भी पाए गए हैं. खुद के ऋषि चौधरी के माता-पिता की कोरोना से मौत हो चुकी है लेकिन फिर भी अफवाह के चलते वो वैक्सीन लगवाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. गांव के ऋषि कहते हैं, 'पहले मेरी मां की डेथ हुई, फिर 26 अप्रैल को पिता की कोरोना से मौत हो गई. वैक्सीन के बारे में कहा जा रहा है कि ब्लड प्रेशर और डायबिटीज वालों की मौत हो जाती है इसलिए लोग नहीं लगवाना चाहते हैं.' 

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वैक्सीन को लेकर जागरूकता का अभाव और कोविन पर रजिस्ट्रेशन की तकनीकी जानकारी न होने के चलते भी ग्रामीण इलाकों में वैक्सीनेशन की प्रक्रिया सुस्त है. ग्रामीण की मांग है कि जैसे वोट के लिए गांव-गांव बूथ लगते हैं, वैक्सीन भी वैसे ही लगाई जाए. दूसरी बात, एक तो गांव में स्मार्ट फोन कम होते हैं और होते भी है तो लोगों को इसे चलाना नहीं आता है. कोरोना संक्रमण से बचाव का सबसे कारगर तरीका वैक्सीनेशन ही है लेकिन सरकार के सामने पहली दिक्कत करोड़ों वैक्सीन को उपलब्ध कराना और दूसरी चुनौती है ग्रामीण इलाकों में वैक्सीनेशन की प्रक्रिया को सरल और बड़े पैमाने पर चलाना. एक वक्त था जब भारत ने एक दिन में 43 लाख टीका लगाकर रिकार्ड बनाया था जो अब घटकर औसतन दस लाख रोज टीका लगाने पर हम आ गए हैं. एक तरफ टीके की कमी, दूसरी तरफ गांव में टीके को लेकर हिचकिचाहट और तकनीकी जानकारी की कमी के चलते ग्रामीण भारत में टीकाकरण एक मुश्किल चुनौती है लेकिन इससे निपटने के लिए सरकार के पास फिलहाल कोई रणनीति नहीं दिख रही है.

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