- कांग्रेस ने जैविक कपास में दो लाख करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले की जांच के लिए सीबीआई की एसआईटी गठन की मांग की
- इस घोटाले से भारत के जैविक उत्पादों की विश्वसनीयता प्रभावित हुई और किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ है
- किसान समूहों के नाम पर फर्जी आईसीएस बनाए गए जिससे गैर जैविक कपास को जैविक बताकर मुनाफा कमाया जा रहा है
कांग्रेस ने देश में जैविक कपास के नाम पर 2.1 लाख करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का पर्दाफाश करते हुए इसकी जांच के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में सीबीआई के नेतृत्व में एसआईटी का गठन करने की मांग की है. पार्टी ने कहा कि इस घोटाले से भारत की जैविक उत्पादों को लेकर वैश्विक विश्वसनीयता पर बट्टा लगा है और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.
इंदिरा भवन स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकार वार्ता करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'न खाऊंगा, न खाने दूंगा' के नारे पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार की शह से कुछ कारोबारी गैर-जैविक कपास को 'ऑर्गेनिक' बताकर छह गुना मुनाफा कमा रहे हैं, जबकि असली किसान न्यूनतम मूल्य के लिए जूझ रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह की धोखाधड़ी में न केवल भारी टैक्स और जीएसटी चोरी भी हुई है, बल्कि भारत के जैविक उत्पादों की विश्व बाजार में बदनामी हुई है. उन्होंने कहा कि सरकार 2017 से ही प्रमाणन प्रक्रिया में हो रही गड़बड़ियों और इस घोटाले से अवगत थी, लेकिन इसके बावजूद कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई.
कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य दिग्विजय सिंह ने बताया कि 2001 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) शुरू किया, जिसका कार्यान्वयन कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाता है. इसका उद्देश्य जैविक उत्पादों के निर्यात को प्रमाणित और विनियमित करना है. इसके तहत एनपीओपी प्रमाणन निकायों को मान्यता देता है, जो आंतरिक नियंत्रण प्रणाली (आईसीएस) का सत्यापन करती हैं.
आईसीएस के सत्यापन के बाद ट्रांजैक्शन सर्टिफिकेट जारी किया जाता है, जो उस आईसीएस को जैविक घोषित करता है. आईसीएस 25 से 500 किसानों के समूह होते हैं, जो जैविक कपास उगाते हैं. वर्तमान में लगभग 6,046 आईसीएस और 35 प्रमाणन निकाय हैं. उन्होंने कहा कि इसके तहत जैविक खेती करने वाले किसानों के समूह बनाकर उन्हें तीन साल तक पांच हजार रुपये प्रति हेक्टेयर दिए जाते हैं. जैविक खेती की प्रक्रिया में सर्टिफिकेशन काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे उसका दाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ जाता है.
कांग्रेस नेता ने बताया कि ज्यादातर किसान जिन्हें आईसीएस में पंजीकृत दिखाया गया है, वे न तो जैविक कपास उगा रहे हैं और न ही इस प्रणाली में अपनी उपस्थिति के बारे में जानते हैं. आईसीएस समूहों ने जानबूझकर धोखाधड़ी कर किसानों के नाम जोड़े, ताकि उन्हें ट्रांजैक्शन सर्टिफिकेट मिल सके. मध्य प्रदेश में भी फर्जी समूह बनाए गए और किसानों को पता भी नहीं चला कि वे सदस्य बन गए हैं.
दिग्विजय सिंह ने कहा कि जब किसान अपने उत्पाद का सही मूल्य पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तब कुछ शक्तिशाली व्यापारी गैर-जैविक कपास को जैविक बताकर छह गुना अधिक मुनाफा कमा रहे हैं. इन निर्यातकों द्वारा आयकर और जीएसटी की भी बड़े पैमाने पर चोरी हो रही है. उन्होंने बताया कि इस घोटाले का अनुमानित आकार 2.1 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक हो सकता है. उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में 12 लाख किसानों ने 1.05 ट्रिलियन रुपये मूल्य का कपास उगाया, लेकिन व्यावसायिक संस्थाओं ने इसे अजैविक बताकर खरीदा और इसे कई गुना कीमत पर जैविक बताकर बेच दिया.
यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, यूरोपियन यूनियन और ग्लोबल ऑर्गेनिक टैक्सटाइल स्टैंडर्ड द्वारा भारतीय प्रमाणकर्ताओं की मान्यता रद्द करने के मामले गिनाते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि अब भारत जैविक उत्पाद बाजार में धोखाधड़ी का केंद्र माना जा रहा है. न्यूयॉर्क टाइम्स में 2022 में छपी खबर का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि भारत के जैविक कपास निर्यात का 80 प्रतिशत हिस्सा फर्जी है.
दिग्विजय सिंह ने बताया कि उन्होंने अगस्त 2024 में प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मध्य प्रदेश में जैविक कपास धोखाधड़ी को चिह्नित किया था. सरकार की ओर से वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने गड़बड़ी स्वीकार की, लेकिन उचित कार्रवाई नहीं की. उन्होंने मांग की कि सभी 192 धोखाधड़ी वाले आईसीएस समूहों के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई हो. सभी आईसीएस समूहों की जांच हो और शोषित किसानों को उचित मुआवजा मिले.