कांग्रेस क्‍या चौथी बार टूटेगी? बिहार में हार के बाद पार्टी में रार, PM मोदी की भविष्‍यवाणी क्‍या हो जाएगी सच

Congress can Split Again: कांग्रेस के भीतर चल रही उथल-पुथल को देखते हुए सवाल यह है कि क्या देश की सबसे पुरानी पार्टी एक बार फिर विभाजन के मुहाने पर खड़ी है?

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  • बिहार चुनाव में कांग्रेस ने 61 सीटों में से केवल 6 सीटें जीतीं, जिससे पार्टी को गहन मंथन पर मजबूर किया है
  • चुनाव में हार के बाद कांग्रेस के अंदर टिकट वितरण और रणनीति को लेकर नेताओं के बीच विवाद उभर कर सामने आ रहे हैं
  • बिहार में कांग्रेस की हार पर कई वरिष्ठ नेता गंभीर आत्मनिरीक्षण और संगठनात्मक सुधार की मांग कर रहे हैं
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Will Congress Split for the Fourth Time? : बिहार चुनाव में महागठबंधन की करारी हार हुई है. खासतौर से कांग्रेस की स्थिति बेहद बुरी है. 61 सीटों पर लड़ी कांग्रेस बामुश्किल 6 सीट ही ला पाई. इतने बुरे प्रदर्शन के बाद कांग्रेस में सिरफुटव्‍वल शुरू हो गई है. कुछ नेता हार के बाद बचाव करते दिख रहे तो कुछ अपनी ही पार्टी के दूसरे नेता पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं. नतीजे सामने आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार को धन्‍यवाद करने के लिए संबोधन किया तो इस दौरान कांग्रेस में संभावित एक और बड़े विभाजन की आशंका जता दी. पीएम मोदी ने कांग्रेस को MMC यानी 'मुस्लिमलीगी माओवादी कांग्रेस' करार देते हुए दावा किया कि आने वाले समय में कांग्रेस का एक और बड़ा विभाजन होगा. कांग्रेस में इन दिनों जो स्थिति बनी हुई है, उसे देखते हुए प्रधानमंत्री के बयान को बल मिलता दिख रहा है. तो क्‍या वाकई देश की सबसे पुरानी पार्टी एक बार फिर टूट की कगार पर पहुंच गई है?

बिहार हार के बाद सिरफुटव्वल

बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस के भीतर जो सिरफुटव्वल शुरू हुआ, वो अब खुलेआम दिख रहा है. पार्टी के भीतर ही नेताओं ने टिकट बंटवारे से लेकर चुनावी रणनीति तक पर सवाल खड़े किए हैं. बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने सीधे तौर पर बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू और आरजेडी के संजय यादव को हार के लिए जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने सवाल उठाया, 'आखिर फ्रेंडली फाइट की नौबत क्यों आई?' और आरोप लगाया कि वरिष्ठ नेताओं को किनारे लगाकर बाहर के लोगों को बिहार कांग्रेस ठेके पर दे दिया गया.

शशि थरूर एंड कंपनी-कमजोर कड़ी?

कांग्रेस के भीतर मौजूद असंतुष्ट नेताओं में शशि थरूर की आवाज भी शामिल है, जिन्होंने बिहार चुनाव में पार्टी की हार पर गंभीर आत्मनिरीक्षण की मांग की. थरूर ने कहा, 'हमें अध्ययन करना है कि क्या रणनीतिक, संदेशात्मक या संगठनात्मक गलतियां थीं.' यह बात महत्वपूर्ण है क्योंकि थरूर कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं और पार्टी के भीतर एक अलग विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं.

पार्टी में ही पार्टी से असंतुष्ट चेहरे

बिहार चुनाव के बाद उभरे असंतोष की लहर सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं है. कांग्रेस नेता कृपानंद पाठक ने सीधे तौर पर कहा कि 'बिहार में जिम्मेदार लोगों ने सही जानकारी नहीं दी' और चेतावनी दी कि अगर ऐसा नहीं सुधारा गया तो यह 'गंभीर संकट की वजह' बनेगा.

पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार ने पार्टी की संगठनात्मक कमजोरी को हार की मुख्य वजह बताया. सबसे मुखर टिप्पणी अहमद पटेल की बेटी मुमताज पटेल की ओर से आई, जिन्होंने कहा, 'सत्ता चंद लोगों के हाथों में केंद्रित होने के कारण लगातार असफलताएं ही मिलेंगी.'

कांग्रेस में विरोधाभासी बयान

कांग्रेस के भीतर विरोधाभासी बयानों का लंबा इतिहास रहा है. एक ओर जहां पार्टी नेतृत्व एकजुटता का दिखावा करता है, वहीं दूसरी ओर विभिन्न नेता खुलेआम अपनी असंतोष जाहिर करते रहते हैं. यह विरोधाभास पार्टी की कमजोर आंतरिक लोकतंत्र और नेतृत्व के प्रति बढ़ते असंतोष को दर्शाता है.

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कांग्रेस में कब-कब हुई है टूट?

कांग्रेस के इतिहास में अब तक कम से कम तीन बड़े विभाजन हो चुके हैं:

  • 1969 का विभाजन: तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पार्टी अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा के बीच हुए मतभेदों के कारण पार्टी दो हिस्सों- कांग्रेस (आर) और कांग्रेस (ओ) में बंट गई थी.
  • 1978 का विभाजन: इंदिरा गांधी ने चुनावी प्रतीक पर विवाद के बाद कांग्रेस (आई) का गठन किया, जबकि कांग्रेस नेता देवराज के नेतृत्व ने अपने गुट को 'रियल कांग्रेस' कहा .
  • 1999 का विभाजन: सोनिया गांधी के नेतृत्व को लेकर मतभेदों के कारण शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन किया.

G23 ग्रुप में भी दिखे थे बगावत के सुर

हाल के वर्षों में कांग्रेस में असंतोष की सबसे मुखर आवाज G23 ग्रुप के रूप में देखी गई थी. इस ग्रुप में कपिल सिब्बल (पूर्व केंद्रीय मंत्री), आनंद शर्मा (वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री), मनीष तिवारी (पूर्व केंद्रीय मंत्री), भूपेंद्र सिंह हुड्डा (हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री), घनश्याम तिवारी (पूर्व केंद्रीय मंत्री), राज बब्बर (पूर्व सांसद) जैसे बड़े चेहरे शामिल थे.

इस ग्रुप की नाराजगी के पीछे पार्टी में सक्रिय और दिखाई देने वाले नेतृत्व, संगठनात्मक सुधार और आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करने, चुनावी हार के बाद जवाबदेही तय करने और पार्टी संगठन में युवाओं को अधिक अवसर देने जैसी मांगें शामिल थी.

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हालांकि पार्टी नेतृत्व ने G23 की मांगों को संज्ञान में लेते हुए कुछ संगठनात्मक बदलाव किए, लेकिन मूलभूत सुधारों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं दिखी. अब बिहार चुनाव में हार के बाद फिर से यही सवाल उठ रहे हैं और पार्टी के भीतर का असंतोष एक बार फिर सतह पर आ गया है.

कांग्रेस के लिए गहन मंथन का समय

बिहार चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस के सामने संगठन नेतृत्‍व, नेताओं में तालमेल, नाराजगी दूर करने जैसी कई चुनौतियां हैं. फिलहाल कांग्रेस के भीतर चल रही उथल-पुथल को देखते हुए सवाल यह है कि क्या देश की सबसे पुरानी पार्टी एक बार फिर विभाजन के मुहाने पर खड़ी है? क्या बिहार की हार पार्टी के भीतर जमे असंतोष के विस्फोट का कारण बनेगी? इन सवालों के जवाब आने वाले दिनों में तब और साफ होंगे जब पार्टी की ओर से इस हार की 'गहन समीक्षा' के नतीजे सामने आएंगे. जानकारों का कहना है कि ये कांग्रेस के लिए गहन मंथन का समय है.

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