-4.6 से लेकर 51 डिग्री तक, आखिर चूरू में कड़ाके की ठंड और बेइंतहा गर्मी क्यों पड़ती है?

जलवायु वैज्ञानिक मानते हैं कि चूरू अब क्लाइमेट चेंज का जीता-जागता उदाहरण बन गया है. पिछले 10 वर्षों में औसत गर्मी का स्तर 1.5°C से अधिक बढ़ा है. रात और दिन का तापमान का फासला पहले 15°C होता था, अब यह 20°C से अधिक हो गया है.

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नई दिल्ली:

राजस्थान का चूरू शहर भारत के सबसे विचित्र मौसम वाले इलाकों में से एक है. एक तरफ जहां दिसंबर-जनवरी में यहां तापमान -4.6°C तक गिर जाता है, वहीं जून-जुलाई में पारा 50°C के पार पहुंच जाता है. हाल ही में चूरू में तापमान 45.8°C दर्ज किया गया, जिससे यह एक बार फिर से देश के सबसे गर्म स्थानों में शामिल हो गया. लेकिन सवाल है कि ऐसा क्यों? आखिर ऐसा कौन-सा रहस्य है जो चुरू को भारत का "Extreme Weather Capital" बना देता है?

  • चूरू ने कई बार अपने तापमान से देश को चौंकाया है. 
  • 28 दिसंबर 1973: चुरू का न्यूनतम तापमान -4.6°C रिकॉर्ड किया गया. 
  • 1 जून 2019: चुरू का अधिकतम तापमान 50.5°C पहुंच गया. यह वर्ष का सबसे अधिक तापमान था.  हर साल यह इलाका गर्मियों में 47-50 डिग्री तक तपता है और सर्दियों में 0°C के नीचे चला जाता है. 

क्या-क्या हैं प्रमुख कारण?

  • थार रेगिस्तान का प्रभाव : रेत दिन के समय तेज़ी से गर्म होती है और रात में उतनी ही तेज़ी से ठंडी भी. इसी कारण दिन और रात के तापमान में जबरदस्त अंतर आता है.  थार का यह रेत व्यवहार चुरू को देश का सबसे अधिक तापमान में उतार-चढ़ाव वाला इलाका बनाता है. 
  • हवा का रुख और अंतरराष्ट्रीय हवाएं: गर्मियों में चूरू में हवा का बहाव पश्चिम से आता है, जो अरब और ईरान जैसे इलाकों से गर्म हवाएं लेकर आता है। ये हवाएं पहले ही 45°C से अधिक तापमान लिए होती हैं, और जब राजस्थान की भूमि से टकराती हैं तो पारा और ऊपर चला जाता है।
  • बादलों की अनुपस्थिति और नमी की कमी: चूरू में आर्द्रता (humidity) बहुत कम होती है और बादल भी कम ही बनते हैं.  यही वजह है कि गर्मी की सीधी किरणें जमीन पर गिरती हैं और कोई अवरोध न होने से तापमान तेजी से बढ़ता है. 

इतनी सर्दी क्यों?

ज्यादातर लोगों को लगता है कि चुरू सिर्फ तपता है, लेकिन यही शहर कड़ाके की सर्दी के लिए भी कुख्यात है. सर्दियों में बादलों की अनुपस्थिति, रेगिस्तानी रेत की ऊष्मा छोड़ने की प्रवृत्ति, और कम हवा में नमी ये सारी स्थितियां रात को तापमान गिरने का कारण बनती हैं. 1973 में जब चुरू का तापमान -4.6°C दर्ज हुआ था, तब भी यही सारे कारक सक्रिय थे. 

जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा उदाहरण बनता जा रहा है चुरू

जलवायु वैज्ञानिक मानते हैं कि चुरू अब क्लाइमेट चेंज का जीता-जागता उदाहरण बन गया है. पिछले 10 वर्षों में औसत गर्मी का स्तर 1.5°C से अधिक बढ़ा है. रात और दिन का तापमान का फासला पहले 15°C होता था, अब यह 20°C से अधिक हो गया है. हवा में धूलकण (PM10 और PM2.5) भी बढ़े हैं, जो तापमान को और असहनीय बनाते हैं. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की एक रिपोर्ट के अनुसार, चुरू भारत के उन शहरों में से एक है जो सबसे तेज़ी से जलवायु परिवर्तन की चपेट में आ रहा है.

परेशान हैं चुरू के लोग

चूरू का मौसम सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं है. इसका सीधा असर यहां की खेती, पशुपालन और पानी की उपलब्धता पर पड़ता है.अत्यधिक गर्मी से मिट्टी की नमी उड़ जाती है.सर्दियों में बर्फीली हवाएं फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं.  पशु भी गर्मी में चरने नहीं जा पाते और दूध उत्पादन में गिरावट आती है. 

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