भारत-चीन के बीच फिर बढ़ सकती है तकरार, ब्रह्मपुत्र पर नया डैम बनाने का चीनी बना रहे प्लान

भारत को डर है कि चीन के नए प्रोजेक्ट से ब्रह्मपुत्र नदी के बहाव में खलल पड़ सकता है, और उसमें पानी की कमी हो सकती है. यहां तक ​​कि बाढ़ भी आ सकती है. एक चीनी राजनयिक ने पिछले साल के अंत में कहा था कि यह परियोजना एक "प्रारंभिक चरण' में थी. 

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चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर एक विवादास्पद जलविद्युत परियोजना का निर्माण शुरू करने की योजना बना रहा है.
नई दिल्ली:

पूर्वी लद्दाख में LAC  के पास साल भर चले सीमा विवाद और तनातनी के बाद चीन भारत को एक और झटका दे सकता है.  खबर है कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी (Brahmaputra River) पर एक विवादास्पद जलविद्युत परियोजना का निर्माण शुरू करने की योजना बना रहा है. चीन की इस हरकत से लद्दाख में तनावपूर्ण गतिरोध के लगभग एक वर्ष के बाद दोनों पक्षों के बीच सामान्य हो रहे संबंधों में फिर से कड़वाहट आ सकती है.

भारत को डर है कि चीन के नए प्रोजेक्ट से ब्रह्मपुत्र नदी के बहाव में खलल पड़ सकता है, और उसमें पानी की कमी हो सकती है. यहां तक ​​कि बाढ़ भी आ सकती है. एक चीनी राजनयिक ने पिछले साल के अंत में कहा था कि यह परियोजना एक "प्रारंभिक चरण' में थी. 

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तिब्बती कम्युनिस्ट पार्टी के एक वरिष्ठ अधिकारी और तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के अध्यक्ष चे डल्हा ने चीन की संसद द्वारा जारी एक प्रतिनिधि सम्मेलन में सोमवार को कहा कि चीन को इस विशाल जल विद्युत परियोजना पर एक साल के अंदर निर्माण कार्य शुरू करने का लक्ष्य रखना चाहिए और परियोजना के लिए व्यापक योजना और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को जल्द से जल्द पूरा किया जाना चाहिए. 

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ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत में अपने उद्गम स्थल से भारत और बांग्लादेश के माध्यम से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में मिलने तक लगभग 2,900 किमी (1,800 मील) तक बहती है. चिब्बत में इसे  "यारलुंग त्संगबो के नाम से जाना जाता है. इसके निचले हिस्से में प्रस्तावित हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को पिछले सप्ताह चीन की नई पंचवर्षीय योजना में सूचीबद्ध किया गया है, जो 2021-2025 की अवधि के लिए बनाई गई है.

चीनी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की योजना ब्रह्मपुत्र नदी पर 60 गीगावाट (जीडब्ल्यू) बिजली उत्पादन क्षमता वाले जलविद्युत संयंत्र स्थापित करने की है, जो चीन की 22.5 गीगावॉट थ्री गोरजेस डैम को पछाड़कर दुनिया की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना हो सकती है.

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