छत्तीसगढ़ : जमीनी स्तर से जुड़ाव वाला भाजपा का आदिवासी चेहरा हैं विष्णु देव साय

कड़ी मेहनत और समर्पण के माध्यम से अपनी पहचान बनाने वाले वरिष्ठ आदिवासी नेता विष्णु देव साय की पहचान राज्य में भाजपा के विनम्र नेता के रूप में है

विज्ञापन
Read Time: 27 mins
छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय.
रायपुर:

गांव के सरपंच से राज्य के मुख्यमंत्री तक का सफर तय करने वाले छत्तीसगढ़ के चौथे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बुधवार को शपथ ग्रहण की. कड़ी मेहनत और समर्पण के माध्यम से अपनी पहचान बनाने वाले वरिष्ठ आदिवासी नेता साय की पहचान राज्य में भाजपा के विनम्र नेता के रूप में है. इस छवि और मेहनत के बल पर ही साय कई बार सांसद रहे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल में जगह भी हासिल की. वहीं, संगठनात्मक कौशल के कारण वह लंबे समय तक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी रहे.

जशपुर जिले के कुनकुरी विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित साय ने बुधवार को एक समारोह में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और कई नेता शामिल हुए.

उनसठ वर्षीय साय भाजपा के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री हैं. राज्य की आबादी में आदिवासियों का हिस्सा लगभग 32 प्रतिशत है और ओबीसी के बाद यह दूसरा सबसे प्रभावशाली सामाजिक समूह है.

भाजपा ने हाल में हुए चुनाव में 90 सदस्यीय राज्य विधानसभा की 54 सीटें जीतकर सत्ता में पांच वर्ष बाद शानदार वापसी की है. 2018 में 68 सीटें जीतने वाली कांग्रेस 35 सीटों पर सिमट गई, जबकि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) एक सीट जीतने में कामयाब रही.

अपने परिवार की समृद्ध राजनीतिक विरासत और केंद्रीय मंत्री रहते हुए महत्वपूर्ण विभागों को संभालने के बावजूद साय अपनी विनम्रता, जमीन से जुड़े स्वभाव, काम के प्रति समर्पण और लक्ष्यों को प्राप्त करने के दृढ़ संकल्प के लिए जाने जाते हैं.

साय ने तीन बार भाजपा की छत्तीसगढ़ इकाई का नेतृत्व किया है, जो उनके संगठनात्मक कौशल में केंद्रीय नेतृत्व के विश्वास को दर्शाता है.

Advertisement

पिछले महीने कुनकुरी निर्वाचन क्षेत्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता अमित शाह ने मतदाताओं से साय को चुनने का आग्रह किया था और वादा किया था कि अगर पार्टी राज्य में सत्ता में वापस आती है तो उन्हें (साय को) एक ‘‘बड़ा आदमी'' बनाया जाएगा.

एक गुमनाम गांव के सरपंच के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले साय तेजी से आगे बढ़े और 2014 में केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी की पहली मंत्रिपरिषद के सदस्य बने.

Advertisement

साय आदिवासी बहुल जशपुर जिले के एक छोटे से गांव बगिया के एक किसान परिवार से हैं तथा राजनीति उन्हें विरासत में मिली है. विष्णु देव साय के दादा दिवंगत बुधनाथ साय 1947 से 1952 तक मनोनीत विधायक थे. उनके ताऊ दिवंगत नरहरि प्रसाद साय जनसंघ (भाजपा के पूर्ववर्ती) के सदस्य थे. वह (नरहरि प्रसाद साय) दो बार ( 1962-67 और 1972-77) विधायक रहे तथा सांसद (1977-79) के रूप में चुने गए. उन्होंने जनता पार्टी सरकार में राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया था.

विष्णु देव साय के पिता के एक अन्य बड़े भाई केदारनाथ साय भी जनसंघ के सदस्य थे और तपकारा से विधायक (1967-72) चुने गए थे.विष्णु देव साय ने कुनकुरी के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की और स्नातक की पढ़ाई के लिए अंबिकापुर चले गए. लेकिन उन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और 1988 में अपने गांव लौट आए. 1989 में उन्हें बगिया ग्राम पंचायत के 'पंच' के रूप में चुना गया और अगले साल वह निर्विरोध सरपंच बन गए.

Advertisement

ऐसा कहा जाता है कि भाजपा के दिग्गज नेता दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव ने उन्हें 1990 में चुनावी राजनीति में प्रवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया था. उसी वर्ष, विष्णु देव साय अविभाजित मध्य प्रदेश में तपकरा (जशपुर जिले में) से भाजपा के टिकट पर पहली बार विधायक चुने गए थे. साल 1993 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने यह सीट बरकरार रखी.

साल 1998 में उन्होंने निकटवर्ती पत्थलगांव सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रहे. बाद में, वह लगातार चार बार - 1999, 2004, 2009 और 2014 में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए.

Advertisement

सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद भाजपा ने विष्णुदेव साय को 2003 और 2008 के विधानसभा चुनावों में पत्थलगांव सीट से मैदान में उतारा, लेकिन वह दोनों बार हार गए.

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद विष्णु देव साय को इस्पात और खनन राज्य मंत्री बनाया गया था. वह छत्तीसगढ़ के उन 10 मौजूदा भाजपा सांसदों में से थे, जिन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए टिकट देने से इनकार कर दिया गया था.

इन आदिवासी राजनेता ने 2006 से 2010 तक और फिर जनवरी-अगस्त 2014 तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. 2018 में राज्य में भाजपा की हार के बाद उन्हें 2020 में फिर से छत्तीसगढ़ में पार्टी का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी गई.

विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले 2022 में उनकी जगह ओबीसी नेता अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया. इस साल नवंबर माह में चुनावों से पहले, साय को जुलाई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य नामित किया गया था. चुनाव में उन्हें कुनकुरी (जशपुर जिला) से मैदान में उतारा गया, जहां उन्होंने कांग्रेस के मौजूदा विधायक यू.डी. मिंज को 25,541 वोटों के अंतर से हराकर जीत हासिल की.

भाजपा को 2018 में आदिवासी बहुल सीटों पर भारी झटका लगा था. लेकिन इस बार पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए अनुसूचित जनजाति (एसटी) उम्मीदवारों के लिए आरक्षित 29 सीटों में से 17 सीटें जीत लीं.

भाजपा ने आदिवासी बहुल सरगुजा क्षेत्र में सभी 14 विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की है, जहां से साय आते हैं. साथ ही पार्टी ने एक अन्य आदिवासी बाहुल्य बस्तर में 12 में से आठ सीटें जीती हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान दो आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा की शानदार जीत ने पार्टी को पांच साल के बाद एक बार फिर सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
Tawadu के Dream Weavers, जानिए 6 महत्वाकांक्षी Designers की कहानी | Sarvoday Buniyaad Bharat Ki