चंद्रयान-3 के रोवर प्रज्ञान को चांद के साउथ पोल पर सल्फर होने के सबूत मिले हैं. रोवर को चांद की सतह पर ऑक्सीजन समेत एल्युमीनियम, कैल्शियम, आयरन, क्रोमियम, टाइटेनियम की मौजूदगी का भी पता चला है. जबकि हाइड्रोजन की खोज जारी है. प्रज्ञान रोवर पर लगे लेजर-इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (LIBS) पेलोड ने ये खोज की हैं. भारतीय स्पेस एजेंसी (ISRO) ने कहा कि ऑन-साइट जांच ने क्षेत्र में 'स्पष्ट तौर पर' सल्फर की मौजूदगी की पुष्टि की है.
28 अगस्त को चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर में लगे चास्टे (ChaSTE) पेलोड ने चंद्रमा के तापमान से जुड़ा पहला ऑब्जर्वेशन भेजा था. ChaSTE के मुताबिक, चंद्रमा की सतह और अलग-अलग गहराई पर तापमान में काफी अंतर है.
रोवर ने बदला अपना रास्ता
एक दिन पहले ISRO ने कहा था कि चंद्र सतह पर एक चार मीटर गहरे क्रेटर के सामने आ जाने के बाद रोवर ने सफलतापूर्वक अपना रास्ता बदल लिया था. ISRO ने बताया कि चंद्रमा के साउथ पोल की सतह पर तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस है. वहीं, 80mm की गहराई में माइनस 10°C तापमान रिकॉर्ड किया गया है.
23 अगस्त को चंद्रयान-3 की हुई थी लैंडिंग
23 अगस्त को भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतिहास रच दिया था. देश के तीसरे मून मिशन चंद्रयान-3 ने चांद के साउथ पोल पर लैंडिंग की थी. ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है. जबकि चांद की किसी सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला भार चौथा देश है. इससे पहले अमेरिका, रूस(तत्कालीन USSR) और चीन ही ऐसा कर पाए हैं.
रूस को लगा बड़ा झटका
इसरो की इस सफलता से कुछ दिन पहले रूस को अंतरिक्ष में बड़ा झटका लगा था. रूस का अंतरिक्ष यान लूना-25 21 अगस्त को इंजन में खराबी के बाद चंद्रमा की सतह पर क्रैश हो गया था. लूना-25 के साथ रूस भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडिंग करना चाहता था. रूस के लिए इस मिशन की असफलता बड़ा झटका इसलिए भी थी, क्योंकि साल 1976 (USSR में टूट) के बाद से यह उसका पहला मून मिशन था.
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