तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में पिछली बार जे. जयललिता ने हर बार सत्ता बदलने का लंबे समय से चला आ रहा मिथक तोड़ते हुए एआईएडीएमके को ऐतिहासिक कामयाबी दिलाई थी. लेकिन इस चुनाव में अम्मा के नाम से मशहूर जयललिता और डीएमके के दिग्गज नेता करुणानिधि नहीं हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या जयललिता की तरह जनकल्याणकारी योजनाओं से लोकप्रियता हासिल करने वाले एआईएडीएमके की सत्ता में हैट्रिक लगाने का करिश्मा कर पाएंगे.
जैसा कभी एआईएडीएमके के संस्थापक एमजी रामचंद्रन ने कर दिखाया था. रामचंद्रन ने 1977, 1980 और 1984 के चुनाव में तमिलनाडु में एआईएडीएमके की विजय पताका फहराई थी. वर्ष 2016 के चुनाव में जीत के बाद एआईए़डीएमके को पिछले 5 साल में तीन मुख्यमंत्री देखने पड़े. चुनाव के करीब 6 माह बाद ही दिसंबर 2016 में जयललिता की मौत के बाद ओ पन्नीरसेल्वम सीएम बने, लेकिन शशिकला से मनमुटाव के बाद उन्हें हटाकर फरवरी 2017 में पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि धीऱे-धीरे उन्होंने पार्टी औऱ जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत कर ली.
सत्ता में आने के बाद पलानीस्वामी ने नहरों, झील-तालाबों की सफाई के लिए कुदीमारामत्तु वर्क्स योजना, फेम इंडिया और महिलाओं-लड़कियों की सुरक्षा के लिए अम्मा पैट्रोल जैसी योजनाएं शुरू कीं. अम्मा कैंटीन योजना को भी विस्तार दिया, इससे पलानीस्वामी के नेतृत्व को मजबूती मिली है और पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर चुनाव में पेश किया है.
हालांकि 2018 में स्टरलाइट प्लांट में विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस फायरिंग में 13 लोगों के मारे जाने जैसी घटना से उन्हें झटका लगा. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पूरे देश में पीएम नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद एआईएडीएमके और बीजेपी के गठबंधन का सूपड़ा साफ हो गया. डीएमके के गठबंधन ने 39 में से 38 सीटें जीतकर दिखा दिया कि वह सत्ता में वापसी को लेकर जनसमर्थन उसके साथ है. एक आम कार्यकर्ता के तौर पर 1974 में एआईएडीएमके से जुड़े पलानीस्वामी 1989, 1991, 2011 और 2016 में एडापड्डी विधानसभा सीट से चुनाव जीते. पलानीस्वामी ने 1998 में लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता था.