चुनाव के बीच नीति नहीं बना सकते, डीपफेक वीडियो के मुद्दे को लेकर निर्वाचन आयोग पर भरोसा करें: अदालत

सुनवाई के दौरान, ईसीआई के वकील ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता द्वारा आयोग के पास एक व्यापक अभ्यावेदन दिया जाता है, तो इस पर छह मई को या इससे पहले कानून के अनुसार निर्णय लिया जाएगा और उनके द्वारा जो भी उचित कदम उठाना होगा, उठाया जायेगा.

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नई दिल्ली:

दिल्ली उच्च न्यायालय ने लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान में इस्तेमाल की जा रही ‘डीपफेक' तकनीक के मुद्दे से निपटने के लिए भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) पर अपना भरोसा जताया और कहा कि वह चुनाव के बीच में कोई नीति तैयार नहीं कर सकता है. उच्च न्यायालय ने वकीलों के एक संगठन को उसकी उस याचिका पर ईसीआई को एक अभ्यावेदन देने का निर्देश दिया, जिसमें डीपफेक वीडियो के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए निर्वाचन आयोग को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.

अदालत ने ईसीआई से यह भी कहा कि मामले की तात्कालिकता को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता द्वारा दिए जाने वाले अभ्यावेदन पर छह मई तक जल्द निर्णय लिया जाए.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी. एस. अरोड़ा की पीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि वह चुनाव के बीच में कोई नीति नहीं बना सकते.

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अदालत ने कहा कि सिर्फ कार्यप्रणाली बदली है और पहले भी राजनीतिज्ञों के बारे में अफवाहें फैलाई जाती थीं. इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब दिया कि डीपफेक सामग्री बहुत अधिक खतरनाक होती है.

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अदालत ने कहा कि उसे इस मामले पर कार्यवाही करने के लिए ईसीआई पर भरोसा है, जो कि एक संवैधानिक निकाय है.

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पीठ ने कहा, ‘‘आज चुनाव के बीच में हम कोई नीति नहीं बना सकते. एक बार जब इसे ईसीआई को सौंप दिया जाता है तो इस स्तर पर अदालत का हस्तक्षेप उचित नहीं होगा. फिलहाल अदालतें कोई निर्देश नहीं देंगी. यह सब चुनाव से पहले किया जाना था. अंतिम समय में अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं.''

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इसने कहा, ‘‘इस समय अदालत के लिए ईसीआई के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा. हमें ईसीआई पर भरोसा करना होगा.''

अदालत ‘लॉयर्स वॉयस' नामक एक संगठन की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 2024 के चुनाव प्रचार अभियान में ‘डीपफेक' तकनीक के व्यापक इस्तेमाल के कारण होने वाले नुकसान को रोकने के लिए ईसीआई को आवश्यक दिशानिर्देश देने का अनुरोध किया गया था.

याचिका में विभिन्न सोशल मीडिया मंचों को चुनाव परिणाम की घोषणा होने तक डीपफेक सामग्री या राजनीतिक उम्मीदवारों या सार्वजनिक हस्तियों से संबंधित सामग्री को हटाने और ‘ब्लॉक' करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

सुनवाई के दौरान, ईसीआई के वकील ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता द्वारा आयोग के पास एक व्यापक अभ्यावेदन दिया जाता है, तो इस पर छह मई को या इससे पहले कानून के अनुसार निर्णय लिया जाएगा और उनके द्वारा जो भी उचित कदम उठाना होगा, उठाया जायेगा.

ईसीआई के वकील ने अदालत को यह भी बताया कि याचिका में जिक्र किये गये गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, अभिनेता आमिर खान और रणवीर सिंह के डीपफेक वीडियो हटा दिए गए हैं और आपराधिक शिकायतें दर्ज की गई हैं.

इस पर पीठ ने कहा कि जिन अकाउंट से बार-बार फर्जी वीडियो पोस्ट की जा रही हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और उनके नाम भी सार्वजनिक किये जाने चाहिए.

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत मेहता ने कहा कि एक नियामक ढांचा है लेकिन इसमें बहुत बड़ा अंतर है और आपत्तिजनक सामग्री के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कानूनी व्यवस्था के तहत निर्धारित 24 घंटे की समय अवधि बहुत लंबी है और ईसीआई को सोशल मीडिया मध्यस्थों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देना चाहिए कि ‘डीपफेक' सामग्री को दोहराया न जाए.

उन्होंने कहा कि ईसीआई प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए बने किसी भी राजनीतिक विज्ञापन को प्रमाणित करता है और सोशल मीडिया पर सामग्री के लिए भी इसी तरह की व्यवस्था बनाई जानी चाहिए.

पीठ ने इसके जवाब में कहा कि ऐसा करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि चुनाव के दौरान राजनीतिज्ञ सड़कों या मोहल्लों में भी लोगों से बातचीत करते हैं और कभी-कभी अचानक भाषण भी देते हैं.

इसने कहा, ‘‘हो सकता है कि आप जो सुझाव दे रहे हैं वह उचित न हो. यह ऐसा कहने जैसा है कि जब राजनीतिज्ञ किसी राजनीतिक रैली को संबोधित करने जाते हैं, तो उन्हें ईसीआई से अनुमति लेनी होगी. यदि आप निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार कर रहे हैं तो जाहिर तौर पर एक छोटा समूह आपको रोकेगा और आप उनसे बात करेंगे और फिर अचानक भाषण देना शुरू कर देंगे.''
 

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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