वित्त वर्ष 2024-25 के लिए बृहस्पतिवार को संसद में पेश अंतरिम बजट में विदेश मंत्रालय (एमईए) को कुल 22,154 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. पिछले साल उसका परिव्यय 18,050 करोड़ रुपये था. भारत की ‘पड़ोस पहले' नीति के अनुरूप, 2,068 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ ‘सहायता मद' का सबसे बड़ा हिस्सा भूटान को दिया गया है. 2023-24 में हिमालयी राष्ट्र के लिए विकास परिव्यय 2,400 करोड़ रुपये था. ईरान के साथ संपर्क (कनेक्टिविटी) परियोजनाओं पर भारत के फोकस को रेखांकित करते हुए, चाबहार बंदरगाह के लिए आवंटन 100 करोड़ रुपये ही रखा गया है.
बजट दस्तावेजों के अनुसार, मालदीव की विकास सहायता पिछले साल के 770 करोड़ रुपये के मुकाबले इस साल 600 करोड़ रुपये रखी गई है. अफगानिस्तान के लोगों के साथ भारत के विशेष संबंध कायम रखते हुए, उसके लिए 200 करोड़ रुपये की बजटीय सहायता निर्धारित की गई है. बांग्लादेश को विकास सहायता के तहत 120 करोड़ रुपये जबकि नेपाल को 700 करोड़ रुपये प्रदान किए जाएंगे. बजट दस्तावेजों के अनुसार, श्रीलंका को 75 करोड़ रुपये की विकास सहायता मिलेगी जबकि मॉरीशस के लिए 370 करोड़ रुपये तथा म्यांमा के लिए 250 करोड़ रुपये की विकास सहायता राशि तय की गई है.
अफ्रीकी देशों के लिए 200 करोड़ रुपये की सहायता राशि अलग रखी गई है. लातिन अमेरिका और यूरेशिया जैसे विभिन्न देशों और क्षेत्रों के लिए कुल विकास सहायता 4,883 करोड़ रुपये तय की गई है. अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि हाल ही में घोषित भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) भारत और अन्य देशों के लिए रणनीतिक और आर्थिक रूप से परिवर्तनकारी है.
आईएमईसी को समान विचारधारा वाले देश, चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव' (बीआरआई) के मुकाबले रणनीतिक प्रभाव हासिल करने की एक पहल के रूप में देखते हैं. पारदर्शिता की कमी और राष्ट्रों की संप्रभुता की उपेक्षा को लेकर बीआरआई को लगातार आलोचना का सामना करना पड़ा है. सीतारमण ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री के शब्दों में, गलियारा आने वाले सैकड़ों वर्षों के लिए विश्व व्यापार का आधार बनेगा, और इतिहास याद रखेगा कि इस गलियारे की शुरुआत भारतीय धरती पर हुई थी.''
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