ये साल 2007 था, जब बीएसपी नेता मायावती बिल्कुल अपने दम पर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. हालांकि इसके पहले वो तीन बार और मुख्यमंत्री बन चुकी थीं, लेकिन ये पहली बार था जब उन्होंने बसपा के बहुमत के सहारे सरकार बनाई. ये भारतीय राजनीति में दलित उभार की सबसे बड़ी लकीर थी. हालांकि ये उभार रातों-रात नहीं हुआ था. इसके पीछे जिस शख्स की मेहनत थी, उसका नाम कांशीराम था. कांशीराम भारतीय समाज और राजनीति की जटिलताओं को समझते थे. दलित राजनीति को नई आक्रामकता और पहचान देने को तैयार थे. शुरुआत उन्होंने 1971 से की, जब उन्होंने बामसेफ़ बनाया- यानी पिछड़े और अल्पसंख्यक सरकारी कर्मचारियों का संगठन. फिर 1984 में डीएस-4 का गठन किया. यानी एक डी और चार एस- दलित शोषित समाज संघर्ष समिति. सरकारी नौकरी छोड़ कर साइकिल पर घूम-घूम कर बहुजन समाज पार्टी को संगठनात्मक मज़बूती और गहराई दी. शुरुआत उन्होंने पंजाब और मध्य प्रदेश से की, लेकिन जल्द ही यूपी उनकी राजनीतिक प्रयोगशाला बन गया.
अपने चुस्त और सटीक जुमलों के साथ कांशीराम ने दलित राजनीतिक के मुहावरे गढ़े. कांग्रेस और बीजेपी को सांपनाथ और नागनाथ बनाते हुए भी बीएसपी को इनसे समझौते के लिए तैयार किया. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद लेकिन सबसे ऐतिहासिक समझौता मुलायम सिंह यादव के साथ किया और 1993 के चुनावों में दलित-पिछड़ा भागीदारी के साथ सरकार बनाने में मदद की. ये गठजोड़ टिका नहीं, लेकिन मायावती आगे निकल चुकी थीं. वे चार बार मुख्यमंत्री बनीं. 2007 में तीस फ़ीसदी से ज़्यादा वोट और 206 सीटें लेकर उन्होंने सरकार बनाई. लेकिन 2007 से 2025 तक आते-आते तस्वीर बिल्कुल बदल जाती है. जो संगठन की पार्टी थी, वो व्यक्ति तक चली आई है और उसमें परिवार का झगड़ा चला आया है. जिस दल ने यूपी में 4 बार शासन किया, वो अंतर्कलह के दलदल में फंसा दिखाई दे रहा है.
कैसे खड़ी हुई बीएसपी
पूर्व बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि बहुजन समाज पार्टी को बनाने में मानवर कांशीराम साहब थे, बहन मायावती जी थी और लाखों लोग थे और उन लाखों में एक मैं भी था जिस पार्टी को बनाया है. भले ही मैं उस पार्टी में नहीं हूं किन परिस्थितियों में नहीं हूं सब जानते हैं. उस पर मैं नहीं जाना चाहता. लेकिन जिसको बनाया गया और वह पार्टी फली फूली. उरूज पर पहुंची और आज दिन पर दिन उसका पतन हो रहा है तो मुझे भी तकलीफ है. मैं कांशीराम साहब को याद करता हूं उस महापुरुष को याद करता हूं कि जिसने यह कहा था कि मेरे परिवार का कोई भी व्यक्ति बहुजन समाज पार्टी का मेंबर नहीं होगा. इसका मतलब यह नहीं कि मैं परिवारवाद के खिलाफ हूं.
आखिर में बीएसपी में हुआ क्या है
अब सवाल कि आखिर बीएसपी में हुआ क्या है. दरअसल बीएसपी अध्यक्ष मायावती के बीते एक साल में लिए फैसलों से बीएसपी में अंतर्कलह के आरोप लग रहे हैं. कभी मायावती ने कहा था कि उनका उत्तराधिकारी कोई दलित होगा. लेकिन उनके परिवार से नहीं होगा. लेकिन मायावती ने 10 दिसंबर 2023 को अपने भतीजे आकाश आनंद को ना सिर्फ पार्टी का नेशनल कॉर्डिनेटर बनाया बल्कि अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया. इसके बाद पिछले साल लोकसभा चुनाव के बीच में मायावती ने आकाश को अपरिपक्व बताते हुए सभी पदों से हटा दिया. लोकसभा चुनाव गुजरा तो वहीं आकाश फिर से मायावती की आंख के तारे बन गए लेकिन एक बार फिर आकाश आनंद को सभी पदों से हटाते हुए मायावती ने उन पर गंभीर आरोप लगाए हैं.
मायावती नहीं बनाएंगी कोई उत्तराधिकारी
मायावती ने 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा को देखते हुए अपने भाई आनंद कुमार और वरिष्ठ नेता रामजी गौतम को नेशनल कॉर्डिनेटर बनाया है. साथ ही ये भी घोषणा की है कि अपने जीते जी मायावती अपना कोई उत्तराधिकारी नहीं बनायेंगी. यहां एक बेहद महत्वपूर्ण किरदार के बारे में जान लेते हैं. ये किरदार कोई और नहीं बल्कि आकाश आनंद के ससुर और कभी मायावती के ख़ासमख़ास रहे अशोक सिद्धार्थ हैं. मायावती ने हाल ही में अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है. साथ ही प्रेस रिलीज़ में आकाश आनंद को पार्टी के सभी पदों से हटाने की वजह भी अशोक सिद्धार्थ को क़रार दिया गया है.
पूर्व बीएसपी नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी
मायावती ने आकाश से क्यों छिनी जिम्मेदारियां
वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा ने कहा कि आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी से कॉन्फ़्रन्टेश्न् मोल लेना उनके लिए लोकसभा में फायदेमंद नहीं था और उस लाभ हानि को वह जोड़ घटा करके उनको लगा कि अब आकाश आनंद को पीछे ले लेना चाहिए अभी वह जिस तरह आकाश आनंद को लेकर के वह फैसले लिए फिर उनको आगे किया पीछे किया उनके पिता को फिर अपॉर्चुनिटी दी तो लग रहा है कि वो किसी फैमिली कॉन्फ्लिक्ट के भी शिकार हैं जो लोगों को पता नहीं चल रहा है. मायावती अपने वोटों को सहेजने के लिए किसी नए फार्मूले को तलाश नहीं कर पा रही हैं. उन्हें इस समय अपने उत्तराधिकार की भी जरूरत है एक ऐसा आदमी जो उन्हें असिस्ट कर सके ठीक से.
आकाश के भाषणों की क्यों इतनी चर्चा
आकाश आनंद को जब मायावती ने अपना उत्तराधिकारी बनाया, तब आकाश आनंद की पहली परीक्षा लोकसभा चुनाव थी. लोकसभा में बीएसपी कुछ ख़ास तो नहीं कर पाई थी. लेकिन आकाश के भाषणों में जो तेज़ दिखाई दिया, उसकी चर्चा खूब हुई. इस विवाद ने किस तरह राजनैतिक रंग लिया है, ये समझने से पहले बीएसपी के इतिहास को समझना बेहद ज़रूरी हो जाता है. 1984 में बीएसपी का गठन हुआ और अब तक बीएसपी चार बार यूपी की सत्ता में बैठ पाई है. 2007 के यूपी विधानसभा में बीएसपी ने अकेले के दम पर 206 सीटें पाकर सरकार बनाई. लेकिन इसके बाद बीएसपी का डाउनफॉल ही दिखाई दिया. 2012 में पार्टी को 80 सीटें मिलीं, 2017 में सिर्फ 19 और 2022 में पार्टी महज़ एक सीट पर सिमट गई.
बीएसपी के मचे इस उठापटक पर जहां बीजेपी ने ज़्यादा कुछ नहीं कहा वहीं सपा और कांग्रेस ने मायावती पर सीधा हमला बोल दिया है. विपक्षी दल बीएसपी पर परिवार में कलह की बात पर हमला बोल रहे हैं. विपक्ष के इस हमले पर बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष इन दावों को ख़ारिज करते हैं. साल 2012 में यूपी की सत्ता से हटने के बाद बीएसपी का कैसे पतन हुआ, ये इन आंकड़ों से बेहतर समझा जा सकता है.
- 2007 में 206 सीटें पाकर बीएसपी यूपी की सत्ता में आई
- 2012 में सत्ता गई लेकिन बीएसपी 80 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही
- 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी का खाता नहीं खुला
- 2017 में विधायकों की संख्या मात्र 19 रह गई
- 2019 में सपा से गठबंधन किया तो दस सांसद चुनाव जीते
- 2022 में बीएसपी को विधानसभा में मात्र एक सीट मिली
- 2024 में अकेले चुनाव लड़ने वाली बीएसपी फिर से खाता नहीं खोल पाई
- 10 दिसंबर 2023 में आकाश आनंद को उत्तराधिकारी बनाया गया
- फिर 7 मई 2024 को उन्हें पद से हटा दिया गया
- इसके बाद फिर 23 जून 2024 को फिर से आकाश को मायावती ने आशीर्वाद दिया
- अब 2 मार्च 2025 को वापस आकाश को मायावती ने ज़मीन पर ला दिया
अब अगर बात करें बीएसपी के वोट शेयर की तो उसमें भी बड़ी पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है.
बसपा को तीन लोकसभा चुनावों में मिली सीटें व मत प्रतिशत
साल | पार्टी | सीटें जीती | मत प्रतिशत |
2024 | BSP | 0 | 9.27 |
2019 | BSP | 10 | 19.43 |
2014 | BSP | 0 | 19.77 |
- 2007 में बसपा 30.43 फीसदी पाकर 206 सीटें जीती
- 2012 में 25.95 प्रतिशत के साथ 80 सीटें
- साल 2017 में 22.23 प्रतिशत के साथ 19 सीटें
- साल 2022 में मात्र 12.08 फीसदी मत और एक सीट मिली
इस गिरते ग्राफ के बीच जब आकाश आनंद पर कार्रवाई हुई तो उन्होंने सधे हुए अंदाज़ में कुछ वैसी ही प्रतिक्रिया दी है, जैसी उन्होंने पिछले साल मई महीने में दी थी. इस बीच विपक्ष और राजनीति को समझने वालों ने बीएसपी की आतंरिक कलह को लेकर जमकर हमला किया है. विपक्ष के मुताबिक़ बीएसपी के आंतरिक कलह की वजह कुछ ये है. फ़िलहाल मायावती ने आकाश को ज़मीन पर लाकर 2027 की तैयारी शुरू कर दी है. अब सवाल ये है कि क्या मायावती का ये कार्ड काम करेगा, सवाल ये भी कि अब आकाश आनंद का राजनैतिक भविष्य क्या होगा? सवाल ये भी कि बीएसपी अपने कैडर वोट बैंक को वापस अपने साथ लौटेगी या नहीं? इन सभी सवालों का जवाब अभी भले ना मिले लेकिन उम्मीद है 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजों से ना सिर्फ इन सवाल का जवाब मिलेगा बल्कि बीएसपी का भविष्य का आंकलन भी संभव हो सकेगा.