परिवार की कलह में ये 11 दल भी टूटे, कहीं सास-बहू तो कहीं भाई-भाई और चाचा-भतीजे की लड़ाई ले डूबी

बीआरएस में के. कविता और भाइयों के बीच कलह चरम पर है. राजनीतिक परिवार में कलह का ये पहला मामला नहीं हैं. देश की सियासत में कम से कम 10 ऐसी पार्टियां हैं, जिन्हें पारिवारिक फूट के बाद टूट का सामना करना पड़ा है.

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  • भारत राष्ट्र समिति (BRS) में के. कविता के निष्कासन को लेकर आंतरिक कलह चरम पर है.
  • भारत की राजनीति में कम से कम 11 दल ऐसे हैं, जिन्हें परिवार की कलह में टूट का सामना करना पड़ा.
  • इनमें कहीं सास-बहू, कहीं भाई-भाई तो कहीं चाचा-भतीजे की वजह से परिवार में तकरार हुई.
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KCR के नाम से चर्चित के. चंद्रशेखर राव की पार्टी में कलह खुलकर सामने आ चुकी है. पूर्व मुख्यमंत्री की बेटी के. कविता को भाइयों के खिलाफ आवाज उठाने का खामियाजा भुगतना पड़ा है. पार्टी से बाहर किए जाने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया है. लेकिन राजनीतिक परिवार में कलह का ये पहला मामला नहीं हैं. देश में कम से कम 11 ऐसी पार्टियां हैं, जिन्हें पारिवारिक फूट के बाद टूट का सामना करना पड़ा है. 

भारत राष्ट्र समिति (BRS) में इन दिनों सत्ता को लेकर आंतरिक कलह चरम पर है. पार्टी से निलंबन के दूसरे दिन बुधवार को केसीआर की बेटी के. कविता ने पार्टी से और विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी. उन्होंने चचेरे भाई व पूर्व मंत्री टी. हरीश राव पर केसीआर परिवार के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया. कविता इससे पहले सगे भाई के.टी. रामाराव और चचेरे भाई संतोष राव पर भी आरोप लगा चुकी हैं. 

कलह में ये पार्टियां हुईं दोफाड़

कांग्रेस पार्टी 

गांधी परिवार में कलह की शुरुआत संजय गांधी के असमय निधन के बाद हुई, जब इंदिरा गांधी ने राजनीति में रुचि न रखने वाले राजीव गांधी को आगे बढ़ाना शुरू किया. यह फैसला संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी को स्वीकार नहीं था. इससे दोनों के बीच मतभेद गहराने लगे. इंदिरा गांधी ने 28 मार्च 1982 की रात को मेनका को घर छोड़ने का आदेश दे दिया. मेनका दो साल के बेटे वरुण को गोद में लेकर प्रधानमंत्री आवास से निकल गईं. बाद में मेनका ने राष्ट्रीय संजय मंच की स्थापना की और 1984 में राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं. बाद में मेनका जनता दल में शामिल हो गईं. मेनका की विरासत वरुण ने संभाली, वहीं कांग्रेस की कमान राहुल के हाथ में आई. हालांकि कुछ समय बाद राहुल ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया. 

राष्ट्रीय जनता दल 

आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने अपने बेटे तेजप्रताप यादव को निजी जीवन से जुड़े विवादों और सार्वजनिक आचरण को लेकर पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया. इसके बाद तेजप्रताप ने अपनी नई राजनीतिक पार्टी जनशक्ति जनता दल बना ली. अब वह भाई तेजस्वी यादव के करीबी नेताओं के खिलाफ चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. इससे पहले, 2021 में तेजप्रताप और तेजस्वी के बीच जगदानंद को बिहार को प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर घमासान हुआ था. 

समाजवादी पार्टी 

सपा के संस्थापक मुलायम सिंह के निधन के बाद उनकी सियासी विरासत को लेकर अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच सत्ता संघर्ष हुआ. इसी वजह से पार्टी में बड़ी टूट हुई. शिवपाल यादव ने बाद में अपनी खुद की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बना ली. 2016 में मुलायम ने बेटे अखिलेश और चचेरे भाई रामगोपाल यादव को पार्टी से निकाल दिया था. बाद में अखिलेश पार्टी का अधिवेशन बुलाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. 

शिवसेना

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों ही बाल ठाकरे के करीबी रहे, लेकिन शिवसेना की विरासत को लेकर मतभेद ने उन्हें अलग रास्तों पर ला खड़ा किया. शिवसेना हिंदुत्व और मराठी मानुष की राजनीति करने वाली पार्टी रही. राज ठाकरे की उग्र राजनीति में इसकी झलक थी, लेकिन 2006 में उद्धव को कमान सौंपने से खफा होकर राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) बना ली. हालांकि पिछले कुछ दिनों से दोनों की जुगलबंदी दिख रही है. 

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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी 

शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के बीच सत्ता संघर्ष के कारण पार्टी दोफाड़ हो गई. अजित पवार ने पार्टी के अधिकांश विधायकों को साथ मिलाकर अलग गुट बना लिया और महाराष्ट्र सरकार में शामिल हो गए. अजित ने इसस पहले 2019 में भी बगावत की थी और बीजेपी से हाथ मिला लिया था. लेकिन तब शरद पवार ने डैमेज कंट्रोल कर लिया था.

लोक जनशक्ति पार्टी (LJP)

रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद उनके बेटे चिराग पासवान और भाई पशुपति कुमार पारस के बीच पार्टी के नेतृत्व को लेकर संघर्ष हुआ, जिसके कारण पार्टी दो गुटों में विभाजित हो गई. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के एक साल के अंदर ही पार्टी पर कब्जे के लिए परिवार अखाड़ा बन गया था.  

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AIADMK

एम.जी. रामचंद्रन के निधन के बाद 1987 में उनकी पत्नी जानकी रामचंद्रन और जयललिता के बीच अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के नेतृत्व को लेकर तीखा विवाद हुआ. इसकी वजह से पार्टी दो गुटों में बंट गई. हालांकि बाद में जानकी ने राजनीति से संन्यास ले लिया. बाद में जयललिता की मौत के बाद 2016 में ओ. पनीर सेल्वम और के. पलानीसामी के बीच नेतृत्व को लेकर विवाद हुआ. 

जनता दल (सेक्युलर)

एच.डी. देवेगौड़ा के परिवार के भीतर सत्ता और टिकट वितरण को लेकर समय-समय पर मतभेद सामने आते रहे हैं. खासकर उनके बेटे एच.डी. कुमारस्वामी और एच.डी. रेवन्ना के बीच कई बार सार्वजनिक मंचों पर भी असहमति देखी गई है. 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले हासन सीट को लेकर भी पार्टी में विवाद हुआ, जब रेवन्ना की पत्नी भवानी रेवन्ना ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की, लेकिन कुमारस्वामी ने साफ कह दिया कि उन्हें टिकट नहीं दिया जाएगा.

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द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK)

एम. करुणानिधि के 2018 में निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत के लिए परिवार में घमासान हुआ. करुणानिधि के दो बेटों एम.के. स्टालिन और एम.के. अलागिरी के बीच पार्टी के उत्तराधिकार को लेकर लंबे समय तक विवाद रहा. इसकी शुरुआत 2014 में ही हो गई थी. तब करुणानिधि ने अलागिरी को पार्टी से निकाल दिया था. दो साल बाद 2016 में स्टालिन को वारिस घोषित किया. 

भारतीय राष्ट्रीय लोक दल (INLD)

हरियाणा में देवीलाल की विरासत की जंग में परिवार बिखर गया. देवीलाल की विरासत के उनके बेटे ओमप्रकाश ने आगे बढ़ाया और मुख्यमंत्री बने. लेकिन बाद में ओम प्रकाश चौटाला के बेटों अभय चौटाला और अजय चौटाला के बीच पार्टी के नेतृत्व को लेकर खूब कलह हुई. इनेलो की कमान अभय चौटाला के हाथ में आई. 2014 में अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला ने राजनीति में उतरे और 2018 में जननायक जनता पार्टी (JJP) बना ली. 

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अकाली दल

पंजाब के कद्दावर नेता रहे प्रकाश सिंह बादल की शिरोमणि अकाली दल में भी दोफाड़ हुआ था. प्रकाश सिंह जब सुखबीर बादल को कमान सौंपने वाले थे, इसका पता चलने पर भतीजे मनप्रीत बादल का मन खट्टा हो गया था. चाचा से नाराज होकर उन्होंने अकाली दल छोड़ दिया और अलग पार्टी बना ली थी. बाद में मनप्रीत बादल की पंजाब पीपल्स पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया, लेकिन 2017 के बाद मनप्रीत ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी से जुड़ गए.   

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