अब करगिल जैसे युद्ध की हिमाकत नहीं करेगा पाक, भारत काफी आगे निकल चुका : ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर (रिटा.)

लद्दाख के द्रास-करगिल क्षेत्र में टाइगर हिल सबसे ऊंची चोटियों में से एक है. रणनीतिक तौर पर इस पर कब्जा भारत के लिए बेहद जरूरी माना जाता रहा है. ब्रिगेडियर ख़ुशहाल ठाकुर के नेतृत्व में भारत ने कारगिल युद्ध के दौरान इस पर तिरंगा फहराया था.

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नई दिल्ली:

करगिल युद्ध (kargil war) में भारत की जीत के 25 साल पूरे होने वाले हैं. देश रजत जयंती समारोह मना रहा है. करगिल युद्ध के दौरान सबसे बड़ी जीत टाइगर हिल पर विजय को माना जाता है.  लद्दाख के द्रास-करगिल क्षेत्र में यह सबसे ऊंची चोटियों में से एक है. रणनीतिक तौर पर इस पर कब्जा भारत के लिए बेहद जरूरी माना जाता रहा है. ब्रिगेडियर ख़ुशहाल ठाकुर गर्नेडियर्स के सीओ थे. एनडीटीवी के साथ बात करते हुए उन्होंने कई मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी.  

सवाल- सर क्या उस समय आप लोगों को टास्क सौंपा गया था, यह आपके लिए कितनी बड़ी चुनौती थी? 
जवाब- देखिए सबसे पहले तो करगिल की रजत जयंती मनाई जा रही है. 25 साल अभी पूरे होने जा रहे हैं. इस उपलक्ष्य में हमारे जितने भी रणबांकुरे हैं, हमारे योद्धा हैं, उनको नमन करता हूं. साथ ही 18 ग्रेनेडियर जिसकी मैंने कमान संभाली थी तोलोलिंग ऑपरेशंस में, और टाइगर हिल ऑपरेशन में. मेरे 34 रणबांकुरे इसमें शहीद हुए थे. मैं उनको भी नमन करता हूं, उनको भी वंदन करता हूं. शुरू के हालात ये थे कि कुछ 5-6 मुजाहिदीन तोलोलिंग के ऊपर आ गए थे.

मेरी यूनिट उस समय वैली में थी, कश्मीर में थी. सबसे नज़दीक मैं था, तो 16 को हमको हुक्म मिला कि आप द्रास में आ जाइए. 18 को हम वहां पर पहुंच गए. 19 को हमको बोला गया कि तोलोलिंग की पहाड़ी जो कि करीब 15-16 हज़ार फ़ीट पर थी, यहां पर मुजाहिदीन हैं, आप हमला कर दीजिए. कुछ चीज़ों की ज़रूरत है, हाई अल्टीट्यूड सामान की ज़रूरत है, तो ये बताया गया कि दिख तो रहा है पास ही है, कोई ज़रूरत नहीं. इसमें किसी की गलती नहीं किसी को अंदाज़ा नहीं था कि कितनी बड़ी घुसपैठ हुई है. 1500 वर्ग किमी का इलाका था. जिन चौकियों को हम सर्दियों में छोड़ देते थे उसमें वो कब्ज़ा करके बैठे हुए थे. ज़ाहिर था हम तोलोलिंग के ऊपर चढ़ गए. 22 दिन हमें लगे और 13-14 जून को हमने कब्ज़ा कर लिया.  लेकिन ये 22 दिन की जो कहानी है वो बहुत मुश्किल कहानी है. 

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सवाल-  सीधे वैली से आकर तोलोलिंग पर चढ़ना कितनी बड़ी चुनौती थी?
जवाब- वो ऊंचाई वाला इलाका है. कम से कम एक हफ़्ते का समय शरीर को ढ़लने के लिए दिया जाता है. साथ में आपको तैयारी करनी पड़ती है, आपको रिहर्सल करनी पड़ती है, आपको सामान जमा करना पड़ता है. वो सारी चीज़ें नहीं की थी, क्योंकि यही बताया गया था कि जिस तरह 4-5 आतंकी कहीं छुपे हैं. उसी तरह 4-5 आतंकी कहीं ऊपर हैं. हमने भी यही सोचा कि 4-5 हैं उनको निपट लेंगे. लेकिन जैसे-जैसे लड़ाई बड़ी, हमें नुकसान हुआ. तोलोलिंग लड़ाई में हमारे जो सेकंड इन कमांड थे, कर्नल आर विश्वनाथन, उनकी मौत मेरी गोद में हुई. मुझे 2 अफ़सर, 2 जेसीओ और 20 जवान इस तोलोलिंग की लड़ाई में खोना पड़ा. ये बहुत मुश्किल लड़ाई थी तोलोलिंग की. 

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सवाल- तोलोलिंग पर कब्ज़ा बहुत मुश्किल था. उस समय के चीफ़ जनरल भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं, आप अपना अनुभव बताइए? 
जवाब- जनरल मलिक साहब मेरी यूनिट में दो बार आए. एक वीरता पुरस्कार उन्होंने मेरी यूनिट को वहीं पर डिक्लेर कर दिया था. तोलोलिंग की लड़ाई के बाद. उनको मालूम था कि कितनी मुश्किल लड़ाई थी. जैसे कि मैं बता रहा हूं. मैं तो उन जवानों के साथ था. 22 दिन हम बिना नहाए, बिना शेव किए...वहां तो शौच के लिए जगह नहीं होती थी. ख़ाली पहाड़ियां हैं. थोड़ा सिर इधर करो तो स्नाइपर आ जाते. पेड़ तो क्या घास का तिनका नहीं है. 28 फ़रवरी को उनकी कितनी तैयारी थी कि स्टिंगर मिसाइल से हमला किया. इतनी मुश्किल लड़ाई थी. मेरी यूनिट और भारतीय सेना को हैट्स ऑफ़. इन हालात में भी एक कमान अधिकारी के तौर पर जो मैंने हुक्म दिया, वो उन्होंने माना. 

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सवाल- आपके ऊपर इस पूरे ऑपरेशन के दौरान कितना प्रेशर था? 
जवाब- देखिए दबाव बहुत था, लेकिन सीओ होने के नाते आपको ब्रेव फ़ेस दिखाना होता है. पूरी पलटन आपकी तरफ़ देख रही होती है. अगर आपके चेहरे से लग रहा है कि सीओ साहब कुछ डगमगा गए हैं तो...यही वजह है कि जो आखिरी बंकर बचा था, उसमें मैंने निर्णय किया कि मैं ख़ुद युद्ध में जाऊंगा...देखिए कोई ये कहे कि मुझे मौत से डर नहीं लगता तो मैं उस बात को नहीं मानता. जब मैंने देखा कि 22 दिन होने के बाद भी जवान डटे हैं तो अंत में मैंने अपने टूआइसी को कहा कि विश्वनाथन एक कमांडिग ऑफ़िसर के तौर पर मैं अपनी जो टीम है और कुछ दूसरे जवानों को बुलाकर मैं भी एक बार ट्राइ करूंगा. उन्होंने कहा कि सर अगर सीओ जा रहा है तो मैं पीछे कैसे रह सकता हूं. टूआईसी को कोई ये नहीं है कि वो आगे लीड में रहे.

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आईसी लॉजिस्टिक या एडमिनिस्ट्रेशन पीछे देखता है. लेकिन वो इतने अच्छे अफ़सर थे, इतने योद्धा थे कि जिस अटैक में हम दोनों गए उस अटैक ने हम दोनों को लीड किया, और जिसमें वो शहीद हुए. वहां बर्फ़ थी, बहुत ठंड थी, बड़ी मुश्किल से उनको पत्थर के पीछे लाए. मैंने गोद में रखा. धीरे-धीरे हमने उनको खोया. ये बात 2-3 जून की है. जब इतना नुकसान हो गया तो सेना थोड़ा वाइज़र हुई. कोर कमांडन ने कहा खुशहाल वी बिकम वाइज़र आफ़्टर तोलोलिंग. उसके बाद उन्होंने कहा कि सही से सामान आने तो, बोफ़ोर्स आने तो, सही तरीके से हमला करो. तोलोलिंग लड़ाई ने पूरे देश में नया मोड़ लाया. प्रेशर था, सब लोग देख रहे थे. सीनियर अफ़सरों पर प्रेशर था, जवानों को मोटिवेट रखने का भी प्रेशर था. और जो हालात थे वो दबाव भी एक कमान अधिकारी को रहते हैं.

सवाल- आपने इस ऑपरेशन के दौरान और अधिक हथियार और सैनिकों की मांग क्यों नहीं की? 
जवाब- आपकी बात सही है, लेकिन हमने भी सोचा था कि वाकई वो 5-6 लोग होंगे. उस बहुत हलचल थी. बटालिक, करगिल, मशकोह, द्रास पूरे में हलचल थी. हम घाटी में थे, हमने सोचा कि 20 तो मारे ही हैं, वहां 4-5 हैं, उनको भी देख लेंगे. द्रास से तोलोलिंग बिल्कुल सामने दिखता है. लेकिन जब आप चलोगे तो देखोगे कि क्या है. वैसे हमने डिमांड भी की थी, वो साधन उपलब्ध नहीं थे, और पूरा देश भी यही कहना चाह रहा था कि मुजाहिदीन हैं. जल्दी से जल्दी चौकियों पर हम कब्ज़ा चाहते थे. लेकिन बाद में महसूस हुआ कि ये थोड़ा मुश्किल है.

सवाल- तोलोलिंग पर तिरंगा फहराने के लिए आप लोगों को क्या कीमत चुकानी पड़ी? 
जवाब- कोई भी कीमत अपने देश के लिए बड़ी नहीं है. इसी के लिए एक सैनिक अपनी कसम खाता है. लेकिन मुझे बहुत बड़ा गौरव है, बहुत बड़ा इत्मिनान है कि मेरी कमांड में किसी ने पीठ नहीं दिखाई. 34 लोग शहीद हुए. जो कसम खाई वो उन लोगों ने पूरा किया.

सवाल- तोलोलिंग में नुकसान हुआ, फिर टाइगर हिल्स पर भी आपने कहा कि कब्ज़ा करेंगे.
जवाब- तोलोलिंग के बाद एक और फ़ीटर था, हंप था जिसे मेजर जॉयदास ने लीड किए. उसमें भी मुझे 9 जवान खोने पड़े दुश्मन की आर्टिलरी फ़ायर की वजह से. इतना कुछ खोने के बाद भी हमें 24 जून को टाइगर हिल का टास्क मिला. थोड़ा समय रेस्ट का दिया गया ज़ोजिला पास के निकट. हालांकि अच्छी बात ये थी कि इस बार हमको बहुत टाइम मिला तैयारी के लिए. जो भी हमने दस्ते मांगे वो दिए गए. 

सवाल- टाइगर हिल में कैसे तिरंगा फहराया, मुझे जानकारी है कि इसकी पूरी प्लानिंग आपकी थी? 
जवाब- प्लानिंग कुछ हद तक ठीक है, लेकिन अंत में उसका execution मत्वपूर्ण होता है. इस बार हमें समय मिल गया, तैयारी भी की. मैं लड़कों से कहता था कि मैं किसी ऐसे ख़तरे में नहीं डालूंगा कि जहां मैं ख़ुद न पड़ूं. मैं उनके साथ रहता था. मैंने पूरी लड़ाई में हथियार कैरी नहीं किए. मेरे हाथ में एक डंडा होता था. जब मेरे पास एक हज़ार आदमी हैं तो मुझे हथियार की ज़रूरत नहीं. मेरे पास यंग लीडरशिप थी. योगेंद्र यादव, कर्नल बलवान महज़ 2 साल की सर्विस थी. यंग लड़के थे जिनकी वजह से लड़ाई जीती गई. कभी एक आदमी से, चाहे जितनी प्लानिंग कर ले सीओ, उससे लड़ाई नहीं जीती जाती. 

सवाल- कैसे असंभव को संभव कर दिखाया?
जवाब- हमने तीन रास्तों पर तो टीम भेजी, लेकिन सबसे घातक कमांडो पीछे के रास्ते से भेजे जिसमें कर्नल बलवान और योगेंद्र यादव भी थे.  उन्हें रस्सियों से ऊपर चढ़ाया. जब वो पीछे आकर बैठ गए तो वहां खलबली मच गई. जिसकी वजह से हमने टाइगर हिल टॉप को कब्ज़ा किया. इसके बाद बाकी कंपनियां धावा बोलकर ऊपर चढ़ पाईं. आर्टिलरी ने बहुत अच्छा काम किया. वहां रिस्क था, लेकिन उन्होंने बहुत अच्छा काम किया. पाकिस्तानी कहते थे कि टाइगर हिल हम हिंदुस्तानियों को नहीं जीतने देंगे, इसे वो मदर ऑफ़ ऑल बैटल कहते थे. सबने मिलकर इस जीत को दिलाया.  Surprise to victory, बहुत ज़रूरी है. 

सवाल- क्या फिर पाकिस्तान करगिल जैसा कुछ हिम्मत कर सकता है
जवाब- वो अब ऐसा नहीं कर सकते. उन्होंने बहुत बड़ी ग़लती की. उस समय भी उनकी पीएम और आर्मी चीफ़ में तनातनी हो गई थी. आज तैयारी में हम बहुत आगे निकल चुके हैं. आज हमारे पास एआई है. आज लड़ाई के लिए ड्रोन्स हैं. कई तरह से हम उनके ऊपर निगरानी रख सकते हैं.

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