'गरीब' बनकर EWS फ्लैट हड़पने के मामले में पूर्व मंत्री कोकाटे को हाईकोर्ट से बड़ी राहत, मिली बेल

एनसीपी (अजित पवार गुट) के विधायक और पूर्व मंत्री माणिकराव कोकाटे 1995 के धोखाधड़ी और जालसाजी मामले में दो साल की सजा के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचे हैं.

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  • महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री माणिकराव कोकाटे को 1995 के मामले में नासिक सेशन कोर्ट ने 2 साल की सजा सुनाई है
  • कोकाटे ने आर्थिक रूप से कमजोर होने का दावा कर 1989 से 1994 के बीच सरकारी फ्लैट हासिल किए थे
  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद कोकाटे को जमानत दे दी, हालांकि नासिक कोर्ट के फैसले पर स्टे नहीं लगाया
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मुंबई:

महाराष्ट्र के पूर्व खेल एवं युवा कार्य मंत्री माणिकराव कोकाटे को धोखाधड़ी और जालसाजी मामले में दो साल की सजा के खिलाफ अपील पर शुक्रवार को बॉम्बे हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिली. अदालत ने सुनवाई के बाद एक लाख के मुचलके श्योरिटी पर जमानत दे दी. हालांकि हाईकोर्ट ने नासिक कोर्ट के फैसले पर स्टे नहीं लगाया, मतलब कोकाटे इस मामले में दोषी बने रहेंगे. उनकी विधायकी पर फैसला विधानसभा अध्यक्ष लेंगे. 

सुनवाई के दौरान एनसीपी (अजित पवार गुट) के विधायक कोकाटे के वकीलों ने बचाव में दलीलें दीं और कहा कि जिस 25 एकड़ जमीन की बात हो रही है, वह कोकाटे के पिता की थी. इस पर कोर्ट ने तीखे सवाल पूछे. हाईकोर्ट ने कोकाटे के वकील से पूछा कि आपने इतनी बड़ी जमीन के बारे में जानकारी क्यों नहीं दी? इतनी बड़ी जमीन के बारे में जानकारी नहीं देने को क्या संपत्ति छिपाना नहीं माना जाएगा? जज ने कहा कि आपने हलफनामे में अपनी खेती की आय और जमीन का जिक्र क्यों नहीं किया? आपके आवेदन और हलफनामे में विरोधाभास है.

कोकाटे को 2 साल की सजा, मंत्री पद भी गया

याद दिला दें कि माणिकराव कोकाटे को नासिक की सेशन कोर्ट ने 1995 के धोखाधड़ी और जालसाजी मामले में दो साल की सजा सुनाई है. उनकी गिरफ्तारी का वारंट भी जारी किया है. प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उन्हें ये सजा दी थी, जिसे सेशन कोर्ट ने बरकरार रखा है. कोकाटे पर आरोप है कि उन्होंने नाशिक के पॉश इलाके कॉलेज रोड स्थित निर्माण व्यू अपार्टमेंट में 1989 से 1994 के दौरान 4 सरकारी फ्लैट हथियाने के लिए खुद को आर्थिक रूप से कमजोर (EWS) बताया था. 

कोकाटे के वकील अनिकेत निकम और वरिष्ठ वकील रवि कदम ने जस्टिस आर.एन. लड्ढा की बेंच के सामने माणिकराव कोकाटे का पक्ष रखा. वकीलों ने तर्क दिया कि 1989 में आवेदन के समय कोकाटे की आय पात्रता सीमा (33 हजार रुपये) के अंदर थी. 11 सितंबर 1989 को आवेदन के समय दिया गया था. उसका वेरिफिकेशन भी हुआ था. 1993-94 में आय बढ़कर 34 हजार से अधिक हो गई, लेकिन आवेदन की तारीख के आधार पर पात्रता देखी जानी चाहिए. 

हाई कोर्ट में बचाव पक्ष ने क्या दलीलें दीं?

एडवोकेट रवि कदम ने बचाव में कहा कि कोकाटे को फर्जीवाड़े (फॉर्जरी) के मामले में दोषी ठहराया गया है, लेकिन यह फॉर्जरी नहीं है. कागज़ों पर जो हस्ताक्षर हैं, वे हमारे ही हैं. कोई व्यक्ति अपने ही हस्ताक्षर की फॉर्जरी कैसे कर सकता है? जानकारी भले ही गलत हो, लेकिन सिर्फ गलत जानकारी होने से उसे फॉर्जरी नहीं माना जा सकता. इसके बावजूद धारा 463 (फॉर्जरी) के तहत दोषी ठहराया गया है, जबकि यह मामला फॉर्जरी का है ही नहीं. 

सेशन कोर्ट के फैसले पर उठाए सवाल

बचाव पक्ष के वकीलों ने कहा कि सेशन कोर्ट ने अपने फैसले में कोकाटे की आर्थिक स्थिति का सिर्फ अनुमान लगाया गया है. सत्र न्यायालय ने काफी कैजुअल तरीके से फैसला दिया है. आर्थिक स्थिति का आकलन करते समय 1984 से 1990 तक का लेखा-जोखा सामने रखा गया है. सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष की तरफ से लीलावती अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट भी पेश की गई. कोर्ट को बताया गया कि मणिकराव कोकाटे फिलहाल आईसीयू में भर्ती हैं और उनकी हालत नाजुक है. डॉक्टरों ने आज ही उनकी अर्जेंट एंजियोप्लास्टी करने को कहा है.

सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कोकाटे के दावों का विरोध करते हुए कहा  कि 1994 में हलफनामे में संपत्ति का खुलासा करने का नियम जोड़ा गया था. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि केवल 1989 के आवेदन पर विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने आरोप लगाया कि निचली अदालत में गलत जानकारी और झूठे बयान देकर जमानत हासिल की गई थी. इस पर जस्टिस लड्ढा ने सवाल किया कि उस समय आपने इस पर क्या कार्रवाई की थी?

सरकार का क्या रुख, स्पष्ट नहीं कर पाए वकील

अदालत में उस वक्त अजीब स्थिति पैदा हो गई, जब सरकारी वकील राज्य सरकार का रुख स्पष्ट नहीं कर पाए. इस बात को लेकर उलझन रही कि सरकारी वकील याचिका का विरोध कर रहे हैं या नहीं. दलीलें पेश करते समय सरकारी वकील ने कहा कि उन्हें केवल "तथ्यों को अदालत के सामने रखने" के निर्देश मिले हैं. कोर्ट ने बार-बार पूछा कि इस मामले में राज्य सरकार का स्पष्ट स्टैंड क्या है? हालांकि सरकारी वकील कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे सके. सरकारी वकील ने समय देने की मांग की, लेकिन कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि सुनवाई नहीं टलेगी.

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