- बीजेपी ने झारखंड में आदित्य साहू और गुजरात में जगदीश विश्वकर्मा को ओबीसी प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है.
- गुजरात में भाजपा ने पटेल-ओबीसी गठबंधन को मजबूत करते हुए 2027 विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं.
- कांग्रेस के ओबीसी-आदिवासी गठबंधन के जवाब में भाजपा ने दोनों राज्यों में ओबीसी नेतृत्व को बढ़ावा दिया है.
बीजेपी ने एक ही दिन में दो बड़े राज्यों में ओबीसी प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति कर बड़ा ओबीसी कार्ड चला है. जहां झारखंड में राज्य सभा सांसद आदित्य साहू को प्रदेश बीजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है. वहीं गुजरात में राज्य सरकार में मंत्री जगदीश विश्वकर्मा को कमान सौंपी है. यह कांग्रेस की काट मानी जा रही है, क्योंकि गुजरात में कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष ओबीसी बनाया है और विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता की कमान आदिवासी को सौंपी है. कांग्रेस के ओबीसी-आदिवासी कंबीनेशन के जवाब में बीजेपी ने गुजरात में पटेल-ओबीसी कंबीनेशन सामने रखा है. विश्वकर्मा के कंधों पर मिशन 2027 की जिम्मेदारी होगी, क्योंकि तब राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. वहीं आदित्य साहू को रवींद्र कुमार राय के स्थान पर कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है, जिनकी अगुवाई में बीजेपी विधानसभा चुनाव हार गई थी.
उपराष्ट्रपति चुनाव में भी दिया संदेश
गौरतलब है कि राहुल गांधी बीजेपी पर ओबीसी मुद्दे को लेकर हमलावर रहे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने जातिगत जनगणना का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस के चार में तीन मुख्यमंत्री ओबीसी हैं, लेकिन बीजेपी के दस में केवल एक ओबीसी मुख्यमंत्री क्यों है? हालांकि, बीजेपी ने एमपी और हरियाणा में ओबीसी वर्ग को मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी हुई है. मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना का ऐलान कर कांग्रेस के हाथों से यह मुद्दा भी छीन लिया है. यही नहीं, बीजेपी ने उपराष्ट्रपति का पद भी ओबीसी वर्ग को देकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है.
गुजरात-झारखंड का गणित
गुजरात और झारखंड दोनों ही राज्यों में ओबीसी वोटों वर्चस्व है. ऐसे में बीजेपी ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं. झारखंड में ओबीसी वोटों की संख्या चालीस प्रतिशत से भी अधिक है, जबकि गुजरात में करीब 38 प्रतिशत. राज्य की 182 में से 156 सीटों पर ओबीसी वोट काफी महत्वपूर्ण हैं. वे पारंपरिक तौर पर कांग्रेस के साथ रहे, लेकिन 2012 के बाद से मजबूती से बीजेपी के साथ आ गए. इस वर्ग में प्रदेश की 150 से अधिक जातियां शामिल हैं. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी सरकार ने गुजरात में स्थानीय निकायों और पंचायतों के चुनाव में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का विधेयक भी विधानसभा से पारित कराया था. वर्तमान में बीजेपी के पचास से भी अधिक विधायक ओबीसी समाज से हैं.