देशभर में 17 जुलाई, बुधवार यानी कि आज मुहर्रम (Muharram) का त्योहार मनाया जा रहा है. शोक का त्योहार मुहर्रम मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत ही खास होता है. ये जानकर आप चौंक जाएंगे कि मुहर्रम सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि हिंदू भी मनाते हैं. ऐसी एक प्रथा बिहार में पिछले सौ सालों से चली आ रही है. बिहार के कटिहार का हिंदू समुदाय पिछले 100 सालों से अपने पूर्वजों से किया वादा निभाते हुए मुहर्रम मना रहा है. हसनगंज प्रखंड के महमदिया हरिपुर गांव के लोग मुहर्रम मनाकर सांप्रदायिक सौहार्द की ऐसी मिसाल पेश करते आ रहे है, जिसकी चर्चा बिहार में ही नहीं देशभर में हो रही है.
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कटिहार के हिंदू क्यों मना रहे मुहर्रम?
एक सदी बीत गई लेकिन महमदिया हरिपुर गांव के लोगों ने अपने पूर्वजों से किया वादा नहीं तोड़ा. यहां के हिंदू झरनी के गीत और तमाम रीत-रिवाजों के साथ पिछले 100 सालों से ज्यादा समय से मुहर्रम मना रहे हैं. खास बात ये है कि लगभग 5 किलो मीटर के क्षेत्र की आबादी वाले इस गांव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है, लेकिन फिर भी हर साल मातम का त्योहार मुहर्रम यहां पूरे रीत-रिवाज के साथ मनाया जाता है. स्वर्गीय छेदी साह की मजार से जुड़ी मुहर्रम की ये कहानी बड़ी ही दिलचस्प है.
मुहर्रम मनाने के पीछे की कहानी
गांव वालों का कहना है कि यह जमीन वकाली मियां की थी. लेकिन बीमारी से उनके बेटों की मौत हो गई. इसके बाद वह इस जीमन को छोड़कर जाने लगे. लेकिन जाने से पहले उन्होंने छेदी साह को जमीन देते हुए वादा लिया की ग्रामीणों को शोक का त्योहार मुहर्रम पूरे रीति-रिवाज के साथ मनाना होगा. उन्होंने भी ये वादा कर दिया. बस फिर क्या था, वो दिन और आज का दिन. पूर्वजों से किए इसी वादे को पूरा करते हुए आज भी इस गांव के हिंदू मुहर्रम मना रहे हैं.
क्यों खास है मुहर्रम का त्योहार?
इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम होता है, इसलिए भी ये महीना मुस्लिमों के लिए खास होता है. दुनियाभर में मातम का ये त्योहार मुस्लिम मनाते हैं. लेकिन बिहार में एक ऐसी जगह है, जहां हिंदू इस त्योहार को मनाते हैं. मुहर्रम महीने के 10वें दिन को आशूरा के रूप में मनाया जाता है. इस्मालिक कैलेंडर के हिसाब से आज आशूरा है, इसे मुहर्रम के रूप में देशभर में मनाया जा रहा है.
क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?
इस्लाम के मुताबिक, रमजान के बाद दूसरा पाक महीना मुहर्रम होता है. आज की के दिन इस्माल के अंतिम पैगंबर मुहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ शहादत दी थी. उनकी शहादत का दिन मुहर्रम महीने का 10वां दिन था. मुहर्रम को इमाम हुसैन की कुर्बानी का दिन माना जाता है. शिया मुस्लिम उनकी शहादत के शोक को मुहर्रम के तौर पर मनाते हैं. मुहर्रम के दिन शिया मुस्लिम काले रंग के कपड़े पहनते हैं और ताजिए का जुलूस निकालते हैं. लोग इस दिन खुद को घायल कर इमाम हुसैन की शहादत का शोक मनाते हैं. सुन्नी मुस्लिम ताजिए नहीं निकालता लेकिन वह मुहर्रम के दिन सिर्फ इबादत करता है.