''नौजवान इसलिए लंबा फ्यूचर'', क्या तेजस्वी के मामले में पायलट केस से सीख ले रहे गहलोत?

35 साल के तेजस्वी यादव महागठबंधन की ओर से बिहार में मुख्यमंत्री का चेहरा हैं. जबकि 47 साल के मुकेश सहनी उप मुख्यमंत्री के फेस. 74 साल के अशोक गहलोत ने बिहार में महागठबंधन की गुत्थी सुलझा दी लेकिन राजस्थान, एमपी में खुद कांग्रेस में ऐसा नहीं हो सका था.

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तेजस्वी यादव, सचिन पायलट, अशोक गहलोत.
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  • अशोक गहलोत ने बिहार में महागठबंधन में मची रार को एक रात में सुलझा दिया. उन्होंने तेजस्वी को CM फेस घोषित किया.
  • बिहार महागठबंधन में सीट बंटवारे से लेकर सीएम फेस को लेकर मची रार कई दिनों से चल रही थी.
  • गहलोत को इस रार को सुलझाने में उनका पुराना तजुर्बा काम आया. जानकार इसे पायलट और सिंधिया से जोड़ रहे हैं.
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जयपुर/पटना:

"इस चुनाव में अगले मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में तेजस्वी यादव को हम प्रमोट करते हैं. वह नौजवान हैं. उनके साथ लंबा फ्यूचर है. मेरा अनुभव है कि जिसका लंबा फ्यूचर होता है, जनता उसका साथ देती है." गुरुवार को पटना में आयोजित प्रेस कॉफ्रेंस में यह बयान देते हुए राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने बिहार में महागठबंधन में मची रार को समाप्त कर दिया. अशोक गहलोत के इस बयान ने बिहार के विपक्षी दलों में सियासी तूफान को तो शांत कर दिया, लेकिन इससे राजस्थान में उनकी पायलट के साथ चली प्रतिद्वंद्विता की कहानी फिर चर्चा में आई.
 

यह भी चर्चा शुरू हुई कि आखिर गहलोत ने इस रार को मात्र एक रात में कैसे सुलझा दिया. जानकारों की मानें तो इसमें उनके पुराने अनुभव काम आए होंगे.

74 साल के गहलोत ने सुलझाई बिहार की सियासी पेच

कांग्रेस नेता के इस बयान से यह साफ हो गया कि 35 साल के तेजस्वी यादव महागठबंधन की ओर से बिहार में मुख्यमंत्री का चेहरा हैं. जबकि 47 साल के मुकेश सहनी उप मुख्यमंत्री के फेस. 74 साल के अशोक गहलोत ने बिहार में महागठबंधन की गुत्थी सुलझा दी लेकिन राजस्थान में यही सोच उन्होंने 48 साल के सचिन पायलट के साथ नहीं अपनाई.

कांग्रेस ने 2013 में अपनी अब तक की सबसे बुरी हार के बाद अपनी किस्मत सुधारने के लिए सचिन पायलट पर दांव क्यों लगाया?

राजस्थान में सबसे बड़ी हार के बाद पायलट ने संभाली थी कमान

2013 के चुनाव के बाद कांग्रेस सबसे कम सीटों से विधानसभा में आई थी, तब कांग्रेस मात्र 21 सीटों पर सिमट गई थी. मोदी लहर की शुरुआत और राजस्थान के तख्ता पलटने के तरीके का असर कांग्रेस के राजनीतिक प्रदर्शन पर दिखाई दे रहा था. ये कांग्रेस की सबसे बुरी हार थी.

5 साल की मेहनत के बाद पायलट ने कांग्रेस को जिताया

इस बीच कांग्रेस का बेड़ा सचिन पायलट ने उठाया. उस समय 2013 में पायलट सिर्फ 36 साल के थे, राजनीतिक विरासत थी लेकिन इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी पहले उन्होंने नहीं संभाली थी. लेकिन 5 पांच साल उन्होंने ज़मीनी स्तर पर काम किया और 2018 के चुनाव में कांग्रेस जीत के आई, लेकिन मेजोरिटी मार्क से एक सीट कम रह गई थी.

सरकार बनी तो मुखिया गहलोत, एमपी में भी यहीं हुआ

कांग्रेस ने समर्थन जुटा कर सरकार बना ली. लेकिन मुख्यमंत्री का ताज अशोक गहलोत को मिला. सचिन की महत्वकांक्षाओं पर पानी फिर गया, उन्हें डिप्टी सीएम की कुर्सी से संतुष्ट होना पड़ा. यही हाल मध्य प्रदेश में हुआ, जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया के जगह कमल नाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया.

राजस्थान, मध्यप्रदेश में कांग्रेस को झेलनी पड़ी बगावत

विशेषज्ञ कहते हैं कांग्रेस पार्टी और आलाकमान युवा जोश की जगह अनुभवी नेताओं पर ज्यादा भरोसा करती है. लेकिन कांग्रेस को मध्य प्रदेश और राजस्थान दोनों में इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ा. दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार को बगावत का सामना करना पड़ा. मध्य प्रदेश में सरकार गिर गयी लेकिन राजस्थान में बच गई. सचिन की वापसी हुई लेकिन युवा चेहरों को सम्मान नहीं मिला.

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पायलट के लिए नक्कारा-निकम्मा जैसे शब्दों का प्रयोग

इसी बीच सचिन पायलट के लिए "निकम्मा-नक्कारा" जैसे शब्दों का इस्तेमाल हुआ. लेकिन आखिर जब चुनाव दुबारा नज़दीक थे तो कांग्रेस ने 2022 में एक फार्मूला निकला, गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष और पायलट को राजस्थान की कामन दी जाए. लेकिन यहाँ भी कांग्रेस के सीनियर लीडर्स ने सचिन का साथ नहीं दिया.

कौन आलाकमान... जैसे बयान भी आए सामने

शांति धारीवाल के घर पर कांग्रेस के विधायकों को इक्कट्ठा किया गया. उन्होंने गहलोत के समर्थन में इस्तीफ़ा दिया और कांग्रेस पार्टी के पर्यवेक्षक अजय माकन और मल्लिकार्जुन खरगे को दिल्ली खाली हाथ लौटना पड़ा. इस समय शांति धारीवाल का एक स्टेटमेंट आया- कौन आलाकमान... जो अभी तक गाहे-बगाहे में चर्चा में आ जाती है.

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मैं कुर्सी छोड़ना चाहता हूं लेकिन कुर्सी मुझे नहीं छोड़ताः गहलोत

इसके बाद फिर एक दौर आया. जब अशोक गहलोत ने कहा- मैं कुर्सी छोड़ना चाहता हूँ लेकिन कुर्सी मुझे नहीं छोड़ती. साफ़ था कि अशोक गहलोत राजस्थान की सत्ता किसी भी युवा पीढ़ी को देने के लिए तैयार नहीं थे. सचिन पायलट को तो बिलकुल ही नहीं.

2023 में भी पायलट पीछे रहे, नतीजा- कांग्रेस हार गई

कांग्रेस के एक वर्ग की सोच थी कि अगर पार्टी 2023 के चुनाव में युवा चेहरा लेकर उतरती तो शायद राजस्थान में पांच साल के बाद सरकार बदलने की परंपरा बदल जाती लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पायलट गहलोत के पीछे ही रहे. नतीजा गहलोत की तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस राजस्थान हार गई.

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पायलट केस के पुराने तजुर्बे से गहलोत ने बिहार की रार सुलझाई

अब बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले जब महागठबंधन में सीट बंटवारों से लेकर सीएम फेस पर रार मची, तब कांग्रेस ने गहलोत को संकटमोचक बनाकर पटना भेजा. राजनीति के जादूगर ने मात्र एक रात में सब कुछ सेट कर दिया. जानकारों का कहना है कि युवा चेहरों को लेकर उनका पुराना तजुर्बा इस संकट को हल करने में काम आया.

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