बिहार विधानसभा चुनाव 2025: हार की निराशा से कैसे निकलेगी जन सुराज, वीआईपी और कांग्रेस

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे जन सुराज पार्टी, विकासशील इंसान पार्टी और कांग्रेस के लिए बहुत निराशाजनक रहे हैं. अब क्या होगी इनकी आगे की राह.

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नई दिल्ली:

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे विपक्ष के लिए काफी निराशाजनक रहे हैं. खासकर पहली बार चुनाव मैदान में उतरी प्रशांत किशोर की जन सुराज के लिए. वह अपना खाता भी नहीं खोल पाई है. कुछ ऐसा ही हाल मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) का रहा. सहनी महागंठबंधन की डिप्टी सीएम पद के चेहरा थे. महागठबंधन में शामिल कांग्रेस का भी हाल खराब हो गया. साल 2020 में 19 सीटें जीतने वाली कांग्रेस इस  बार 6 पर ही सिमट गई है. कांग्रेस इस बार तीन नई सीटें जीतने में कामयाब रही है.आइए जानते हैं कि बिहार की राजनीति में इन दलों की अब क्या भूमिका होगी और इनका भविष्य क्या है.

जन सुराज ने बिहार में क्या किया

सबसे पहले बात करते हैं प्रशांत किशोर की जन सुराज की. बिहार में करीब दो साल तक पदयात्रा करने के बाद प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी की स्थापना की. इस चुनाव में जन सुराज ने करीब 240 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन उसे किसी भी सीट पर सफलता नहीं मिली है. 98 फीसदी से अधिक सीटों पर उसके उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए हैं. जबकि चुनाव प्रचार के दौरान प्रशांत ने बढ़-चढ़कर कई दावे किए थे. लेकिन उनके दावे हवा-हवाई हो गए. वो अभी भी फर्श पर बने हुए हैं.

इस चुनाव में जन सुराज भले ही कोई सीट नहीं जीत पाई, लेकिन वह करीब तीन फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही है. जन सुराज के उम्मीदवारों ने भले ही कोई जीत हासिल न की हो. लेकिन उन्होंने कई सीटों पर महागठबंधन और एनडीए को नुकसान पहुंचाया. जैसे बेगूसराय के चेरिया बरियारपुर जेडीयू ने चार हजार 119 वोट के अंतर से जीत ली.वहां राजद के सुशील कुमार को हार का सामना करना पड़ा. इस सीट पर जन सुराज के मृत्युंजय कुमार 24 हजार 595 वोट पाने में कामयाब रहे. इसी तरह से पश्चिमी चंपारण की चनपटिया सीट पर कांग्रेस ने बीजेपी को हराया. यह ऐसी सीट है, जहां पिछले छह बार से बीजेपी जीत रही थी. वहां कांग्रेस के अभिषेक रंजन ने बीजेपी के उमाकांत सिंह को 602 वोट से हराया. इस सीट पर जन सुराज के मनीष कश्यप ने 37 हजार से अधिक वोट हासिल  किए. जन सुराज के उम्मीदवारों ने 32 सीटों पर 10 हजार से अधिक वोट हासिल किए हैं.

जन सुराज का भविष्य

जन सुराज को मिले वोट बताते हैं कि आने वाले सालों में बिहार की राजनीति में उसकी स्थिति मजबूत होगी. अगर पार्टी जमीन पर लगातार सक्रिय रही तो वह बिहार की राजनीति में तीसरा कोण बनकर उभर सकती है. खासकर तब जब बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल अपने बुरे दौर से गुजर रही है. जन सुराज की कोशिश साफ-सुथरी और मुद्दों पर आधारित राजनीति करने और जनता से जुड़े मुद्दे उठाने की रही है. यह जाति की राजनीति करने वाले बिहार में नई बात है, हो सकता है कि मतदाताओं को जन सुराज के वादे पसंद न आए हों, लेकिन अगर प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी लगातार जमीन पर सक्रिय रहे तो उन्हें इन मुद्दों और राजनीति का फायदा हो सकता है. 

वीआईपी का क्या होगा

महागठबंधन में शामिल वीआईपी ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा. लेकिन उसे निराशा हाथ लगी है. वह कोई भी सीट जीत पाने में नाकाम रही. सहनी ने अपनी हार तो स्वीकार की है, लेकि यह भी कहा है कि इसे संगठनात्मक कमी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.उन्होंने कहा कि वोटर हमारे संदेश से नहीं जुड़ पाए और उन्होंने नीतीश जी और मोदी जी को बातों पर विश्वास किया. सहनी का कहना था कि महिलाओं को प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता देने के एनडीए के वादे ने महागठबंधन की स्थिति को निर्णायक रूप से कमजोर किया.इस हार से उदास सहनी ने कहा कि वीआईपी यह सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष जारी रखेगी कि महिलाओं को एमएमआरवाई की शेष किस्तें मिलें. उन्होंने कहा कि वो मैदान में रहेंगे और सरकार को उसके वादे की याद दिलाते रहेंगे. 

मुकेश सहनी ने 2018 में विकासशील इंसान पार्टी का गठन किया था. वो निषाद-मल्लाह-केवट समुदाय की राजनीति करने का दावा करते हैं. बिहार में इन जातियों की आबादी 2.6 फीसदी है. हालांकि कुछ और जातियों को भी सहनी इसी वर्ग में जोड़ते हुए अपने समाज की आबादी बिहार में 9 फीसदी से अधिक बताते हैं. लेकिन वो इन जातियों के अकेले नेता नहीं है. इन जातियों के कुछ नेता एनडीए में शामिल दलों में भी हैं. वहीं खुद को 'सन ऑफ मल्लाह' कहकर उन्होंने अपनी जाति तक ही सीमित कर लिया है. इससे दूसरी जातियां उनसे छिटकी भी हैं. ऐसे में चुनाव में मिली बड़ी असफलता के बाद सहनी को अपना आधार बढ़ाना होगा और केवल जाति की राजनीति छोड़कर अपने समाज के मुद्दों की भी तलाश करनी होगी. और जमीन पर सक्रिय रहना होगा. 

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कैसे हुआ का कांग्रेस हाल बेहाल

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए भी काफी निराशाजनक रहे. बिहार में 60 से अधिक सीटें जीतने वाली कांग्रेस 6 सीटों पर सिमट कर रह गई है. यह बिहार में उसके सबसे खराब प्रदर्शन में से एक है. साल 2020 में 9.6 फीसदी वोट और 19 सीटें जीतीं. वहीं 2025 में 8.71 फीसदी वोट और केवल छह सीटें मिली हैं.यानी वोट शेयर एक फीसदी कम होने पर पार्टी को 13 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. यह इस सदी में कांग्रेस का दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन है.इससे पहले 2010 के चुनाव में वह केवल चार सीटें ही जीत पाई थी. 

इस बार तो कांग्रेस की हालत यह रही कि उसके प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान भी चुनाव हार गए. चुनाव आयोग के मुताबिक कांग्रेस ने छह सीटें जीती हैं. ये सीटें हैं फारबिसगंज, किशनगंज, मनिहारी, वाल्मीकिनगर, चनपटिया और अररिया. कांग्रेस ने जो छह सीटें जीती हैं, उनमें से तीन सीटें अररिया,मनिहारी और किशनगंज उसने 2020 में भी जीती थीं. इस बार वो वाल्मीकिनगर, चनपटिया और फारबिसगंज सीट जीतने में कामयाब रही है. कांग्रेस बिहार की ही तरह दूसरे राज्यों में भी वैशाखी के सहारे हैं. वह अपने सहयोगियों के दम पर सीटें निकालने में कामयाब रहती है. इन सभी राज्यों में कांग्रेस के पास नेता तो हैं, लेकिन कार्यकर्ता नहीं है. इसका परिणाम यह होता है कि वह बूथ लेवल पर चुनाव प्रबंधन नहीं कर पाती है. इसका असर चुनाव परिणामों में दिखाई देता है. 

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