बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं.चुनाव परिणाम बताते हैं कि एनडीए ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. एनडीए में शामिल पांच दलों ने 243 में से 202 सीटें जीत ली हैं. वहीं विपक्षी महागठबंधन केवल 35 सीटें ही जीत पाया है. एनडीए की इस जीत को सामाजिक समीकरणों की भी जीत बताया जा रहा है. बिहार के वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा भी एनडीए में शामिल है. उन्हें बिहार में कुशवाहा (कोईरी) जाति का नेता माना जाता है. कुशवाहा के साथ होने की वजह से एनडीए को बिहार के कुशवाहा बहुल इलाकों में भी शानदार जीत मिली है. आइए देखते हैं कि एनडीए को कुशवाहा बहुल इलाकों में कैसी सफलता मिली है.
सबसे पहले बात करते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने कितनी सीटों पर चुनाव लड़ा और कितने पर उसे जीत मिली है. रालोमो को सीट बंटवारे में छह सीटें बाजापट्टी, मधुबनी, सासाराम,दिनारा, उजियारपुर और पारु मिली थीं.
इनमें से बाजापट्टी से रामेश्वर कुमार महतो, मधुबनी से माधव आनंद, सासाराम से स्नेहलता और दिनारा से आलोक कुमार सिंह को जीत मिली है. वहीं उजियारपुर में रालोमो के प्रशांत कुमार पंकज और पारु में मदन चौधरी को राजद के हाथों हार का सामना करना पड़ा है. सासाराम से जीतीं स्नेहलता उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी हैं.
बिहार में कुशवाहा वोटों की महिमा
ये तो हुई उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के जीत की बात. अब आपको बताते हैं कि बिहार में कहां-कहां कुशवाहा-कोइरी वोट अच्छी खासी संख्या में हैं और उन इलाकों में एनडीए ने कैसा प्रदर्शन किया है. बिहार में कुशवाहा (कोइरी) जाति की आबादी 4.2 फीसदी है. ऐसा माना जाता है कि मगध-शाहाबाद के अलावा सीवान, भागलपुर-बांका, पूर्णिया,पूर्वी और पश्चिमी चंपारण जिले की करीब 45 सीटों पर कोइरी जाति जीत हार को निर्धारित करने में बड़ी भूमिका निभाती है.
राष्ट्रीय लोक मोर्चा के एनडीए में शामिल होने का फायदा इस गठबंधन को मिला है. इसे ऐसे देखते हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में मगध की 47 सीटों में से एनडीए केवल 18 सीटें जीत पाई थी. वहां 2025 में एनडीए ने 40 सीटें जीत ली हैं. इसी तरह से 2020 के चुनाव में शाहाबाद के इलाके में एनडीए को केवल दो सीटें मिली थीं, वहां इस चुनाव में एनडीए ने 19 सीटें अपनी झोली में डाल ली हैं.
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कोईरी का एनडीए के साथ होने का असर सीवान में भी देखा जा सकता है.एनडीए ने सीवान की आठ में से सात सीटें जीत ली हैं. इसी तरह से पश्चिम चंपारण की नौ में से सात सीटें एनडीए के खाते में गई हैं. इनमें बीजेपी के खाते में छह और जेडीयू को एक सीट मिली है. इसी तरह से पूर्वी चंपारण की 12 में 11 सीटों पर एनडीए के उम्मीदवारों को जीत मिली है.
बिहार में कुशवाहा कार्ड
एनडीए में शामिल नेताओं को कुशवाहा वोटों की अहमियत 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद समझ में आई. दरअसल 2024 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा काराकाट सीट से चुनाव मैदान में थे. लेकिन वहां से बीजेपी नेता और भोजपुरी गायक पवन सिंह निर्दलीय मैदान में उतर गए. इसका परिणाम यह हुआ कि कुशवाहा चुनाव हार गए. वहां से सीपीआई-एमएल के राजा राम सिंह चुनाव जीत गए. इसके बाद से वहां राजपूत बनाम कुशवाहा की तनातनी की बातें सामने आने लगीं. इसके बाद एनडीए डैमेज कंट्रोल में लगा. उपेंद्र कुशवाहा को राज्य सभा भेजा गया और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पवन सिंह ने कुशवाहा से मिलकर गिले-शिकवे दूर किए. इसके अलावा बीजेपी ने कुशवाहा समाज के बड़े लीडर रहे जगदेव प्रसाद के बेटे और पूर्व मंत्री नागमणि को पार्टी में शामिल कराया. इसका असर चुनाव परिणाम पर देखा जा सकता है.
एनडीए के लिए कितना जरूरी हैं कुशवाहा
इससे पहले 2020 के विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा एनडीए से बाहर रहकर चुनाव लड़े थे. उस समय मगध-शाहाबाद से एडीए को सफलता नहीं मिली थी. कुशवाहा ने वह चुनाव बसपा और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के साथ मिलकर 104 सीटों पर लड़ा था. कुशवाहा ने इन 104 में से 49 सीटों पर अपनी जाति के उम्मीदवार उतारे थे. इसका असर यह हुआ कि कोइरी वोट एनडीए से नाराज होकर उनके साथ चला गया. परिणाम यह हुआ कि मगध-शाहाबाद में एनडीए 69 में से केवल 19 सीटें ही जीत पाया था. वहां महागठबंधन ने 49 सीटें अपनी झोली में डाल ली थी. एनडीए का सबसे खराब प्रदर्शन शाहाबाद में रहा था. वहां नीतीश कुमार की जेडीयू कोई सीट नहीं जीत पाई थी तो बीजेपी दो पर सिमट गई थी. उससे पहले 2015 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश की जेडीयू एनडीए से बाहर और कुशवाहा साथ थे तब शाहाबाद में एनडीए ने पांच सीटें जीती थीं. वहीं 2010 के विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू में थे. उस चुनाव में जेडीयू एनडीए में शामिल थी. तब एनडीए ने शाहाबाद की 22 में से 17 सीटें जीती थीं.
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