अहमदाबाद में कभी कूड़ा बीन कर गुजारा करने वाली भारती बेन अब हंगरी की सड़कों पर चलाएगी ट्रक

एनजीओ ‘जनविकास’ की कार्यक्रम समन्वयक सयानी भट्ट ने बताया कि उनमें से अधिकांश कमजोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आती हैं. कुछ अपने पति से अलग हो चुकी हैं.

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अहमदाबाद:

अहमदाबाद की सड़कों पर कभी कूड़ा बीन कर गुजारा करने वाली भारती, पति की मौत के बाद बच्चों के भरण पोषण की चिंता से जूझने वाली रेखा और तलाक के बाद बेसहारा होने के बावजूद अपने बच्चों का सहारा बनने वाली रजनी प्रदेश की उन छह महिलाओं में शामिल हैं, जो एक नई जिंदगी शुरू करने के लिए जल्द ही हंगरी रवाना होंगी. हंगरी में ये महिलाएं ट्रक चालक के रूप में काम करेंगी. वे 20-35 वर्ष आयु वर्ग की हैं. वे तीनों उन छह महिलाओं के समूह का हिस्सा हैं जिन्होंने सहयोगात्मक पहल ‘ट्रकिंग फॉर इक्वेलिटी' के तहत प्रशिक्षण प्राप्त किया है.

इन सभी छह महिलाओं का कहना है कि उनके व्यक्तिगत संघर्षों ने उन्हें इतना मजबूत बना दिया है कि वे सुदूर यूरोपीय देश में ट्रक चालक के रूप में चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं. रेखा कहार ने कहा, ‘‘हमें हर तरह का प्रशिक्षण दिया गया है, जैसे बड़े ट्रकों को कैसे चलाना है, उनका रखरखाव, बुनियादी मरम्मत और भाषा कौशल भी. यह बिल्कुल अलग अनुभव होगा और मैं उत्साहित हूं.'' एक अन्य ड्राइवर गुलजान पठान ने कहा, ‘‘मैंने घर चलाने में अपने पिता की मदद करने का फैसला किया और चूंकि मेरे पास कोई कौशल नहीं था, इसलिए मैंने ड्राइविंग शुरू कर दी. मैंने यहां सब कुछ सीखा और 12वीं कक्षा तक अपनी पढ़ाई भी पूरी की.''

शहर में स्थित एनजीओ ‘जनविकास' की कार्यक्रम समन्वयक सयानी भट्ट ने बताया कि उनमें से अधिकांश कमजोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आती हैं. कुछ अपने पति से अलग हो चुकी हैं, या विधवा हैं. उन्होंने कहा कि इन छह महिलाओं के 23 अक्टूबर के आसपास हंगरी रवाना होने की संभावना है और वे वहां दो साल तक काम करेंगी. यह एनजीओ अपने 'ड्राइवर बेन' कार्यक्रम के तहत 2016 से महिलाओं को चार पहिया वाहन चलाने का प्रशिक्षण दे रहा है. इसके बाद प्रशिक्षित महिलाओं को कैब ड्राइवर, अमीर लोगों के लिए और होटलों में ड्राइवर के अलावा अन्य काम भी मिलते हैं. लेकिन भारत में अवसरों की कमी के कारण अब तक उसने महिलाओं को ट्रक ड्राइवर बनने के लिए प्रशिक्षित करने के बारे में नहीं सोचा था.

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जब ट्रक-ड्राइविंग की बात आती है, तो महिलाओं को बाधाओं का सामना करना पड़ता है. लेकिन छह महीने पहले एक मौका हाथ आया. भट्ट ने बताया,‘‘ एक यूरोपीय कंपनी, बैटन,अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) परियोजना के हिस्से के रूप में हंगरी में महिला ट्रक चालकें की भर्ती करना चाहती थी, और एक परामर्श एजेंसी ने आज़ाद फाउंडेशन (जिसके साथ जनविकास जुड़ा हुआ है) से संपर्क किया, जो देशव्यापी कार्यक्रम ‘वुमन ऑन व्हील्स' संचालित करती है और महिलाओं को आजीविका के लिए ड्राइवर बनने का प्रशिक्षण देती है.'' हंगरी में ट्रक चालकों को भेजने के लिए पहले महिलाओं की एक सूची का चयन किया गया और उसके बाद ट्रक चालक के रूप में प्रशिक्षण हासिल करने के लिए बेंगलुरू भेजा गया.

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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