लेखिका अरुंधति राय ने "आज के भारत" के बारे में बात की, इसे "शर्म की बात" कहा

अरुंधति रॉय ने कहा कि 1960 के दशक में धन और भूमि के पुनर्वितरण के लिए "वास्तव में क्रांतिकारी आंदोलनों" का नेतृत्व करने वाले नेता अब वोट चाहते हैं और ‘‘पांच किलोग्राम अनाज और एक किलोग्राम नमक बांटने के नाम’’ पर चुनाव जीत रहे हैं. 

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अरुंधति रॉय ने आज के भारत पर कही ये बात
नई दिल्ली:

बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका अरुंधति रॉय ने भारत की तुलना ऐसे विमान से की जो पीछे की ओर उड़ान भर रहा है. उन्होंने कहा कि यह ऐसा विमान है जो ‘‘दुर्घटना'' की ओर बढ़ रहा है. राय ने यह टिप्पणी ‘वाई डू यू फियर माइ वे सो मच''शीर्षक से प्रकाशित किताब के लोकार्पण के अवसर पर की. इस किताब में जेल में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ता जीएन साईबाबा की कविताओं और पत्रों का संकलन है. रॉय ने कहा कि 1960 के दशक में धन और भूमि के पुनर्वितरण के लिए "वास्तव में क्रांतिकारी आंदोलनों" का नेतृत्व करने वाले नेता अब वोट चाहते हैं और ‘‘पांच किलोग्राम अनाज और एक किलोग्राम नमक बांटने के नाम'' पर चुनाव जीत रहे हैं. 

इस्लामोफोबिया को सामान्य करने के प्रयास किए जा रहे हैं : अरुंधति रॉय

रॉय ने कहा, ‘‘हाल में मैंने अपने एक पायलट मित्र से सवाल किया ‘ क्या वह विमान को पीछे की ओर उड़ा सकते हैं? वह जोर से हंसा, मैंने तब कहा वास्तव में ऐसा ही यहां हो रहा है जहां पर नेता इस देश को पीछे की ओर उड़ा रहे हैं, सब कुछ गिर रहा है और हम दुर्घटना की ओर बढ़ रहे हैं.''

रॉय ने कहा कि "आज हम यहां क्या कर रहे हैं? हम एक ऐसे प्रोफेसर के बारे में बात करने के लिए मिल रहे हैं, जो 90 प्रतिशत लकवाग्रस्त है और सात साल से जेल में है. हम यही कर रहे हैं. बस इतना ही. हमें अब और बोलने की ज़रूरत नहीं है. यह आपको यह बताने के लिए काफी है कि हम किस तरह के देश में रह रहे हैं.  ये कितनी शर्म की बात है.

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जीएन साईबाबा को जो कि 90 प्रतिशत से अधिक शारीरिक रूप से विकलांग हैं और व्हीलचेयर का उपयोग करते हैं उन्हें 2017 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने माओवादी लिंक होने और "देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाली गतिविधियों" में शामिल होने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

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अदालत ने जीएन साईबाबा और अन्य को एंटी टेरर अनलॉफुल एक्टिविटिज(  anti-terror Unlawful Activities)अधिनियम के तहत दोषी ठहराया था. दिल्ली विश्वविद्यालय के राम लाल आनंद कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रूप में उनकी सेवाएं पिछले साल 31 मार्च से समाप्त कर दी गई थीं.

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जवाहर भवन में पुस्तक का विमोचन करने वाले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी राजा ने जीएन साईबाबा की तत्काल रिहाई की अपनी मांग दोहराई. उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार को अगर लगता है कि वह कम्युनिस्ट को 'आतंकवादी' करार देकर या सलाखों के पीछे डालकर उसे हरा सकती है, तो वह बहुत गलत है.

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डी राजा ने आगे कहा कि आज की सरकार सोचती है कि कुछ लोगों को 'अर्बन माओवादी,' अर्बन नक्सली, 'देशद्रोही', 'आतंकवादी' के रूप में लेबल करके या उन्हें जेल में डालकर या उन्हें जेल में प्रताड़ित करके वह सफल हो सकती है. मैं उन्हें चेतावनी देता हूं कि वे कभी सफल नहीं हो सकते. एक कम्युनिस्ट को मारा जा सकता है, लेकिन एक कम्युनिस्ट को कभी भी मोदी से हराया नहीं जा सकता."

पुस्तक के विमोचन के मौके पर जीएन साईबाबा की पत्नी वसंता भी शामिल हुईं. उन्होंने बताया कि कैसे उनके पति जो आंध्र प्रदेश के अमलापुरम शहर में गरीबी में पैदा हुए थे, ने अपनी विकलांगता पर काबू पाकर अपने विश्वविद्यालय में शीर्ष स्थान हासिल किया और एक उच्च सम्मानित प्रोफेसर बन गए.

उन्होंने नागपुर सेंट्रल जेल के एकांत कारावास में जीएन साईबाबा के साथ कथित अमानवीय व्यवहार, हृदय की खराब स्थिति, रीढ़ की हड्डी में दर्द सहित उनके खराब स्वास्थ्य और उनकी मां के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए कुछ दिनों के लिए मांगे गए पैरोल पर कई बार इनकार को लेकर विस्तार से बातचीत की.पुस्तक स्पीकिंग टाइगर द्वारा प्रकाशित की गई है और यह ऑफलाइन और ऑनलाइन स्टोर में बिक्री के लिए उपलब्ध है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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