पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee Contest From Nandigram) ने पुराने तेवर में लौटती नजर आ रही हैं. ममता का पूर्वी मिदनापुर की नंदीग्राम सीट (Nandigram) से चुनाव लड़ने का ऐलान ऐसे ही सियासी संकेत दे रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसके जरिये ममता ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है. उन्होंने बीजेपी और टीएमसी के बागियों को सीधे चुनौती दी है.
विश्लेषकों का कहना है कि नंदीग्राम, टीएमसी छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले कद्दावर नेता सुवेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) का गढ़ है. सुवेंदु को उनके ही किले में घेरने के साथ ममता के यहां से चुनाव लड़ने से पार्टी का मनोबल और ऊंचा होगा. इससे ममता बनर्जी ने ये भी संकेत दिया है कि कोलकाता में अमित शाह, जेपी नड्डा के दौरे या बीजेपी नेताओं के शक्ति प्रदर्शन से वह जरा भी विचलित नहीं हैं. बीजेपी के आक्रामक तेवरों के खिलाफ वह बैकफुट पर नहीं खेलेंगी.
ममता बनर्जी ने सोमवार को नंदीग्राम के तेखाली इलाके में ही हुई विशाल रैली में कहा, " मैं नंदीग्राम से चुनाव लडूंगी.यह मेरे लिए लकी है. नंदीग्राम मेरी बड़ी बहन है, भवानीपुर मेरी छोटी बहन है... अगर संभव हुआ तो मैं दोनों जगह से चुनाव लड़ूंगी. यदि मैं किसी कारणवश भवानीपुर से चुनाव नही लड़ पाई तो कोई और चुनाव लड़ेगा." कुछ घंटों बाद सुवेंदु अधिकारी ने भी ममता बनर्जी को नंदीग्राम से सीधी टक्कर देने का ऐलान कर दिया. अधिकारी ने कहा कि अगर वो 50 हजार से कम वोटों से ममता बनर्जी को नहीं हरा पाए तो राजनीति छोड़ देंगे.
दलबदलू नेताओं के खिलाफ हल्ला बोल
ममता बनर्जी की नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान दलबदलू नेताओं के खिलाफ सीधे हल्ला बोलने का संदेश भी दे रहा है. सुवेंदु के अलावा तृणमूल के 6 से ज्यादा विधायक और दो सांसद भी पाला बदल चुके हैं. ऐसे में बागी नेताओं के खिलाफ ममता का आक्रामक रुख टीएमसी के नेताओं के लिए उत्साह बढ़ाने वाला होगा, जो पार्टी में मची भगदड़ को लेकर संशकित हैं या पलायन करने का मन बना रहे हैं.
बीजेपी का बड़ा चेहरा बने सुवेंदु को उन्हीं की मांद में घेरेंगी
बीजेपी ने भले ही बंगाल में अभी मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा पेश न किया हो, लेकिन सुवेंदु बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जब ममता नंदीग्राम में हुंकार भर रही थीं तो उसी वक्त सुवेंदु दक्षिण कोलकाता में ममता के गढ़ में बीजेपी के रोड शो का संचालन कर रहे थे.वे मिदनापुर के अलावा आसपास के कई ग्रामीण इलाकों की सीटों पर बड़ा असर डाल सकते हैं. ऐसे में नंदीग्राम से विधायक रहे सुवेंदु को उन्हीं की मांद में घेरने का सियासी दांव बड़ा असर डाल सकता है.
नंदीग्राम ने ही तृणमूल को दिलाई थी सत्ता
सिंगुर के साथ नंदीग्राम ममता बनर्जी के लिए निजी तौर पर भी बेहद मायने रखता है. कांग्रेस से अलग 1998 में तृणमूल कांग्रेस बनाने के बावजूद ममता लंबे समय तक वामपंथी किले को भेदने में नाकाम रहीं, लेकिन नंदीग्राम के आंदोलन ने ही ममता को वो सियासी ऊर्जा दी, जिसके जरिये उन्होंने लेफ्ट के 34 साल पुराने दुर्ग को ढहा दिया. सिंगुर में टाटा के नैनो प्रोजेक्ट की तरह 2007 में नंदीग्राम में एक केमिकल फैक्ट्री बनाने के विरोध में किसान आंदोलन कर रहे थे. आंदोलन उग्र होने के बीच नंदीग्राम में किसानों पर फायरिंग में 14 लोगों की मौत से कोहराम मच गया. आरोप था कि लेफ्ट के सशस्त्र कार्यकर्ताओं और पुलिस ने गोलियां चलाईं. ममता की अगुवाई में टीएमसी ने यहीं से बुद्धदेव भट्टाचार्य की तत्कालीन वामपंथी सरकार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया और 2011 में बड़े बहुमत के साथ सत्ता पाई.
सत्ता विरोधी असंतोष पर काबू पाने की कोशिश
करीब 10 साल सत्ता में रहने के साथ टीएमसी एंटी इनकंबैंसी (सत्ता विरोधी असंतोष) का भी सामना कर रही है. मां, माटी और मानुष के नारे का साथ जमीनी राजनीति करने वाली ममता की भी जनता से कुछ दूरियां बढ़ी हैं. ममता खुद करीब 5 साल बाद नंदीग्राम में किसी जनसभा में पहुंची थीं. ऐसे में बीजेपी से मुकाबले के लिए ममता के खुद सड़क पर उतरने, जनता से सीधे संवाद कायम करने और असंतुष्ट नेताओं की नाराजगी दूर करने की कोशिश से पार्टी सियासी नुकसान की भरपाई करने में जुट गई है.
गौरतलब है कि 2006 के विधानसभा चुनाव में महज 30 सीटें जीतने वाली टीएमसी 2011 में 184 सीटों के दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाई. 2016 में दूसरी बार अकेले लड़ी तृणमूल ने 293 में से 211 सीटें जीतकर नया कीर्तिमान कायम किया. हालांकि कांग्रेस और लेफ्ट को पीछे छोड़ चुकी बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल की 18 सीटें जीतकर साफ संकेत दे दिए हैं कि वह नया विकल्प बनने को तैयार है.