डियर ट्रंप! कई देशों का पेट भरता है भारतीय चावल, इसके बिना बेस्‍वाद हो जाएगी अमेरिका की बिरयानी

भारतीय चावल पर टैरिफ लगाने की चेतावनी के पीछे ट्रंप अमेरिकी किसानों का हित दिखा रहे हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्‍या अमेरिका भारतीय चावल के बिना रह सकता है.

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  • अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत से आयात होने वाले चावल पर नए टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है
  • भारतीय चावल निर्यातक महासंघ के मुताबिक, अमेरिका खुद ही भारतीय चावल का बहुत बड़ा खरीदार है
  • भारत की निर्यात में हिस्सेदारी 46 प्रतिशत तक बढ़ गई है, जबकि पाकिस्तान और थाईलैंड इसके मुकाबले काफी पीछे हैं
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सत्ता में आने के बाद से ही टैरिफ पर ताबड़तोड़ फैसले लेने वाले अमेरिका के राष्‍ट्रपति ट्रंप ने एक बार फिर 'टैरिफ वाली डपली' बजाई है. इस बार उन्‍होंने 'भारतीय चावल' को निशाना बनाया है. उन्‍होंने चेतावनी भरे लहजे में संकेत दिया है कि वे कृषि आयात पर नए टैरिफ लगा सकते हैं. खासतौर पर भारत से आयात होने वाले चावल पर. ट्रंप की चेतावनी ऐसे दौर में आई है, जब‍ भारत दुनिया का नंबर-1 चावल निर्यातक (Rice Exporter) है और दर्जनों देश चावल के लिए भारतीय आपूर्ति पर निर्भर हैं. ये बात सर्वविदित है कि भारत के चावल निर्यात पर किसी भी तरह का टैरिफ, अंतरराष्ट्रीय खाद्य आपूर्ति शृंखला को बड़ा झटका दे सकती है. वैसे भी भारत से चावल का निर्यात 'डिमांड एंड सप्‍लाई चेन' यानी 'मांग और आपूर्ति श्रृंखला' आधारित है. 

भारतीय चावल के बिना नहीं रह सकता अमेरिका! 

भारतीय चावल पर टैरिफ लगाने की चेतावनी के पीछे ट्रंप अमेरिकी किसानों का हित दिखा रहे हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्‍या अमेरिका भारतीय चावल के बिना रह सकता है. भारतीय चावल निर्यातक महासंघ (Indian Rice Exporters Federation) ने ट्रंप की टिप्‍पणी के बाद अमेरिका को आइना दिखाने की कोशिश की है. फेडरेशन (IREF) ने एक विस्‍तृत स्‍पष्‍टीकरण जारी कर कहा कि भारत-अमेरिका चावल व्यापार पूरी तरह से उपभोक्ता मांग और खाने की आदतों-जरूरतों से प्रेरित है, न कि किसी भी प्रकार के डंपिंग या अनुचित व्यापार से.

IREF के अनुसार, भारत ने वित्त वर्ष 2025 में अमेरिका को 337.1 मिलियन डॉलर मूल्य का 274,213 मीट्रिक टन बासमती चावल निर्यात किया, जिससे अमेरिका भारतीय बासमती का चौथा सबसे बड़ा बाजार बन गया. गैर-बासमती चावल का निर्यात 61,341 मीट्रिक टन रहा, जिसका मूल्य 54.6 मिलियन डॉलर था, जिससे अमेरिका इस श्रेणी का 24वां सबसे बड़ा बाजार बन गया.

...तो फिर बेस्‍वाद हो जाएगी अमेरिका की बिरयानी 

फेडरेशन ने बताया कि अमेरिका में मांग मुख्य रूप से खाड़ी और दक्षिण एशियाई प्रवासी समुदायों से है. इन समुदायों के लिए बिरयानी जैसे व्यंजनों का 'आधार' बासमती चावल है. अमेरिका में उगाए जाने वाले चावल की किस्‍में, भारतीय बासमती की जगह नहीं ले सकतीं. एक इंटरव्‍यू में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्‍थान के ततकालीन निदेशक डॉ अशोक कुमार सिंह ने भी इस बात पर जोर दिया था कि अमेरिका में बिरयानी, बिना भारतीय बासमती चावल के नहीं बनाई जा सकती. यानी भारतीय चावल के बिना अमेरिका की बिरयानी का स्‍वाद ही बिगड़ जाएगा. 

40% ग्लोबल मार्केट पर भारत का कब्जा

DGCIS, भारत सरकार की आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, 2021-23 के बीच दुनिया के कुल चावल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 38.58% रही, जबकि 2023 में यह हिस्सेदारी बढ़कर करीब 46% तक पहुंच गई. पाकिस्तान और थाईलैंड भी चावल एक्‍सपोर्ट करते हैं, लेकिन वे भारत से काफी पीछे हैं. चीन दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक है, लेकिन ज्‍यादातर हिस्‍सा चीन में ही खपत हो जाता है. निर्यात के मामले में चीन की भागीदारी महज 4% ही है .

कई देशों के लिए 'लाइफलाइन' है भारतीय चावल 

सीमित कृषि संसाधन वाले देश, आयात पर निर्भर देश, रेगिस्तानी या युद्धग्रस्त देशों की बड़ी आबादी अपना पेट भारत के चावल से भरती है. अफ्रीकी और अरब देशों में चावल मुख्य भोजन है और स्थानीय उत्पादन बहुत सीमित है. पश्चिम अफ्रीका की बड़ी आबादी भारत के नॉन-बासमती पर निर्भर है, जबकि खाड़ी देश भारतीय बासमती को प्रीमियम फूड ग्रेन के रूप में इस्तेमाल करते हैं.

बासमती के सबसे बड़े खरीदार

  1. सऊदी अरब, ईरान, इराक, यूएई, यमन, ओमान, कतर-ये सात देश कुल निर्यात का करीब 78% हिस्सा लेते हैं
  2. अकेले सऊदी अरब और इराक की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है 

नॉन-बासमती किन देशों के लिए जरूरी 

  1. बेनिन, गिनी, वियतनाम, टोगो, कोटे डी आइवर, सेनेगल, सोमालिया, जिबूती, केन्या, यूएई 2023-24 में भारत के नॉन-बासमती के शीर्ष खरीदार थे.
  2. इन शीर्ष 10 देशों की हिस्सेदारी 2021-22 के 60.25% से घटकर 56.15% रह गई, यानी भारत अब नए बाजारों में भी प्रवेश बढ़ा रहा है .

भारत का चावल इतना खास क्यों

  • बासमती की सुगंध, लंबे दाने, वैश्विक प्रतिष्ठा
  • गैर-बासमती की गुणवत्ता और बड़े पैमाने पर आपूर्ति क्षमता
  • कीमत और आपूर्ति दोनों में विश्वसनीयता

इसी वजह से भारत खाद्य संकट के समय भी सैकड़ों जीवन बचाने वाला निर्यातक माना जाता है.

ट्रंप के टैरिफ से अमेरिका को ही दिक्‍कत!

  •  अमेरिका के भीतर चावल की कीमतें बढ़ेंगी
  •  अफ्रीका-खाड़ी देशों में वैकल्पिक सोर्सिंग महंगी पड़ेगी
  •  पाकिस्तान-थाईलैंड पर दबाव बढ़ेगा पर भारत जैसा वॉल्यूम संभव नहीं
  •  वैश्विक बाजार में फूड इन्फ्लेशन बढ़ने का खतरा

भारत के चावल निर्यात पर सिर्फ व्यापार नहीं, वैश्विक भू-राजनीति और खाद्य सुरक्षा टिकी है. रिपोर्ट कहती है कि 2023-24 में भारत ने कुल 163.58 लाख टन चावल भेजा-जो घरेलू उत्पादन का लगभग 12% है . ऐसे में अमेरिकी दबाव या शुल्क की दिशा दुनिया की थाली में सीधा असर डालेगी.

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