पंजाब में अगले साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले शिरोमणि अकाली दल (शिअद) व बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने गठबंधन कर लिया है. शिअद ने केंद्र के विवादास्पद कृषि विधेयकों को लेकर पिछले साल भाजपा से नाता तोड़ लिया था. शिअद प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने आज इस गठबंधन की आधिकारिक घोषणा की है. इस गठबंधन के साथ सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व वाली पार्टी का लक्ष्य पिछले साल सितंबर में भाजपा से अलग होने के बाद कई सीटों के अंतर को भरना है. राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव में बसपा 20 सीटों पर और अकाली दल 97 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
गठबंधन की घोषणा करते हुए शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने इसे ‘‘पंजाब की राजनीति में नया सवेरा बताया.'' बसपा महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा की उपस्थिति में उन्होंने कहा, ‘‘आज ऐतिहासिक दिन है. पंजाब की राजनीति की बड़ी घटना है.'' उन्होंने कहा कि शिअद और बसपा साथ मिलकर 2022 विधानसभा चुनाव और अन्य चुनाव लड़ेंगे.
उन्होंने कहा कि मायावती नीत बसपा पंजाब के 117 विधानसभा सीटों में से 20 पर चुनाव लड़ेगी, बाकी सीटें शिअद के हिस्से में आएंगी. बसपा के हिस्से में जालंधर का करतारपुर साहिब, जालंधर पश्चिम, जालंधर उत्तर, फगवाड़ा, होशियारपुर सदर, दासुया, रुपनगर जिले में चमकौर साहिब, पठानकोट जिले में बस्सी पठाना, सुजानपुर, अमृतसर उत्तर और अमृतसर मध्य आदि सीटें आयी हैं.
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अकाली दल और बसपा 1996 के लोकसभा चुनाव के 27 साल बाद हाथ मिला रहे हैं. बता दें कि 1996 के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के गठबंधन ने पंजाब की 13 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की थी. मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने तब तीन सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि अकाली दल ने 10 में से आठ सीटों पर जीत हासिल की थी.
बीतें दिनों गठबंधन के सवाल पर सुखबीर बादल ने कहा था कि उनकी पार्टी कांग्रेस, भाजपा और अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) को छोड़कर किसी के भी साथ गठबंधन के लिए तैयार है. 58 वर्षीय नेता ने पिछले सप्ताह कहा था, "हम इन दलों के साथ गठबंधन नहीं कर सकते. भाजपा के साथ गठबंधन का कोई इरादा नहीं है."
राज्य में 31 फीसदी दलित वोटों पर बसपा की अच्छी पकड़ है. दोआबा क्षेत्र की 23 सीटों पर दलित वोट निर्णय तय करते हैं. पंजाब में दलितों की आबादी करीब 40 फीसदी है.
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अकाली दल ने पिछले साल सितंबर में तीन कृषि विधेयकों को लेकर एनडीए से नाता तोड़ लिया था. जैसे ही बिल लोकसभा में पेश किए गए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में एकमात्र अकाली मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दे दिया. इस घटनाक्रम के एक हफ्ते बाद सुखबीर बादल ने कृषि विधेयकों को घातक और विनाशकारी बताते हुए और एनडीए का साथ छोड़ने की घोषणा की थी.