अजित पवार के मन में क्या? पहले परिवार तोड़ने की मानी गलती... अब बारामती से चुनाव नहीं लड़ने की कही बात

Pawar Family Politics: महाराष्ट्र की राजनीति के बीच परिवार की राजनीति भी चल रही है. पवार परिवार में लगातार राजनीतिक ताकत को लेकर खींचातानी चल रही है. अजित पवार भी बदले-बदले नजर आ रहे हैं...जानिए क्यों

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Maharashtra Politics: अजित पवार अब शरद पवार की तर्ज पर राजनीति कर रहे हैं.

Ajit Pawar Strategy: लोकसभा चुनावों के बाद से अजित पवार (Ajit Pawar) काफी बदले-बदले दिख रहे हैं. भाजपा से गठबंधन और एनसीपी पर कब्जे के बाद शरद पवार (Sharad Pawar) को लेकर अजित पवार सख्त दिख रहे थे. यहां तक की बारामती से अपनी बहन और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले (Supriya Sule) के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बना दिया. जमकर पत्नी के लिए प्रचार भी किया, लेकिन फिर भी उनकी पत्नी हार गईं. एनसीपी का प्रदर्शन भी लोकसभा चुनाव में खराब रहा. वहीं शरद पवार की नई-नवेली पार्टी ने ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया. इसके बाद से अजित पवार उनके प्रति सॉफ्ट नजर आ रहे हैं. आज ही उन्होंने बारामती में कार्यकर्ताओं के सामने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा, "मुझे छोड़कर बारामती को दूसरा विधायक मिलना चाहिए. मेरी उम्र अभी 65 साल की हो गई है. मैंने अब तक बहुत विकास के काम बारामती में किए हैं, लेकिन अगर कोई दूसरा आएगा तो मेरे काम और उनके काम की तुलना हो सकेगी." इस बयान के बाद सभागार में मौजूद कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध किया.

क्या है अजित पवार के मन में?

अजित पवार को भाजपा और शिंदे वाली शिवसेना के साथ हाथ मिलाकर उम्मीद थी कि वो पार्टी के साथ-साथ जनता का भी दिल जीत लेंगे. पहला टेस्ट लोकसभा चुनाव था. मगर इसमें वो फेल हो गए. मगर इससे भी बड़ी बात ये है कि भाजपा या शिंदे के साथ रहकर भी वो पूरी तरह दक्षिणपंथी नहीं होना चाहते. उन्हें पता है कि शरद पवार अब उम्र के उस पड़ाव पर हैं कि सक्रिय रुप से शायद 2029 में होने वाले विधानसभा चुनाव में न रह सकें. तब शरद पवार के चाहने वाले और मानने वाले उन्हीं की तरफ रुख करेंगे. इसीलिए अजित पवार भी शरद पवार की मध्य मार्गी राजनीति करना चाह रहे हैं. इसलिए वक्फ बोर्ड पर वो मुसलमानों के साथ दिख रहे हैं तो राम मंदिर से लेकर सभी राष्ट्रीय मुद्दों पर भाजपा के साथ. अब वो शरद पवार या सुप्रिया सुले के खिलाफ भी नहीं दिखना चाहते. यही कारण है कि वो गलती मानने की बातें कह कर शरद पवार के वोटरों को साध रहे हैं.

हाल में मानी थी गलती

धर्मराव बाबा आत्राम के समर्थन में हाल ही में उन्होंने उनकी बेटी भाग्यश्री को जनसभा में हिदायत दी. अजित पवार ने कहा कि गुरु कभी शिष्य को सारे दांव नहीं सिखाता, एक दांव बचाकर रखता है. मुझे आपको बताना है कि अभी भी यह भूल मत करो, अपने पिता के साथ रहो. एक पिता को जितना अपनी बेटी से प्रेम होता है, उतना प्रेम किसी से नहीं होता. ऐसा करके आप खुद के ही घर में दरार पैदा करोगी. यह सही नहीं है. समाज को यह स्वीकार्य नहीं है. इस संदर्भ में हमने भी अनुभव लिया है, और मुझे मेरी गलती अब समझ आई है और मैं उसे स्वीकार करता हूं. आपको बता दें कि भाग्यश्री ने कहा है कि अगर शरद पवार उन्हें अपनी पार्टी से टिकट देते हैं तो वो अपने पिता के खिलाफ भी चुनाव लड़ सकती हैं. इस बयान में अजित पवार ने सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी को उतारने के फैसले के बारे में शायद बात कर रहे थे.

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फिर जय पवार का नाम क्यों

कयास लगाए जा रहे हैं कि अजित पवार बारामती सीट से अपने बेटे जय पवार को मौका दे सकते हैं. शरद पवार वाली एनसीपी से जुडे सूत्रों का कहना है कि शरद पवार यहां से युगेंद्र पवार को अपना उम्मीदवार बनाने वाले हैं. दिलचस्प बात ये है कि युगेंद्र पवार अजित पवार के भाई श्रीनिवास पवार के बेटे हैं. इसका मतलब ये है कि बारामती में दो भाइयों के बीच मुकाबला देखने मिल सकता है. जय पवार को पहली बार सार्वजनिक मंच पर तब देखा गया था  जब अजित पवार ने पिछले साल अपने चाचा शरद पवार से बगावत की थी. बगावत के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं की पहली सभा में जय पवार भी अजित पवार के साथ नजर आए. दूसरी तरफ युगेंद्र पवार भी बीते सालभर से अक्सर शरद पवार के साथ घूमते फिरते दिखाई देते हैं, जिससे ये संकेत मिल रहा है कि उन्हें आने वाले चुनाव में लांच किया जाएगा.

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सुप्रिया को लेकर पहले भी बोले थे

अजित पवार ने कुछ दिनों पहले एक मीडिया हाउस से कहा था, ''राजनीति की जगह राजनीति है, लेकिन ये सभी मेरी प्यारी बहनें हैं. कई घरों में राजनीति चल रही है, लेकिन राजनीति को घर में घुसने नहीं देना चाहिए. हालांकि लोकसभा के दौरान मुझसे एक गलती हो गई थी. संसदीय बोर्ड ने सुनेत्रा पवार को मनोनीत करने का निर्णय लिया.एक बार तीर लगने के बाद उसे वापस नहीं लिया जा सकता. लेकिन मेरा दिल आज भी मुझसे कहता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. अब तो उस फैसले को वापस नहीं लिया जा सकता.''

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बारामती फतह की तैयारी 

साफ है कि अजित पवार लोकसभा चुनाव के बाद अपने चाचा और परिवार पर हमलावर न होकर सॉफ्ट तरीके से अपनी बात जनता तक पहुंचाएंगे. बारामती छोड़कर एक तरह से वो शरद पवार पर रिटायर होने का एक दबाव भी बना रहे हैं. अपनी उम्र का हवाला देकर उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से चाचा की उम्र और महत्वकांक्षा पर निशाना साधा है. साथ ही उन्होंने ये भी संदेश दे दिया है कि वो अपने बेटे और भतीजे के लिए अपनी जगह छोड़ने को तैयार हैं. अब अगर अजित पवार के सगे भतीजे युगेंद्र को शरद पवार बारामती से चुनाव लड़ाते भी हैं तो अजित पवार सैद्धांतिक तौर पर शरद पवार से आगे दिखेंगे. इस तरह से वो बारामती पर परिवार की जंग चाचा से जीत लेंगे.  

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