2001 में आगरा शिखर सम्‍मेलन की विफलता का क्‍या था कारण? पूर्व राजनयिक ने अपनी किताब में किया खुलासा

अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे, तब उनके प्रमुख सहयोगी रहे राजनयिक अजय बिसारिया ने अपनी आने वाली किताब में ऐतिहासिक आगरा शिखर सम्मेलन के बारे में नाटकीय घटनाक्रम वाली अनेक जानकारी साझा की हैं.

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2001 में आगरा शिखर सम्मेलन में परवेज मुशर्रफ और अटल बिहारी वाजपेयी. (फाइल)
नई दिल्‍ली :

पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) का कश्मीर पर सार्वजनिक रूप से अपने उग्र विचारों को व्यक्त करना, आतंकवाद को रोकने के लिए उनकी मंशा में कमी आदि के कारण 2001 में आगरा शिखर सम्मेलन (2001 Agra Summit) विफल रहा था, ना कि पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) के रवैये के कारण. एक किताब में यह दावा किया गया है. अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे, तब उनके प्रमुख सहयोगी रहे राजनयिक अजय बिसारिया ने अपनी आने वाली किताब में ऐतिहासिक आगरा शिखर सम्मेलन के बारे में नाटकीय घटनाक्रम वाली अनेक जानकारी साझा की हैं.

बिसारिया ने अपनी किताब ‘एंगर मैनेजमेंट: द ट्रबल्ड डिप्लोमेटिक रिलेशनशिप बिटविन इंडिया एंड पाकिस्तान' में लिखा है कि सार्वजनिक रूप से प्रसारित यह बयान पर्यवेक्षकों को वार्ता पर सम्मेलन के मध्य में जारी रिपोर्ट की तरह लग रहा था, जहां पाकिस्तान के कठोर विचार भारत पर थोपे जा रहे हों, जबकि नई दिल्ली की स्थिति स्पष्ट नहीं हो.

पूर्व राजनयिक ने कहा कि वह और वाजपेयी के प्रधान सचिव तथा 1998 से 2004 तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे ब्रजेश मिश्रा ने आगरा में अस्थायी प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में मुशर्रफ के टेलीविजन पर प्रसारित बयानों को निराशा के साथ देखा था.

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रूपा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक में बिसारिया लिखते हैं, ‘‘मिश्रा ने मेरी तरफ देखा और कहा कि प्रधानमंत्री को इस घटनाक्रम के बारे में सूचित करना होगा क्योंकि वह मुशर्रफ के साथ बातचीत में बैठे हैं और उन्हें बैठक कक्ष के बाहर हो रही किसी चीज की जानकारी नहीं है.''

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उन्होंने लिखा, ‘‘मिश्रा ने कुछ वाक्य लिखे. मैंने उन्हें तत्काल टाइप किया और खुद से कुछ वाक्य जोड़े. नोट में बुनियादी रूप से यह कहा गया कि मुशर्रफ के एक संवाददाता सम्मेलन का प्रसारण किया जा रहा है जहां उन्होंने कश्मीर पर बार-बार अपने कट्टर रुख को सामने रखा है और आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी की तरह पेश किया है.''

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किताब के मुताबिक बिसारिया को उस कमरे में जाना था जहां दोनों नेता और दोनों की बातों को नोट करने वाले दो अधिकारी बैठे थे.

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उन्होंने लिखा, ‘‘मेरे पहुंचने पर बातचीत में खलल पड़ा और दोनों नेता मेरी ओर देखने लगे. मुशर्रफ बोल रहे थे और लग रहा था कि वाजपेयी बड़ी दिलचस्पी से बात सुन रहे थे.''

बिसारिया ने वाजपेयी को सौंपा कागज और कहा... 

बिसारिया के अनुसार, ‘‘मैंने कागज प्रधानमंत्री को सौंपा और कहा कि कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुए हैं. मेरे कमरे से निकलने के बाद वाजपेयी ने कागज की ओर देखा और मुशर्रफ के सामने इसे पढ़ा और बड़ी व्यग्रता के साथ उनसे कहा कि उनके बर्ताव से बातचीत में मदद नहीं मिल रही.''

उन्होंने कहा कि कुछ सहकर्मियों ने उन पर मजाकिया तरीके से आगरा शिखर सम्मेलन को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया.

पाकिस्‍तानी लीक से उभरी थी यह कहानी 

पूर्व राजनयिक ने लिखा है कि बैठकों से जो बात सामने आई वह यह थी कि पाकिस्तानी लीक के मद्देनजर बैठकों से जो कहानी उभर कर सामने आई, वह यह थी कि वाजपेयी और विदेश मंत्री जसवंत सिंह ‘‘आगरा संयुक्त वक्तव्य'' (कश्मीर मुद्दे पर आगे बढ़ने के संबंध में द्विपक्षीय प्रगति को जोड़ते हुए) के पाकिस्तान के ‘जटिल मसौदे' के साथ ‘ठीक' थे, वहीं आडवाणी ने इसे वीटो कर दिया था क्योंकि वह इस्लामाबाद के साथ कोई प्रगति नहीं चाहते थे.

बिसारिया ने लिखा, ‘‘आडवाणी को मीडिया की रिपोर्टिंग में उन्हें अमन का खलनायक पेश करने के रुख की जानकारी थी.''

जून 2022 में विदेश सेवा से सेवानिवृत्त हुए बिसारिया ने मसौदा वक्तव्य पर पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री अब्दुल सत्तार के साथ जसवंत सिंह की वार्ता का भी जिक्र किया था.

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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