भूमि अधिग्रहण बिल के बाद मोदी सरकार ने दूसरी बार अपने कदम वापस खींचे, कृषि कानूनों की वापसी होगी

Farm Laws 2020 : प्रधानमंत्री मोदी ने 30 अगस्त 2015 को मन की बात कार्यक्रम में ऐलान किया कि सरकार भू अधिग्रहण कानून को वापस लेगी.  कृषि कानूनों की एक बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है कि क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के क्रियान्वयन पर पहले हो रोक लगा रखी थी

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कृषि कानूनों की तरह भूमि अधिग्रहण बिल को सरकार को वापस लेना पड़ा था
नई दिल्ली:

Farm Laws Repealed : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने शुक्रवार को गुरुनानक जयंती पर राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया. पीएम मोदी ने यह निर्णय़ कृषि कानूनों को खत्म किए जाने का ऐलान दिल्ली बॉर्डर (Delhi Borders) पर डटे तमाम किसानों का आंदोलन एक साल पूरा होने के एक हफ्ते पहले लिया गया है. इसे मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भूमि अधिग्रहण बिल (Land Acquisition Bill) वापस लेने के बाद सरकार का अपने राजनीतिक एजेंडे से पीछे हटने का सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में धमाकेदार तरीके से सत्ता पाने के बाद वर्ष 2014 में संशोधित भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर भारी विरोध का सामना करना पड़ा था.केंद्र सरकार अध्यादेश के जरिये ये बिल लेकर आई थी. सरकार का कहना है कि भूमि अधिग्रहण के नए कानून से सही मुआवजा मिलेगा और इसमें पारदर्शिता आएगी. इसमें भूमि से विस्थापितों के पुर्नवास और पुर्नस्थापन का भी उल्लेख था. इस अध्यादेश को  (right to fair compensation and transparency in land acquisition, rehabilitation and resettlement act) नाम दिया गया था.

भूमि अधिग्रहण को लेकर यूपीए सरकार के कार्यकाल में एक कानून आया था. इसमें में बदलाव करते हुए मोदी सरकार 2014 में ये कानून लेकर आई थी.  इसमें बहुफसली भूमि (सेक्शन 10A) के अधीन पांच उद्देश्यों राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा, ग्रामीण आधारभूत संरचना, औद्योगिक कॉरिडोर और पीपीपी समेत सार्वजनिक आधारभूत संरचनाओं के लिए बिना सहमति के भूमि अधिग्रहण करने का प्रस्ताव था. इस बात का तीखा विरोध हुआ.

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पहले के कानून में पहले जो संशोधन हुआ था, उसके तहत सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में 80 प्रतिशत जमीन मालिकों की सहमति चाहिए होती थी. परियोजना सरकारी हो तो ये सहमति घटकर 70% रह जाती थी. लेकिन नए कानून में ये बाध्यता नहीं रही. सरकार के लिए भूमि का अधिग्रहण आसान हो सकता था. इसमें एक संशोधन ये भी था कि भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास के मामलों में सरकार ऐसे भूमि अधिग्रहित नहीं करेगी जो या तो निजी परियोजनाओं के लिए प्राइवेट कंपनियां लेती हैं या फिर जिन प्रोजेक्ट में सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए बहु-फसली जमीन लेनी पड़ती हो. 

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केंद्र इस भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर 4 बार अध्यादेश जारी किए थे, लेकिन वह संसद से कानून को पारित नहीं करा पाई. आठ महीने तक इसके खिलाफ विपक्ष लामबंद रहा. खुद कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका था. किसान खेत मजदूर रैली के लिए जरिये सरकार पर कांग्रेस ने दबाव डाला था.सरकार ने 10 मार्च 2015 को भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा से पारित करा भी लिया था, लेकिन राज्यसभा में उसके पास बहुमत नहीं था.

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आखिरकार खुद प्रधानमंत्री मोदी ने 30 अगस्त 2015 को मन की बात कार्यक्रम में ऐलान किया कि सरकार भू अधिग्रहण कानून को वापस लेगी.  कृषि कानूनों की एक बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है कि क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के क्रियान्वयन पर पहले हो रोक लगा रखी थी और उस पर फैसला नजदीक नहीं दिख रहा था, ऐसे में सरकार के लिए दोहरे राजनीतिक नुकसान का सौदा साबित हो रहा था.

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