पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Ex PM Rajiv Gandhi) की मौत के वक्त चंद्रशेखर कार्यवाहक प्रधानमंत्री थे. राजीव गांधी की मौत के तुरंत बाद गांधी परिवार और उनके बीच तानातनी शुरू हो गई थी. यह तनातनी राजीव गांधी के स्मारक की वजह से हुई थी. सोनिया गांधी ने तब पत्र लिखकर चंद्रशेखर से राजीव गांधी के स्मारक के लिए जमीन देने की मांग की थी लेकिन चंद्रशेखर ने प्रस्तावित स्मारक को इंदिरा गांधी के समाधिस्थल 'स्थल शक्ति स्थल' में ही समाहित करने का सुझाव दिया था.
लेकिन सोनिया गांधी चाहती थीं कि राजीव गांधी का स्मारक उनकी मां (इंदिरा गांधी) की समाधिस्थल से अलग होना चाहिए क्योंकि राजीव गांधी की एक अलग पहचान थी. लिहाजा, राजीव को सिर्फ इंदिरा गांधी के बेटे के रूप में नहीं याद किया जाना चाहिए.
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उधर, चंद्रशेखर इस बात पर अड़े थे कि पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के समाधि स्थल के रकबे में कटौती नहीं की जाएगी. उन्होंने अपने पत्र व्यवहार में इसका उल्लेख भी किया था कि वो पहले ही पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के स्मारक के लिए उनके बेटे चौधरी अजीत सिंह के प्रस्ताव को ठुकरा चुके हैं.
चंद्रशेखर के सहयोगी रहे और वर्तमान में राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने चंद्रशेखर की जीवनी में इस घटना का उल्लेख किया है. हरिवंश जीवनी के सहलेखक हैं.
बता दें कि कांग्रेस के समर्थन से ही 1990 में चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने थे. चार महीने तक सरकार चलने के बाद कांग्रेस ने मार्च 1991 में यह आरोप लगाते हुए उनकी सरकार से समर्थन वापसी का फैसला ले लिया था कि चंद्रशेखर सरकार राजीव गांधी की जासूसी करवा रही है. हालांकि, इससे पहले ही 6 मार्च को चंद्रशेखर ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया. समर्थन वापसी के बाद ही चंद्रशेखर और राजीव गांधी के बीच रिश्तों में तल्खी बढ़ गई थी.
21 मई, 1991 को लिट्टे (LTTE) उग्रवादियों ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जान ले ली थी. श्रीलंका में शांति सेना भेजने से नाराज तमिल विद्रोहियों ने तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में राजीव गांधी पर आत्मघाती हमला किया था. लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार कर रहे राजीव गांधी के पास एक महिला फूलों का हार लेकर पहुंची और उनके बहुत करीब जाकर अपने शरीर को बम से उड़ा दिया. धमाका इतना जबरदस्त था कि उसकी चपेट में आने वाले ज्यादातर लोगों के मौके पर ही परखच्चे उड़ गए. आज देश अपने पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धांजलि दे रहा है.