कर्पूरी को ‘भारत रत्न’: बिहार में विरोधियों के ‘मंडल’ की धार कुंद करने को BJP को मिला एक और 'औजार'

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में भाजपा के अलावा लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों गुट, पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के नेतृत्व वाला हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक जनता दल (आरएलएसपी) शामिल हैं.

विज्ञापन
Read Time: 27 mins

नई दिल्ली: ‘जननायक' कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न' देने की घोषणा के बाद उनके गृह राज्य बिहार के राजनीतिक दलों में इसके श्रेय को लेकर होड़ शुरू हो गई है. राजनीतिक विश्लेषक हालांकि मान रहे हैं कि अगले कुछ माह में प्रस्तावित लोकसभा चुनावों में किस दल को इसका कितना फायदा मिलेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है.

विश्लेषकों का मानना है कि अनुच्छेद 370, आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत और लोकसभा एवं विधानसभाओं में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण, फिर अयोध्या में राम मंदिर ‘प्राण प्रतिष्ठा' समारोह और अब भारत रत्न का दांव चलकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने संकेत दे दिया है कि विपक्ष के ‘इंडिया' गठबंधन की ओर से जाति आधारित गणना को मुद्दा बनाए जाने की कोशिशों का मुकाबला करने के लिए यह उसके मुख्य औजार होंगे.

कर्पूरी ठाकुर के निजी सचिव रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा कि वास्तविक जननायक इस सम्मान के हकदार थे और यह उन्हें बहुत पहले मिल जाना चाहिए था. उन्होंने कहा, ‘‘फैसला तो देर से आया है लेकिन दुरुस्त है.'' बिहार की राजनीति के जानकार किशोर ने इस बात को स्वीकार किया कि आने वाले दिनों में इसका बिहार के राजनीतिक परिदृश्य पर इसका असर पड़ेगा. उन्होंने कहा, ‘‘ असर... देखना होगा.''

राजनीतिक दलों के बीच इस फैसले का श्रेय लेने की होड़ पर किशोर ने कहा, ‘‘श्रेय तो बंट जाएगा. देने वाले मोदी जी (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) निकले तो उन्हें भी श्रेय मिलेगा. भाजपा के पक्ष में ‘कमंडल' का तत्व हावी है.'' राष्ट्रपति भवन ने मंगलवार को कर्पूरी ठाकुर की जन्म शताब्दी की पूर्व संध्या पर बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे और राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की राजनीति के सूत्रधार माने जाने वाले इस नेता को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न' से नवाजे जाने की घोषणा की थी.

कर्पूरी ठाकुर पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी नेता थे जो दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उनका 17 फरवरी, 1988 को निधन हो गया था. प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को ‘एक्स' पर एक पोस्ट के जरिए इस फैसले की जहां सराहना की थी तो वहीं कर्पूरी पर एक लेख लिखकर उन्होंने कहा कि उनकी सरकार कर्पूरी ठाकुर से प्रेरणा लेकर निरंतर काम कर रही है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने ठाकुर को ‘भारत रत्न' से नवाजे जाने की घोषणा का स्वागत तो किया है लेकिन साथ ही कहा है कि यह उनकी बहुत पुरानी मांग थी जो आखिरकार पूरी हुई.

Advertisement

कर्पूरी जयंती पर बिहार में आयोजित एक रैली में कुमार ने मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वह कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का ‘पूरा श्रेय' ले सकते हैं. भाजपा की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले एक जानकार ने कहा कि यह तय है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने को मुद्दा बनाएगी और इसे भुनाने का प्रयास भी करेगी.

उन्होंने कहा कि पहले अनुच्छेद 370 को निरस्त करना, आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण, फिर 33 प्रतिशत महिला आरक्षण और फिर राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद अब ‘भारत रत्न' का दांव, यह बिहार में उसके मुख्य चुनावी औजार होंगे. कर्पूरी ठाकुर की पहचान अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के बड़े नेता के तौर पर है. बिहार में बीते साल जारी किए गए जाति आधारित गणना के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में इस वर्ग की आबादी लगभग 36 प्रतिशत है.

Advertisement

राजनीतिक विश्लेषक एवं पटना के एन एन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डी. एम. दिवाकर ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा कि भाजपा ने पिछड़ों के वोट में सेंधमारी की कोशिश जरूर की है लेकिन उसने इसमें बहुत देर कर दी.

उन्होंने कहा, ‘‘बिहार में पिछड़ों की राजनीति के पुरोधा लालू प्रसाद और नीतीश कुमार हैं. भाजपा उनके वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश जरूर कर रही है, लेकिन उसने देर कर दी है. भाजपा सरकार को यह समझने में 10 साल लग गए. अब जबकि चुनाव नजदीक है तो उन्होंने लाभ लेने के लिए यह घोषणा की है.''

Advertisement

उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा ने तो बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण का विरोध किया. बिहार सरकार ने न सिर्फ इसके आंकड़े जारी किए बल्कि आरक्षण की 65 प्रतिशत तक व्यवस्था की. इसी तर्ज पर जब केंद्रीय स्तर पर जाति आधारित गणना की मांग की गई तो उसे आज तक स्वीकार नहीं किया गया.''

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में भाजपा के अलावा लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों गुट, पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के नेतृत्व वाला हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक जनता दल (आरएलएसपी) शामिल हैं.

Advertisement

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में राजग को 31 सीट पर जीत मिली थी. भाजपा ने इस चुनाव में अकेले दम 22 सीट जीती थी. छह सीट सहयोगी दल राम विलास पासवान की लोजपा को और कुशवाहा के आरएलएसपी को तीन सीट मिली थी. वहीं जनता दल (यूनाइटेड) को दो, कांग्रेस को दो, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को चार और राकांपा को एक सीट मिली थी.

हालांकि 2019 के चुनाव में नीतीश राजग में आ चुके थे. इस चुनाव में भाजपा को 17, जद (यू) को 16 और लोजपा को छह सीट हासिल हुई. वहीं राजद का खाता भी नहीं खुला. एक सीट कांग्रेस को मिली थी. वर्ष 2019 में मांझी और कुशवाहा की पार्टियां बिहार में राजग के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा थीं.

जानकारों का कहना है बिहार की 40 लोकसभा सीट आगामी लोकसभा चुनाव में केंद्र की नयी सरकार का समीकरण तय कर सकती हैं. इस बार राज्य की राजनीति में समीकरण पिछली बार से बदले हुए हैं. जद (यू), राजद, कांग्रेस, भाकपा-माले, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) मिलकर राजग का मुकाबला करेंगे. ये सभी दल विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस' (इंडिया) का हिस्सा हैं.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
Maharashtra Elections Results: Resort Politics पर Rahul Narvekar ने कहा-Mahayuti ऐसा कुछ नहीं कर रही
Topics mentioned in this article